Thursday, 30 March 2017

शीतलाष्टमी ....

शीतलाष्टमी ....
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"वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्‌, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्‌।"
शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप है| आज शीतलाष्टमी है| इस दिन का व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने हेतु प्राचीन काल से चला आ रहा है| इस अवसर पर श्रद्धालु दिन भर उपवास रखेंगे और शीतला माता की पूजा-अर्चना कर बासी भोजन का भोग लगाएँगे| ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी का व्रत रखने से छोटी माता का प्रकोप नहीं होता| चैत्र महीने से जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी प्रारंभ हो जाते हैं| शीतलाष्टमी व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने का प्राचीन काल से चला आ रहा व्रत है|
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इस व्रत में शीतल पदार्थों का माँ को भोग लगाया जाता है| कलश स्थापित कर पूजन किया जाता है तथा प्रार्थना की जाती है कि ...... चेचक, गलघोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, तीव्र दाह, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष शीतला माता की आराधना, पूजा से दूर हो जाएँ| माँ शीतला दिगंबर है, गर्दभ पर आरूढ है, शूप, मार्जनी और नीम पत्तों से अलंकृत है|
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शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बासौड़ा तैयार कर लिया जाता है| अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है| इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बासौड़ा के नाम से विख्यात है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३१ मार्च २०१६

Wednesday, 29 March 2017

तारक मन्त्र "राम" और प्रणवाक्षर "ॐ" दोनों एक ही हैं .....

तारक मन्त्र "राम" और प्रणवाक्षर "ॐ" दोनों एक ही हैं .....
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जिस प्रकार एक विशाल वृक्ष के बीज में उसकी शाखाएँ, पत्तियाँ और जड़ें निहित हैं वैसे ही एक अकेले "राम" नाम के भीतर यह समस्त सृष्टि समाहित है|
"राम" शब्द के भीतर ही "ॐ" मन्त्र भी निहित है| जैसे "ॐ" मंत्र का ध्यान और मनन करने से इस सृष्टि में कुछ भी दुःस्प्राप्य नहीं है और मोक्ष की प्राप्ति होती है वैसे ही परम सिद्ध तारक मन्त्र "राम" भी सर्वस्व और मोक्ष प्रदान करता है
सब गुरुओं के गुरु भगवान शिव हैं| वे स्वयं इस तारक मन्त्र की दीक्षा देते हैं|
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संस्कृत व्याकरण के अनुसार "ॐ" और :"राम" दोनों एक हैं|
राम = र् + आ + म् + अ |
= र् + अ + अ + म् + अ ||
हरेक स्वरवर्ण पुल्लिंग होने के कारण स्वतंत्र होता है, और हर व्यंजनवर्ण स्त्रीलिंग होने के कारण परतंत्र होता है| पाणिनी व्याकरण के "आद्यन्त विपर्यश्च" सूत्र के अनुसार अगर किसी शब्द के "र" वर्ण के सामने तथा वर्ण के पीछे "अ" आता है तो उसका "अ" वर्ण "उ" में बदल जाता है| विश्लेषण करने पर "राम" शब्द का अ सामने आता है|
अ + र् + अ + अ + म् |
इसलिए अ + र् + अ = उ |
अ + उ + ओ |
ओ + म् = ओम् या ॐ ||
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इसिलिय्र राम तारकमन्त्र है और हर दृष्टी से महामन्त्र है| भगवान शिव स्वयं इसका ध्यान करते हैं|
ॐ ॐ ॐ राम् ||

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साभार : एक परम संत की परम कृपा से, जिनके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम |

सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण ......

सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण ......
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अपने हर कार्य को पूरा मन लगाकर आत्मगौरव व स्वाभिमान के साथ पूर्णता से करने का पूरा प्रयास ..... सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण है|
यदि हमारे में यह भाव आ जाए कि हम जो भी कार्य कर रहे हैं वह परमात्मा के लिए और परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही कर रहे हैं, तो यह सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण होगा| इस भाव से किये गए कार्य से हमें पूर्ण संतुष्टि मिलेगी|
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एक सामान्य व्यक्ति को हम धर्मशास्त्रों की बड़ी बड़ी बातें नहीं समझा सकते| फिर धर्म की रक्षा और पुनर्स्थापना कैसे कि जाए? जिस व्यक्ति के कार्य में पूर्णता है, वह सबसे बड़ा धार्मिक है| अतः सभी को स्वाभिमान के साथ अपना हर कार्य पूर्णता से करने की प्रेरणा दी जानी चाहिए|


ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

श्रीमाँ का पांडिचेरी आगमन ....

