रामनाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहिरऊ, जो चाहसि उजियार॥
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जो लोग संत गोस्वामी तुलसीदास जी की निंदा कर रहे हैं, वे आसमान की ओर मुँह कर के स्वयं पर ही थूक रहे हैं। उन्हें पता नहीं है कि सत्य-सनातन-धर्म की रक्षा हेतु संत तुलसीदास जी का कितना बड़ा योगदान था। उनका ग्रंथ "रामचरितमानस" आध्यात्मिक जगत में सूर्य के समान देदीप्यमान है। पश्चिम के लोगों ने भी माना है कि ईसाई जगत में उनकी बाइबल कभी भी उतनी लोकप्रिय नहीं थी, जितना लोकप्रिय भारत में रामचरितमानस का पठन था। हिन्दी भाषा में यह ग्रंथ "भक्ति" का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ, और लोकवेद है।
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वर्षों पहिले की बात है, मैं एक बार मॉरिशस गया था। वहाँ के लोगों को भोजपुरी बोलते देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। लगभग सभी लोग हिन्दू धर्मावलम्बी थे। एक गाँव में अनेक लोग मेरे से मिलने आये। उन्होंने मुझे अपने पूर्वजों के बारे में बताया कि कैसे अँगरेज़ लोग धोखे से गिरमिटिया मजदूर बना कर उन्हें भारत के पूर्वाञ्चल से यहाँ ले आये और बापस जाने के सब मार्ग बंद कर दिए।
उनकी सबसे बड़ी संपत्ति और एकमात्र आश्रय राम का नाम और रामचरितमानस ग्रंथ था। सिर्फ राम नाम के भरोसे उन्होंने हाड़-तोड़ मेहनत की, और उस पथरीली धरा को कृषियोग्य और स्वर्ग बना दिया। राम का नाम और रामचरितमानस का पाठ ही उनका मनोरंजन था। इसी के सहारे वे स्वयं के अस्तित्व की रक्षा कर सके।
यही हाल फिजी और वेस्ट इंडीज़ में गए भारतीयों का हुआ। राम का नाम और रामचरितमानस -- प्रवासी भारतीयों का सबसे बड़ा सहारा था, और अभी भी है।
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संत तुलसीदास जी के समय भारत पर क्रूरतम आक्रमण और मर्मांतक प्रहार हो रहे थे। उस काल में उन्होंने रामचरितमानस व अन्य ग्रंथों की रचना की। अन्य भी अनेक भक्त उस काल में हुए। पूरा भक्ति-आंदोलन ही विदेशी आक्रमणों की प्रतिक्रिया में था। रामचरितमानस से लोगों में यह आस्था दृढ़ हुई कि हमारी रक्षा भगवान श्रीराम और श्रीहनुमानजी करेंगे। सत्यनिष्ठ श्रद्धालुओं की रक्षा हुई भी है।
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तुलसीदास जी व उनकी रचनाओं की निन्दा करने वाले दुष्ट प्रकृति के लोग हैं। उनका हर कदम पर प्रतिकार करना चाहिए।
जय सियाराम !!
कृपा शंकर
१७ जनवरी २०२३
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