हम अपने बच्चों को जो प्यार करते हैं, वह वास्तव में परमात्मा को प्यार करते हैं। हमारे बच्चे भी परमात्मा के रूप में उस प्यार को स्वीकार करते हैं।
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सभी माता-पिताओं से मेरा हाथ जोड़ कर अनुरोध है कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें, और घर में खूब प्यार दें, जिसके लिए वे घर से बाहर प्यार नहीं ढूंढें। मनोवैज्ञानिक रूप से --
* जिन बच्चों को (विशेष रूप से बालिकाओं को) घर में बाप का प्यार नहीं मिलता है, वे बड़े होकर जीवन में पर पुरुषों में प्यार ढूंढते हैं।
* जिन बच्चों को (विशेष रूप से बालकों को) माँ का प्यार नहीं मिलता है, वे बड़े होकर अपने जीवन में पर स्त्रियों में प्यार ढूंढते हैं।
अतः माँ और बाप दोनों का प्यार बच्चों के विकास के लिए अति आवश्यक है।
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मैंने जीवन में जो प्रत्यक्ष स्वयं देखा है वही कह रहा हूँ --
(१) मेरे साथ कुछ ऐसे सहकर्मी भी थे जो घर में सुन्दर पत्नी और समझदार वयस्क बच्चों के होते हुए भी बेशर्म होकर परस्त्रीगामी थे। गहराई से विचार करने पर मैनें पाया कि उनकी विकृति का कारण बचपन में उन को माँ से प्यार न मिलना था।
(२) ऐसे ही कुछ महिलाओं को भी मैंने देखा है जो घर में अच्छे पति और संतानों के होते हुए भी परपुरुषगामी थीं। वे भी अपने बाल्यकाल में पिता के प्रेम से वंचित थीं। कुसंगति दूसरा कारण था।
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बच्चों को अपने स्वयं के आचरण से, अपना स्वयं का उदाहरण देकर अच्छे से अच्छे संस्कार दें। अपने बच्चों को, विशेष रूप से अपनी लड़कियों को वामपंथी और सेकुलर प्रभाव से बचाएँ, अन्यथा परिणाम बड़े दुखद होंगे। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ जनवरी २०२५
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