Saturday 29 October 2022

हरिः तुम हरो जन की पीर ---

"हरिः" शब्द के अनेक गहन अर्थ हैं। जो हमारी कामनाओं, वासनाओं, पीड़ाओं, और दुःखों को चुपचाप हर ले (यानि चोरी कर ले), वे "हरिः" हैं। वे कब हमारे दुःखों का शमन कर देते हैं, हमें पता ही नहीं चलता।
इसी तरह "श्री" शब्द के भी अनेक गहन अर्थ हैं। हम श्वास लेते हैं, वह "श" है। उसके साथ अग्नि बीज "र" और शक्ति बीज "ई" लगा देने से वह "श्री" हो गया। श्वास रूपी अग्नि की शक्ति "श्री" है।
गहरे ध्यान में सुषुम्ना में जब कुंडलिनी शक्ति जागृत होकर ऊपर उठती है, तब हsssss की बड़ी सूक्ष्म ध्वनि सुनाई देती है। इसी तरह जब कुंडलिनी नीचे की ओर जाती है तब रिःइइइइइ की सूक्ष्म ध्वनि सुनाई देती है। मेरे लिए यही हरिःनाम है। इसी में लगन लग जाती है।
कुंभक की अवस्था में जब सांस रुक जाती है तब ध्यान में अपने आप ही ओंकार की ध्वनि सुनाई देने लगती है, जो सुनाई देते ही रहती है। जब तक न चाहो तब तक बंद ही नहीं होती। मेरे लिए यह ही "श्रीहरिः" है। यह उनका निराकार रूप है।
साकार रूप में वे भगवान श्रीकृष्ण हैं। भगवान वासुदेव (जो सर्वत्र समान रूप से व्याप्त हैं, वे ही श्रीहरिः हैं।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२९ सितंबर २०२२

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