Saturday 29 October 2022

अहम् इन्द्रः अस्मि, पराजितः न भवामि, "अहमिन्द्रो न पराजिग्ये" ---

 अहम् इन्द्रः अस्मि, पराजितः न भवामि, "अहमिन्द्रो न पराजिग्ये" ---

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मैं इंद्र हूँ, मेरी पराजय नहीं हो सकती। इस रणभूमि में मैं परमात्मा से अपने संरक्षण की प्रार्थना करता हूँ। मेरी रक्षा हो। मेरा शत्रु कहीं बाहर नहीं, मेरे अवचेतन मन में छिपा हुआ तमोगुण ही है। लगता है यह कहीं जायेगा नहीं, मुझे ही इससे ऊपर उठना पड़ेगा। हे परमशिव, मुझे शक्ति दो।
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सत्य को जानने/समझने की प्रबल जिज्ञासा ही मुझे इस मार्ग पर ले आई। अन्यथा मुझमें किसी भी तरह की कोई पात्रता नहीं थी। मेरे जीवन में अब तक की एकमात्र उपलब्धि यही है कि करुणावश भगवान ने मुझ अकिंचन पर अपनी परम कृपा कर के मेरे सारे संशय दूर करते हुए आगे का मार्ग प्रशस्त किया है।
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भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बताया है कि हम नित्यमुक्त हैं। किसी तरह का कोई बंधन हमारे पर नहीं है। जीवन में सदा सत्यनिष्ठ रहें। स्वयं के साथ छल न करें। किसी भी तरह का ढोंग और दिखावा न करें। हम महासागर में खड़ी उन दृढ़, अडिग और शक्तिशाली चट्टानों की तरह बनें, जिन पर प्रचंड लहरें बड़े वेग से टक्कर मारती हैं, लेकिन चट्टानों पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। हम परशु की तरह तीक्ष्ण बनें, जिस पर कोई गिरे तो कट जाए, और जिस पर परशु गिरे वह भी कट जाये। हमारे में स्वर्ण की सी पवित्रता हो, जिसे कोई अपवित्र न कर सके। किसी भी तरह की आत्म-हीनता की कोई भावना हम में न हो। झूठे आदर्शों, झूठे नारों, व भ्रामक विचारों से दूर रहें।
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सत्य ही परमात्मा है, और सत्य ही सबसे बड़ा गुण है। दूसरों के कन्धों पर रख कर बन्दूक न चलाएँ। अपनी कमी को स्वयं दूर करें, दूसरों को दोष न दें। हमारा लक्ष्य परमात्मा है, हमें अपनी यात्रा अकेले ही पूरी करनी होगी। कोई अन्य तो हो ही नहीं सकता। अनवरत अकेले ही चलते रहें। जब एक बार यह निश्चय कर लिया है कि हमें कहाँ जाना है, तब यह न सोचें कि हमारे साथ कोई और भी चल रहा है या नहीं। हम अनवरत चलते रहें। भगवान की सृष्टि में कोई दोष नहीं है। सारे दोष हमारी ही सृष्टि में हैं, जिन्हें सिर्फ हम ही दूर कर सकते हैं। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१ अक्तूबर २०२२

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