29 March 2016

आज से एक सौ दो वर्ष पूर्व २९ मार्च १९१४ को एक महान ऐतिहासिक घटना हुई थी जिससे सम्पूर्ण विश्व में एक आध्यात्मिक क्रांति का सूत्रपात हुआ| इसी दिन श्रीमाँ ने पोंडिचेरी आकर श्री अरविन्द से भेंट की| यह एक महान ऐतिहासिक घटना थी जिसका पूरे विश्व की आध्यात्मिक चेतना पर प्रभाव पड़ा| भारत की स्वतंत्रता पर भी इसका प्रभाव पडा और भारत की स्वतंत्रता सुनिश्चित हुई|

श्री अरविन्द ने आश्रम का व सम्बन्धित सारा कार्य श्रीमाँ को सौंप दिया व स्वयं गहन साधना में चले गए| बाहर की दुनियाँ से उनका संपर्क सिर्फ श्रीमाँ के माध्यम से ही रहा| उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात्कार किया और भारत की स्वतंत्रता का वरदान माँगा| भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारे जन्मदिवस (15 अगस्त) को ही भारत स्वतंत्र होगा| उनका उत्तरपाड़ा में दिया भाषण एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है जिसे प्रत्येक भारतीय को पढना चाहिए|

भारत के भविष्य की रूपरेखा भी वे बना कर चले गए| यह कब होगा इसका समय तो उन्होंने नहीं बताया पर यह सुनिश्चित कर के चले गए कि एक अतिमानुषी चेतना का अवतरण होगा जो भारत का रूपान्तरण कर देगी| भारत की अखण्डता की भी भविष्यवाणी उन्होंने की है|

वे इतनी गहन साधना कर सके और इतना महान साहित्य रचा जिसमें अंग्रेजी भाषा का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य -- सावित्री -- भी है, श्रीमाँ के सक्रिय सहयोग के बिना सम्भव नहीं हो सकता था|
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श्रीमाँ की उससे अगले दिन की डायरी का यह लेखन है ----
“It matters little that there are thousands of beings plunged in the densest ignorance, He whom we saw yesterday is on earth; his presence is enough to prove that a day will come when darkness shall be transformed into light, and Thy reign shall be indeed established upon earth.”
- The Mother
30 March 1914.

हिन्दु नवसंवत्सर पर जागृत हो रही हिन्दू चेतना ......

28/03/2017
हिन्दु नवसंवत्सर पर जागृत हो रही हिन्दू चेतना ...
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आज जो हिंदुत्व की चेतना मैनें अपनी स्वयं की आँखों से युवाओं में देखी और अनुभूत की है, वह आज तक कभी इस जीवन में नहीं देखी थी| आज तो पूरा झुंझुनू (राजस्थान) नगर ही भगवा हो गया था, और सभी की साँसे थम सी गयी थीं जब नाथ सम्प्रदाय के अति लोकप्रिय युवा संत योगी विकासनाथ के नेतृत्व में नवसंवत्सर की दो किलोमीटर लम्बी शोभायात्रा सेठ मोतीलाल कॉलेज स्टेडियम से निकली और पाँच किलोमीटर चल कर केशव आदर्श विद्या मंदिर के खेल मैदान पर विसर्जित हुई|
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शोभायात्रा में आगे आगे पाँच सफ़ेद घोड़ों पर पाँच सशस्त्र युवा भगवा बाने में भगवा ध्वज के साथ चल रहे थे| उनके पीछे अनेक खुले वाहनों में श्वेत वस्त्रों में केसरिया साफा बांधे भगवा ध्वज फहराते हुए सशस्त्र युवा "जय श्रीराम" के नारों से आकाश गूंजा रहे थे| उनके पीछे एक वाहन में अपने भव्य और दिव्य रूप में युवा योगी विकासनाथ बिराजे हुए थे| उनके पीछे लगभग एक हज़ार पाँच सौ से अधिक युवा, मोटर साइकिलों/स्कूटरों पर सवार हो सिर पर भगवा पट्टी बांधे भगवा ध्वजों के साथ "जय श्रीराम" के गगनभेदी नारे लगाते हुए चल रहे थे| रास्ते में हर मोड़ पर पूरी शोभायात्रा पर पुष्पवर्षा हो रही थी| पूरे मार्ग को अनेक स्थानों पर वंदनवारों से सजाया गया था| अनेक युवा पैदल चलते हुए शस्त्र-संचालन की कला का प्रदर्शन कर रहे थे|
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कल २७ मार्च को सायं काल से देर रात्री तक केशव आदर्श विद्या मंदिर में अखिल भारतीय स्तर का हिंदी कवि सम्मलेन हुआ था नवसंवत्सर के उपलक्ष में|
कल २९ मार्च से नवसंवत्सर के उपलक्ष में ही मुनि आश्रम सभागार में वाणीभूषण पंडित प्रभुशरण तिवारी जी अगले सात दिनों तक मध्याह्न में अपनी ओजस्वी वाणी में रामकथा करेंगे|
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३० मार्च को तृतीया के दिन गणगौर की सवारी निकलेगी और गणगौर का मेला भरेगा| अष्टमी के दिन मंशामाता की पहाडी पर मंशामाता मंदिर में मेला भरेगा|
रामनवमी के दिन राम जी की शोभायात्रा चुणा चौक से निकलेगी जिसमें अनेक युवा अपनी शस्त्र कलाओं का प्रदर्शन करेंगे|
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अंग्रेजी नववर्ष तो लोग मद्यपान कर के नाच-गाकर मनाते हैं पर हिन्दू नववर्ष का आरम्भ ही माँ दुर्गा और भगवान श्रीराम की आराधना के साथ होता है| हिंदु नववर्ष .... शौर्य और भक्ति को जगाता है, वहीं अंग्रेजी नववर्ष .... विलासिता और अहंकार को| यही अंतर है|


