वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः ..... (यजुर्वेद ९:२३)
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अर्थात् "हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत ओर जाग्रत बनाए रखेंगे"| पुरोहित का अर्थ होता है जो इस पुर का हित करता है| प्राचीन भारत में शायद ऐसे व्यक्तियों को पुरोहित कहते थे जो राष्ट्र का दूरगामी हित समझकर उसकी प्राप्ति की व्यवस्था करते थे| पुरोहित में चिन्तक और साधक दोनों के गुण होते हैं, जो सही परामर्श दे सकें| हे पुरोहितो, इस राष्ट्र में जागृति लाओ और इस राष्ट्र की रक्षा करो|
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ऋग्वेद का प्रथम मन्त्र है ..... "अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् ||"
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मैं यहाँ आध्यात्मिक दृष्टी से नहीं भौतिक दृष्टी से बात कर रहा हूँ, इसलिए मेरी बातों को कोई अन्यथा न ले| फेसबुक पर अपने विचारों से ज़रा सी भी असहमति होते ही लोग बिना पूरा लेख पढ़े, लेखक के भावों को समझे बिना ही दुर्वचनों और गालियों की बौछार कर देते हैं| ऐसे लोग मुझे अपने मित्रता-संकुल से बाहर कर दें तो उनकी बड़ी कृपा होगी|
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भौतिक दृष्टी से इस पृथ्वी के देवता अग्नि हैं| भूगर्भ में जो अग्नि रूपी ऊर्जा (geothermal energy) है, उस ऊर्जा, और सूर्य की किरणों से प्राप्त ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन है| वह अग्नि ही हमें जीवित रखे हुए है| इस पृथ्वी से हमें जो भी धातुएं और रत्न प्राप्त होते हैं वे इस भूगर्भीय अग्नि रूपी ऊर्जा से ही निर्मित होते हैं| अतः यह ऊर्जा यानी अग्नि ही इस पृथ्वी के देवता हैं, वे अग्निदेव ही इस पृथ्वी के पुरोहित हैं, ऐसी मेरी सोच है|
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जैसा मैं समझता हूँ ऊर्जा को ही अग्नि का नाम दिया हुआ है| हमारे विचारों और संकल्प के पीछे भी एक ऊर्जा है| ऐसे ऊर्जावान व्यक्तियों को ही हम पुरोहित कह सकते हैं जो अपने संकल्पों, विचारों व कार्यों से हमारा हित करने में समर्थ हों| ऐसे लोगों को ही मैं निवेदन करता हूँ कि वे इस राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३ दिसंबर २०१८
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अर्थात् "हम पुरोहित राष्ट्र को जीवंत ओर जाग्रत बनाए रखेंगे"| पुरोहित का अर्थ होता है जो इस पुर का हित करता है| प्राचीन भारत में शायद ऐसे व्यक्तियों को पुरोहित कहते थे जो राष्ट्र का दूरगामी हित समझकर उसकी प्राप्ति की व्यवस्था करते थे| पुरोहित में चिन्तक और साधक दोनों के गुण होते हैं, जो सही परामर्श दे सकें| हे पुरोहितो, इस राष्ट्र में जागृति लाओ और इस राष्ट्र की रक्षा करो|
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ऋग्वेद का प्रथम मन्त्र है ..... "अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् ||"
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मैं यहाँ आध्यात्मिक दृष्टी से नहीं भौतिक दृष्टी से बात कर रहा हूँ, इसलिए मेरी बातों को कोई अन्यथा न ले| फेसबुक पर अपने विचारों से ज़रा सी भी असहमति होते ही लोग बिना पूरा लेख पढ़े, लेखक के भावों को समझे बिना ही दुर्वचनों और गालियों की बौछार कर देते हैं| ऐसे लोग मुझे अपने मित्रता-संकुल से बाहर कर दें तो उनकी बड़ी कृपा होगी|
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भौतिक दृष्टी से इस पृथ्वी के देवता अग्नि हैं| भूगर्भ में जो अग्नि रूपी ऊर्जा (geothermal energy) है, उस ऊर्जा, और सूर्य की किरणों से प्राप्त ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन है| वह अग्नि ही हमें जीवित रखे हुए है| इस पृथ्वी से हमें जो भी धातुएं और रत्न प्राप्त होते हैं वे इस भूगर्भीय अग्नि रूपी ऊर्जा से ही निर्मित होते हैं| अतः यह ऊर्जा यानी अग्नि ही इस पृथ्वी के देवता हैं, वे अग्निदेव ही इस पृथ्वी के पुरोहित हैं, ऐसी मेरी सोच है|
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जैसा मैं समझता हूँ ऊर्जा को ही अग्नि का नाम दिया हुआ है| हमारे विचारों और संकल्प के पीछे भी एक ऊर्जा है| ऐसे ऊर्जावान व्यक्तियों को ही हम पुरोहित कह सकते हैं जो अपने संकल्पों, विचारों व कार्यों से हमारा हित करने में समर्थ हों| ऐसे लोगों को ही मैं निवेदन करता हूँ कि वे इस राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३ दिसंबर २०१८
अत्युत्कृष्ट
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ReplyDeleteव्याख्यान के लिए धन्यवाद् 🙏🏵️🌺🌸
ReplyDeleteDEVELOPMENT OF INDIA NEEDS development of all in knowledge :Natural and Government services also. You may say ""India of GANDHI JI and Ambedkar 's India not only ofso-called PUROHITA.
ReplyDeleteOfcourse...!
ReplyDeleteThis type of information of Vedas is the most inspiring for us. Mangalkamna.