Saturday, 29 October 2022

जब भगवान की अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति प्राप्त हो जाये, तभी मानिए कि आध्यात्म में कुछ उपलब्धि हुई है, अन्यथा हम बिलकुल शून्य हैं ---

जब भगवान की अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति प्राप्त हो जाये, तभी मानिए कि आध्यात्म में कुछ उपलब्धि हुई है, अन्यथा हम बिलकुल शून्य हैं ---

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हम एक शाश्वत आत्मा हैं, यह देह नहीं। आत्मा का स्वधर्म है -- निज जीवन में परमात्मा से परमप्रेम, व स्वयं के माध्यम से निरंतर परमात्मा की अभिव्यक्ति। यही सत्य-सनातन-धर्म है। हम सदा अपने स्वधर्म का पालन पूर्ण श्रद्धा, विश्वास व निष्ठा से करें।
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भारत में सनातन धर्म की रक्षा, पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण स्वयं भगवान की परम कृपा से ही होगा, जिसके लिए वे वचनबद्ध हैं। अधर्मी तमोगुणी आसुरी दानव समाज ने इस सनातन धर्म को नष्ट करने का सदा भरपूर प्रयास किया है, और अभी भी कर रहा है। दानव समाज -- एक असत्य और अंधकार की शक्ति है, जिस का पराभव सुनिश्चित है। हम अपने स्वधर्म का अनवरत रूप से निरंतर सदा पालन करते रहें, तभी हमारी रक्षा होगी।
इसके लिए --
(१) परमप्रेम (भक्ति) के साथ भगवान का सदा स्मरण करते रहें। उनकी निरंतर उपस्थिती का सदा आभास रहे।
(२) संस्कृत भाषा का मूलभूत ज्ञान प्राप्त करना ही होगा। यह देवत्व की भाषा है।
(३) अपनी सभी कमजोरियों को दूर करें। हम हर तरह से (भौतिक, आर्थिक, प्राणिक, मानसिक, ज्ञान-विज्ञानमय, व आध्यात्मिक रूप से) शक्तिशाली बनें।
(४) नित्य सायं/प्रातः नियमित रूप से निमित्त मात्र होकर संध्या करें। जिनका उपनयन संस्कार हो चुका है वे गायत्री मंत्र के साथ करें। अन्य सब अपनी अपनी श्रद्धानुसार किसी अन्य वैदिक/पौराणिक मंत्र के साथ करें। कमर को सीधी, व ठुड्डी को भूमि के समानान्तर रखते हुए, ऊनी कंबल के आसन पर बैठकर, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह रखते हुए, भ्रूमध्य में भगवान नारायण, या शिव, या उनके किसी अवतार, या अपने गुरु का ध्यान करें। बैठने में कठिनाई हो तो नितंबों के नीचे एक गद्दी या तकिया लगा लें। हर श्वास के रेचक-पूरक के साथ साथ अजपा-जप (हंसः योग) करें। कुंभक के समय प्रणव या गुरु-प्रदत्त बीज मंत्र का मानसिक श्रवण करें। जब सुषुम्ना की ब्रह्मनाड़ी में कुंडलिनी जागृत हो जाये (जो साधना में बड़ी सामान्य से सामान्य और बहुत छोटी से छोटी नगण्य धटना है, कोई बड़ी बात नहीं है) तो उसके साथ साथ ज्योतिर्मय कूटस्थ सूर्यमण्डल में परमशिव या पुरुषोत्तम का ध्यान करें।
(५) उपासना के पश्चात समष्टि के कल्याण की प्रार्थना करें।
(६) पूरे दिन जो भी कार्य करें, उसमें कर्ता भगवान को ही बनायें, स्वयं निमित्त मात्र होकर ही रहे। जीवन के केंद्र-बिन्दु स्वयं परमात्मा हों।
(७) हठयोग के अनेक आसन, मुद्राएँ, बंध, और क्रियाएँ साधना में बड़ी सहायक है। वे किसी हठयोग गुरु से सीखें।
(८) दिन में एक बार संस्कृत भाषा में ही वेदमंत्रों का पाठ करें। वे बड़े शक्तिशाली है। उन्हें कोई छोटा-मोटा (दानव समाज के अनुसार भेड़-बकरी-गायें चराने वाले आर्य गड़रियों के गीत) शब्दजाल न समझें। वेदों में प्रार्थना के रूप में अनेक सूक्त है। उनमें से मुख्य हैं -- पुरुष सूक्त, श्री सूक्त, रुद्र सूक्त, सूर्यसूक्त, और भद्र सूक्त। इनमें से किसी एक का या सभी का श्रद्धा भक्ति से पाठ करें।
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आज से शारदीय नवरात्रों का आरंभ है। भगवती से प्रार्थना है की मेरा मन स्वयं में लगाए रखें। किसी भी तरह का कोई भटकाव न हो। संसार के लिए मैं उपलब्ध नहीं रहूँगा।
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आपको किसी भी तरह का कोई संशय या जिज्ञासा हो तो किन्हीं ब्रहमनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य के चरणों में बैठकर उन से अपने संशयों का निवारण करें। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२६ सितंबर २०२२

1 comment:

  1. मेरी बुद्धि रूपी कन्या की आयु बहुत अधिक हो गई है। इसका निरंतर क्षर होता जा रहा है, इसलिए इसकी सुंदरता समाप्त हो गई है। यह सिर्फ भगवान से ही विवाह करना चाहती है, अन्य कोई इसे स्वीकार्य नहीं है। पता नहीं भगवान इस कुरूप किंकरी से विवाह करेंगे भी या नहीं। मैं तो निरंतर क्षर हो रहे अपने मन, चित्त और अहंकार को भी दहेज में देना चाहता हूँ। स्वीकार तो उन्हें करना ही पड़ेगा।
    प्रारब्ध ने चाहे ठोकरें मार मार कर दबा दिया हो, लेकिन मेरी भक्ति कभी दब नहीं सकती। भगवान भी मेरे बिना रह नहीं सकेंगे। उन्हें आना ही पड़ेगा।
    ॐ तत्सत् !!
    कृपा शंकर
    १३ सितंबर २०२२

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