जय माँ, जय श्रीराम ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

28/03/2017

सहसा विदधीत न क्रियाम् ..........

सहसा विदधीत न क्रियाम् ..........
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महाराष्ट्र के विदर्भ प्रान्त में एक अति तेजस्वी और परम विद्वान् निर्धन ब्राह्मण के घर जन्मे संस्कृत के महान कवि भारवी रुग्ण होकर अपनी मृत्यु शैय्या पर थे| उनकी युवा पत्नि ने अत्यंत व्यथित होकर पूछा कि आप चले गए तो मुझ निराश्रया का क्या होगा?

महाकवि ने विचलित हुए बिना ही ताड़पत्र पर एक श्लोक लिख दिया और कहा कि इसे बेच कर तुम्हें इतना धन मिल जाएगा कि अपना निर्वाह कर सकोगी| महाकवि भारवी इसके पश्चात स्वर्ग सिधार गए|

उनके गाँव के पास में ही एक हाट लगती थी जहाँ के एक अति समृद्ध वणिकपुत्र का नियम था कि जिस किसी व्यापारी की कोई वस्तु नहीं बिकती उसे वह मुंहमाँगे उचित मूल्य पर क्रय कर लेता था|
भारवी की पत्नि पूरे दिन बैठी रही पर उस ताड़पत्र का कोई क्रेता नहीं आया| सायंकाल जब हाट बंद होने लगी तब वह वणिकपुत्र वहाँ आया और पूछा कि हे माते, आप कौन हो और किस मूल्य पर यहाँ क्या विक्रय करने आई हो?
भारवी की पत्नि ने अपना परिचय देकर वह ताड़पत्र दिखाया और उसका मूल्य दो सहस्त्र रजत मुद्राएँ माँगा| वणिकपुत्र ने सोचा कि इतने महान विद्वान् की विधवा पत्नि एक श्लोक लिखा ताड़पत्र बेच रही है तो अवश्य ही इसमें कोई रहस्य है| उसे इस अत्यधिक मँहगे सौदे से क्षोभ तो बहुत हुआ पर उसने वह ताड़पत्र दो सहस्त्र रजत मुद्राओं में क्रय कर के उस पर लिखा श्लोक अपने शयनकक्ष की चाँदी की चौखट पर स्वर्णाक्षरों में खुदवा दिया ------
"सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम् |
वृणते हि विमृष्यकारिणाम् गुणलुब्धा स्वयमेव सम्पदः ||"

