सच्चिदानंद की भावातीत अनुभूति ---
.
सच्चिदानंद की भावातीत अनुभूति, और उसमें स्वयं के विसर्जित होने का बोध -- परमात्मा का आशीर्वाद है। यह मनुष्य जीवन की उच्चतम उपलब्धि और स्थिति है, जिसमें निरंतर बने रहना चाहिये। इसे "ब्राह्मी-स्थिति" भी कह सकते हैं, "कैवल्य" या "कूटस्थ-चैतन्य" भी कह सकते हैं। ये सब पर्यायवाची शब्द हैं। यहाँ किसी भी तरह का विकल्प यानि किसी भी तरह की "किन्तु-परंतु" नहीं होती। जहां तक मैं समझता हूँ, इसमें बने रहना ही -- "परमात्मा को समर्पण" है।
.
"स्कन्द-पुराण" के उत्तर खंड में दी हुई "गुरुगीता" के निम्न श्लोक में इसकी कुछ कुछ अभिव्यक्ति है। अन्यत्र भी कहीं है तो उसका मुझे नहीं पता।
"ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम्, भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि॥"
.
यहाँ गुरु रूप में स्वयं परमशिव है, जिनके स्मरण मात्र से जन्म और संसार के सारे बंधन समाप्त हो जाते हैं। जो शिव हैं, वे ही विष्णु हैं। और जो विष्णु हैं, वे ही शिव हैं।
"ॐ नमः शिवाय विष्णु रूपाय शिव रूपाय विष्णवे।
शिवस्य हृदयं विष्णुं विष्णोश्च हृदयं शिवः॥"
“यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात्। विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे॥”
"कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात्।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि॥"
"अच्युतम् केशवं राम नारायणं,
कृष्ण दामोदरम् वासुदेवं हरिं।
श्रीधरं माधवं गोपिका वल्लभं,
जानकी नायकं रामचंद्रम भजे॥"
.
ॐ तत्सत् ॥ ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जनवरी २०२५
.
पुनश्च: -- यह जीवन परमशिव परमात्मा को पूर्णतः समर्पित है। इसमें परमशिव के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है। ॐ ॐ ॐ !!
No comments:
Post a Comment