भगवान एक कल्पवृक्ष हैं, जिसके नीचे हम जैसा भी सोचते हैं, वैसा ही हो जाता है
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चिंताओं की सोचेंगे तो चिंताएँ आ जायेंगी, अभाव की सोचेंगे तो अभाव आ जाएगा, प्रचूरता की सोचेंगे तो प्रचूरता मिलेगी, दरिद्रता की सोचेंगे तो दरिद्रता मिलेगी, संपन्नता की सोचेंगे तो संपन्नता मिलेगी, दुःख की सोचेंगे तो दुःख ही दुःख मिलेगा, और सुख की सोचेंगे तो सुख ही सुख मिलेगा।
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सुखी और दुःखी कौन है? ---
श्रुति भगवती कहती है - "ॐ खं ब्रह्म इति॥" "ख" शब्द का अर्थ परमात्मा भी होता है और आकाश भी होता है। परमात्मा का ध्यान हम आकाश-तत्व से ही आरंभ करते हैं। जो परमात्मा से समीप है, वह सुखी ही सुखी है, और जो परमात्मा से दूर है, वह दुःखी ही दुःखी है। निरंतर आकाश-तत्व में परमात्मा का अनुसंधान करते रहो, कोई दुःख नहीं होगा।
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हमारी समस्या क्या है? --
हमारी प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या -- परमात्मा की प्राप्ति है। इससे भिन्न कोई अन्य समस्या हमारी नहीं है। अन्य सब समस्याएँ परमात्मा की हैं। अपनी सब समस्याएँ परमात्मा को बापस कर दो। अपनी चेतना कूटस्थ में रखो और निरंतर परमात्मा का ध्यान करो। ध्यान से मेरा अभिप्राय है -- निजात्मा में रमण। कोई समस्या नहीं रहेगी।
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और कोई बात नहीं है। मेरे से फोन पर अधिक बात करने का प्रयास मत करो। अधिक बात करने से मुझे पीड़ा होती है। ७६ वर्ष की आयु का यह शरीर महाराज एक धोखेबाज मित्र है। इसने आजकल धोखा देना आरंभ कर दिया है।
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लोग पूछते हैं कि भगवान कहाँ हैं? उनसे मैं पूछता हूँ कि भगवान कहाँ नहीं है?
भगवान हैं, अभी इसी समय यहीं पर, हर समय और सर्वत्र हैं। फर्क इतना ही है कि मैं उन्हें इसी समय अनुभूत कर रहा हूँ, हो सकता है आप भी कर रहे हों।
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आप सब को नमन !! ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जनवरी २०२३
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