कुछ दिनों पश्चात उस वणिकपुत्र को अपने व्यापार के क्रम में सिंहल द्वीप (श्रीलंका) जाना पडा| उस समय उसकी पत्नि के पाँव भारी थे| वह एक जलयान में भारत की मुख्य भूमि से सामान ले जाता था जिसे वहाँ बेचकर वहाँ का सामान यहाँ विक्रय करने ले आता था| यही उसका मुख्य व्यापर था| कुछ राजकर्मचारियों और अन्य ईर्ष्यालु व्यापारियों के षड्यंत्र के कारण वहाँ के शासक ने उसे दोषी मानकर चौदह वर्षों के लिए कारागृह में डाल दिया| चौदह वर्ष पश्चात वहाँ के राजा को उसकी निर्दोषता का पता चला तो राजा ने उसका पूरा धन लौटा दिया और उचित क्षतिभरण कर के बापस भेज दिया|

उस जमाने में आज की तरह के द्रुत संचार साधन नहीं होते थे| साढ़े चौदह वर्ष पश्चात एक दिन अर्धरात्रि में वह वणिकपुत्र अपने घर पहुंचा| घर के प्रहरी को संकेत से शांत रहने का आदेश देकर अपनी पत्नी को आश्चर्यचकित करने के उद्देश्य से घर में घुसा और अपने शयनकक्ष की खिड़की से दीपक के मंदे प्रकाश में झाँक कर देखा तो पाया कि उसकी पत्नि एक युवक के साथ सो रही है|

यह दृश्य देखकर वह अत्यंत क्रोधित हुआ और अपनी पत्नि और उस के साथ सोये युवक की ह्त्या करने के उद्देश्य से तलवार निकाली और शयन कक्ष के भीतर घुसा| शयनकक्ष की चौखट के द्वार पर स्वर्णाक्षरों से लिखी महाकवि भारवी की कविता उसे दिखाई दी जिसमें लिखे ---- सहसा विदधीत न क्रियाम् ----- सहसा विदधीत न क्रियाम् ---- शब्द उसके कानों में गूंजने लगे| वह ठिठक कर खड़ा हो गया| द्वार पर हुई आहट से उसकी पत्नि जाग गयी|

विरह की अग्नि में जल रही उसकी पत्नि अपने पति को सामने देखकर प्रसन्नता से पागल हो उठी और साथ में सटकर सोये युवक को चिल्लाकर जगाया ---- उठो पुत्र, उठो, उठकर चरण स्पर्श करो, तुम्हारे जन्म के पश्चात पहली बार तुम्हारे पिताजी घर आये हैं|

वणिकपुत्र को याद आया कि जब वह घर से गया था तब उसकी पत्नि गर्भवती थी| उसकी आँखों में आंसू भर आये और उसने अपनी पत्नि और पुत्र को गले लगा लिया| भारी गले वह अपनी पत्नि और पुत्र को बोला कि आज मैं अपनी पत्नि और पुत्र की ह्त्या करने वाला था पर महाकवि भारवी की जिस कविता को मैंने दो सहस्त्र रजत मुद्राओं में यानि चाँदी के दो हज़ार सिक्कों में खरीदा था, उसने मुझे इस महापाप से बचा लिया| मुझे इस सौदे का क्षोभ था पर लाखों स्वर्ण मुद्राएं तो क्या, मेरा सर्वस्व भी इसके बदले में अति अल्प था|

यही है महाकवि भारवी के मन्त्र की महानता|
आज भी इन शब्दों का उतना ही महत्व है --- सहसा विदधीत न क्रियाम् ----- सहसा विदधीत न क्रियाम् ---- ||

अंग्रेजों से भारत की स्वतन्त्रता में सबसे बड़ा योगदान वीर सावरकर का था ....

विनायक दामोदर सावरकर पर कुछ दिनों पूर्व घटिया मानसिकता के लोगों ने एक आक्षेप किया है जिसकी मैं भर्त्सना करता हूँ|

भारत की अंग्रेजों से आज़ादी में सबसे बड़ा योगदान अगर किसी व्यक्ति का था तो वह थे वीर सावरकर| उन्होंने व उनके परिवार ने जितने अमानवीय कष्ट सहे उतने अन्य किसी ने भी नहीं सहे|

तीर्थयात्रा की तरह सभी को अंडमान की सेल्युलर जेल में वह कोठरी देखने जाना चाहिए जहां उन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा देकर रखा गया था| अन्य सब कोठरियों के सिर्फ एक ही दरवाज़ा है, पर उनकी कोठरी के दो दरवाज़े हैं|

