Friday, 20 January 2023

धन्य हैं वे ब्रह्मस्वरूप भजनानन्दी ---

 धन्य हैं वे ब्रह्मस्वरूप भजनानन्दी, जो भगवान का अनन्य भाव से दिन-रात निरंतर भजन करते हैं। मैं उन्हें कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ। वे धन्य हैं। वे धन्य हैं। वे धन्य हैं।

वे मुझे भी अपना बना लें।
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सारी साधनाएँ - एक बहाना मात्र हैं, वैसे ही जैसे किसी बच्चे के हाथ में कोई खिलौना पकड़ा देते हैं। शरणागति भी एक खिलौना है। भगवान की कृपा ही मेरा कल्याण कर सकती है।
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हे प्रभु, मैं अपने अच्युत स्वरूप को भूल कर च्युत हो चुका हूँ और मरे हुये के समान हूँ। मुझ अकिंचन पर कृपा कर के अपना पूर्ण प्रेम दो, श्रद्धा और विश्वास दो; अपने साथ एक करो। मेरी कमियों को दूर करो, मेरा कल्याण आपकी कृपा पर ही निर्भर है; न कि किसी साधना पर।
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भगवान गीता में कहते हैं --
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः॥८:१४॥"
अर्थात् - हे पार्थ ! जो अनन्यचित्त वाला पुरुष मेरा स्मरण करता है, उस नित्ययुक्त योगी के लिए मैं सुलभ हूँ अर्थात् सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ॥
(अनन्यचित्त अर्थात् नित्य-समाधिस्थ जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा का स्मरण करता है। सततम् का अर्थ है निरंतरता। नित्यशः का अर्थ है नित्य जीवन पर्यंत। ऐसे व्यक्ति को भगवान की प्राप्ति अनायास ही हो जाती है)
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मेरे पास अब कोई शब्द नहीं हैं। भगवान तो हृदय में बैठे हैं, और सब कुछ जानते हैं। मेरा कल्याण करो। मुझे अपना बना लो।
ॐ तत्सत् !!
१८ जनवरी २०२३

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