Saturday, 29 October 2022

ब्राह्मणों के संस्कार ब्राह्मण बालकों में कैसे जागृत किए जाएँ ? ---

 ब्राह्मणों के संस्कार ब्राह्मण बालकों में कैसे जागृत किए जाएँ ? ---

(१) प्रत्येक ब्राह्मण बालक को उपनयन संस्कार के साथ साथ संध्या विधि सिखा देनी चाहिए।
(२) अभ्यास कराते कराते निम्न पाँच वैदिक सूक्तों का पाठ भी कंठस्थ करा देना चाहिए --
(१) भद्र सूक्त, (२) पुरुष सूक्त, (३) श्री सूक्त, (४) रुद्र सूक्त और (५) सूर्यसूक्त॥
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सायं प्रातः दिन में दो बार संध्या/गायत्रीजप/प्राणायाम; और दिन में एक बार उपरोक्त पांचों सूक्तों का पाठ -- अपने धर्म पर अडिग बना देगा। ये वैदिक सूक्त बहुत छोटे छोटे हैं, लेकिन बहुत अधिक प्रभावशाली हैं।
जो बालक अङ्ग्रेज़ी स्कूलों में पढे हैं, और संस्कृत नहीं पढ़ सकते, उन्हें भी अभ्यास द्वारा ये सिखा देने चाहियें।
किसी भी परिस्थिति में एक दिन में कम से कम दस (की संख्या में) गायत्री मंत्र का जप तो अनिवार्य है।
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भद्र सूक्त का पाठ :---
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आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ॥१॥
देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना, रातिरभि नो निवर्तताम् ।
देवाना, सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे ॥२॥
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम् ।
अर्यमणं वरुण सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत् ॥३॥
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ॥४॥
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम् ।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ॥५॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥६॥
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निर्जिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह ॥७॥
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवार्छ सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥८॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥९॥
अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।
विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥१०॥
द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व,
शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥११॥
ॐ शांति शांति शांति॥
इति: भद्र सूक्तम्॥ [शु० यजुर्वेद ]
२५ सितंबर २०२२

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