जेल में जो अति अमानवीय यंत्रणा उन्होंने सही उसका अंदाज़ वह जेल अपनी आँखों से देखने के बाद ही आप लगा सकते हैं| जेल में ही उनको पता चला कि उनके भाई भी वहीं बन्दी थे| सारी यातनाएँ उन्होंने एक परम तपस्वी की तरह भारत माता की स्वतंत्रता हेतु एक तपस्या के रूप में सहन कीं| उनका पूरा जीवन ही एक कठोर तपस्या थी| पता नहीं हम में से कितने लोगों के कर्म उन्होंने अपने ऊपर लेकर काटे|

उनकी भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर लिखी पुस्तक भारत के क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्त्रोत थी| नेताजी सुभाष बोस को विदेश जाकर स्वतंत्रता हेतु संघर्ष करने की प्रेरणा उन्होंने ही दी थी|

उनका मानना था कि भारतीयों के पास न तो अस्त्र-शस्त्र हैं और न उन्हें चलाना आता है| अतः उन्होंने पूरे भारत में घूमकर हज़ारों युवकों को सेना में भर्ती कराया ताकि वे अंग्रेजों से उनके ही अस्त्र चलाना सीखें और समय आने पर उनका मुँह अंग्रेजों की ओर कर दें| इसका प्रभाव पड़ा और द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात भारतीय सैनिकों ने अँगरेज़ अधिकारियों को सलाम करना और उनके आदेश मानने से मना कर दिया| मुंबई में नौसेना का विद्रोह हुआ| इन सब घटनाओं से डर कर अँगरेज़ भारत छोड़ने को बाध्य हुए|

कुटिल अँगरेज़ भारत की सता अपने मानस पुत्रों को देकर चले गए| भारत को आज़ादी चरखा चलाने से नहीं अपितु भारतीय सैनिकों द्वारा अंग्रेज अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह के कारण मिली| जाते जाते अँगरेज़ भारत का जितना अधिक अहित कर सकते थे उतना कर के चले गए|

वीर सावरकर के अति मानवीय गुण स्पष्ट बताते हैं कि वे एक जीवन्मुक्त महापुरुष थे जिन्होनें भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए ही स्वेच्छा से जन्म लिया था| उनकी तपस्या का सबसे बड़ा योगदान था भारत की आज़ादी में| अब अंग्रेजों के मानस पुत्र ही उन पर आक्षेप लगा रहे हैं जो निंदनीय है|

धर्म की रक्षा धर्म के पालन से होगी, एक-दूसरे की निंदा व आलोचना से नहीं .....

धर्म की रक्षा धर्म के पालन से होगी, एक-दूसरे की निंदा व आलोचना से नहीं .....
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आजकल यह एक प्रचलन सा हो गया है कि धर्म की बात आते ही कोई तो धर्माचार्यों को गाली देना शुरू कर देता है, कोई समाज के नेताओं को, कोई प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को| खुद यह नहीं देखते कि उनका स्वयं का योगदान क्या है| वर्तमान परिस्थितियों में हम सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं, यह निश्चय कर के ही कुछ करना चाहिए| धर्म की रक्षा स्वयं के आचरण से ही होगी, अन्य कोई उपाय नहीं है|
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(१) हम जो भी कार्य करें वह अपनी क्षमतानुसार पूरे मनोयोग से और सर्वश्रेष्ठ करें| यह भाव रखें कि हम ईश्वर की प्रसन्नता के लिए, ईश्वर के लिए ही यह कार्य कर रहे है, न कि किसी मनुष्य को प्रसन्न करने के लिए| ईश्वर ने ही हमें कार्य करने का यह अवसर दिया है| धीरे धीरे परमात्मा को कर्ता बनाकर उसके उपकरण मात्र बन जाओ|
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(२) किसी की अनावश्यक आलोचना या निंदा न करें|
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(३) जीवन से ईर्ष्या-द्वेष और अहंकार को मिटाने का प्रयास करते रहें|
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(४) रात्रि को सोने से पूर्व नाम-स्मरण, जप, ध्यान आदि कर के ही सोयें|
प्रातःकाल उठते ही परमात्मा का स्मरण करें| पूरे दिन परमात्मा की स्मृति निरंतर प्रयास करके बनाए रखें|
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(५) पराये धन और पराई स्त्री/पुरुष कि कामना न करें|
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(६) अच्छा साहित्य पढ़ें, अच्छे लोगों के साथ रहें, और कुसंगति से दूर रहे|
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(७) स्वास्थ्यवर्धक अच्छा सात्विक भोजन लें| शराब और जूए से दूर रहें| पर्याप्त मात्रा में विश्राम करें| आयु के अनुसार शारीरिक व्यायाम कर के स्वस्थ रहें|
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उपरोक्त सब बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार कर के और उस पर आचरण कर के ही हम धर्म की रक्षा कर पायेंगे, अन्यथा नहीं| धर्माचरण बहुत आवश्यक है क्योंकि विश्व की ही नहीं, अपने देश की भी कई आसुरी शक्तियाँ अपने राष्ट्र को ही तोड़ना चाहती हैं| धर्माचरण ही हमें बचा पायेगा| भगवान की भक्ति के प्रचार-प्रसार से ही जातिवाद टूटेगा, देशभक्ति जागृत होगी और कभी गृहयुद्ध की सी स्थिति नहीं आएगी| अपने राष्ट्र, अपनी संस्कृति, अपने राष्ट्रधर्म और स्वाभिमान की रक्षा करें|
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जय जननी जय भारत ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०१६

