ईश्वर को प्राप्त करने का हठ भी बहुत गलत है। ऐसा हठ नहीं करना चाहिए। क्या पता हमारा यह भौतिक शरीर -- ईश्वर के तेज को सहन करने में समर्थ है या नहीं। एक २४ वोल्ट के बल्ब को करोड़ों वोल्ट की विद्युत के साथ जोड़ देने से उस बल्ब की क्या हालत होगी, वैसी ही हालत हमारी देह की भी हो सकती है।
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एक निजी अनुभूति है जिसे बताने की मुझे आंतरिक अनुमति है। आज प्रातः के ध्यान में जब मेरी चेतना सूक्ष्म जगत में थी, तब किसी सूक्ष्म जगत की एक अदृश्य महान आत्मा ने ही मुझसे एक बात कही। उसने कहा कि तुम्हारा यह शरीर ईश्वर की आंशिक चेतना को सहन करने में भी असमर्थ है। ईश्वर की अनुभूति अपने आप ही होने दो, कोई हठ मत करो, अन्यथा यह शरीर रूपी साधन ही नष्ट हो जाएगा। कहने वाले के शब्द बहुत स्पष्ट और प्रभावी थे, अभी तक मुझे ज्यों के त्यों याद हैं।
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पूरी बात समझ में आ गई। अब कोई जल्दी नहीं है। भगवान मिलें या न मिलें, सब कुछ उन पर निर्भर है। मैं उनके प्रति समर्पित हूँ। उन की पूर्ण कृपा मुझ अकिंचन पर है। भगवान से भी कुछ नहीं चाहिए। उनकी उपस्थिती का आभास ही मेरा आनंद और सत्संग है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१७ सितंबर २०२२
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