मेरे कुछ आध्यात्मिक मित्र हैं जो ध्यान-योग व श्रीविद्या के बड़े निष्ठावान साधक हैं। उन्होने भगवती की कृपा से अपने आध्यात्मिक और लौकिक दोनों ही क्षेत्रों में बड़ी उन्नति की है। मेरा यह मानना है कि हमें अपने बालकों को उचित समय पर --
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(१) उपनयन संस्कार करवा कर दिन में दो बार संध्या गायत्री व प्राणायाम करने की आदत डालनी चाहिए। उनके साथ साथ हम स्वयं भी करें।
(२) उन्हें संस्कृत भाषा का मूलभूत आवश्यक ज्ञान व शुद्ध उच्चारण करना अवश्य सिखवायें।
(३) उन्हें वैदिक श्रीसूक्त कंठस्थ करवाएँ, जिसका वे नित्य दिन में कम से कम एक बार पाठ करें। बाद में वे वैदिक पुरुषसूक्त, रुद्रसूक्त, भद्रसूक्त और सूर्यसूक्त का भी पाठ कंठस्थ याद कर सकते हैं। इन वेदमंत्रों का नित्य नियमित पाठ उन्हें बहुत तेजस्वी/ओजस्वी बनाएगा।
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इतना तो मैं कह सकता कि वे बालक निश्चित रूप से धर्मरक्षक व सत्यनिष्ठ बनेंगे। हम स्वयं भी अपने धर्म की रक्षा करने में समर्थ होंगे। धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है।
ॐ तत्सत् !!
३० सितंबर २०२२
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