Saturday, 29 October 2022

प्रार्थना योग्य कौन है? ---

 प्रार्थना योग्य कौन है?

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प्रार्थना उसी की की जाती है जिसके प्रति श्रद्धा हो। श्रद्धा के बिना किया हुआ कोई भी साधना कभी सफल नहीं हो सकती। श्रद्धा के बिना किया हुआ कोई लौकिक कर्म भी कभी सफल नहीं होता। श्रद्धा किसी गलत दिशा में हो तो निराशा ही हाथ लगती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं --
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥४:३९॥"
अर्थात् - श्रद्धावान्, तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है॥
"अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः॥४:४०॥"
अर्थात् - अज्ञानी तथा श्रद्धारहित और संशययुक्त पुरुष नष्ट हो जाता है, (उनमें भी) संशयी पुरुष के लिये न यह लोक है, न परलोक और न सुख॥
"योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्।
आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय॥४:४१॥"
अर्थात् - जिसने योगद्वारा कर्मों का संन्यास किया है, ज्ञानद्वारा जिसके संशय नष्ट हो गये हैं, ऐसे आत्मवान् पुरुष को, हे धनंजय ! कर्म नहीं बांधते हैं॥
"तस्मादज्ञानसंभूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनाऽऽत्मनः।
छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत॥४:४२॥"
इसलिये अपने हृदय में स्थित अज्ञान से उत्पन्न आत्मविषयक संशय को ज्ञान खड्ग से काटकर, हे भारत ! योग का आश्रय लेकर खड़े हो जाओ॥
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रामचरितमानस के मंगलाचरण में लिखा है --
"भवानी शंकरौ वन्दे,श्रद्धा विश्वास रुपिणौ।
याभ्यां बिना न पश्यन्ति,सिद्धा: स्वन्तस्थमीश्वरं॥"
अर्थात् - मैं भवानी और शंकर की वन्दना करता हूँ, जो श्रद्धा और विश्वास के रूप में सबके हृदय में वास करते हैं। बिना श्रद्धा और विश्वास के सिद्ध भी अपने अंदर बैठे ईश्वर को नहीं देख सकते हैं।
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इसलिए मैं यही बात कहना चाहता हूँ की जिस विषय में श्रद्धा हो, वहीं अपना मन लगायें। यदि भगवान में श्रद्धा नहीं हो तो बेकार की बातों से यहाँ अपना समय नष्ट न करें। मेरा यह फेसबुक पेज सिर्फ श्रद्धावानों के लिए है। मैं भी इस भौतिक शरीर में जीवित हूँ तो भगवान में श्रद्धा के कारण ही हूँ। भगवान में श्रद्धा ही मेरा जीवन है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१९ सितंबर २०२२

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