नव सम्वत्सर की शुभ कामनाएँ और अभिनन्दन ....

नव सम्वत्सर विक्रम संवत २०७४ की शुभ कामनाएँ और अभिनन्दन|

हमारे जीवन का हर क्षण नववर्ष हो| आत्म-चैतन्य की अनुभूति में हम देश-काल से परे (beyond time and space) होते हैं| वहाँ न कोई भूत है और न भविष्य, सिर्फ वर्तमान का ही अस्तित्व है| पर लौकिक जगत में नवसंवत्सर का दिन साधना की दृष्टी से अति शुभ है| आज से वासंतीय नवरात्रों का प्रारम्भ हो रहा है और रामनवमी भी शीघ्र आने ही वाली है| आज से नौ दिनों में हमारा जीवन राममय हो, हमारे निज जीवन में राम का प्राकट्य हो, यह हमारा आज का शुभ संकल्प है|
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जगन्माता ..... महाकाली के रूप में हमारे चैतन्य में व्याप्त अशुभ संस्कारों का नाश करे, महालक्ष्मी के रूप में सारे शुभ संस्कार दे और महासरस्वती के रूप में आत्मज्ञान दे| आज यह हमारी प्रार्थना है|
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इस लौकिक जीवन का अधिकाँश काल व्यतीत हो चुका है, जीवन का संध्याकाल है और बहुत कम समय बचा है| लोग निंदा करें या स्तुति, धन आये या जाए, यह शरीर रहे या न रहे, पर इस बचे हुए शेष जीवन में हमें परमात्मा को प्राप्त करना ही है|
 

मन में शुभ संकल्प और दृढ़ निश्चय होगा तो परमात्मा की परम कृपा भी होगी और स्वतः मार्गदर्शन भी प्राप्त होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

Wednesday, 8 March 2017

भारत में महिलाओं की स्थिति .......

भारत में महिलाओं की स्थिति .......
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स्त्री और पुरुष दोनों एक ही गाडी के दो पहिये होते हैं| दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं| न तो स्त्री के बिना पुरुष रह सकता है और न पुरुष के बिना स्त्री| स्त्री जहाँ भाव प्रधान है, वहीं पुरुष विवेक प्रधान| मूल रूप से दोनों आत्मा हैं, आत्मा के कोई लिंग नहीं होता|
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भारत में स्त्रियों की स्थिति विदेशी आक्रमणों से पूर्व तक विश्व में सर्वाधिक सम्माननीय थी| भारत की नारियाँ विद्वान् और वीरांगणा होती थीं|
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भारत पर विदेशी आक्रमणकारी, पुरुषों को मार कर उनकी स्त्रियों का बलात् अपहरण कर लेते थे| आतताइयों द्वारा उन पर बहुत अधिक अत्याचार होता था| या तो वे बेच दी जाती या उन्हें घर में रखैल की तरह रख लिया जाता| इस कारण पर्दाप्रथा और बालविवाह का आरम्भ हुआ| जौहर की प्रथा क्षत्रानियों ने अपने मान सम्मान की रक्षा के लिए आरम्भ कीं|
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अंग्रेजों ने अपनी सैनिक छावनियों के आसपास वैश्यालय स्थापित किये जहाँ वे भारतीय विधवाओं को बलात् अपहरण कर उन्हें वैश्या बना देते थे ताकि उनके अँगरेज़ सिपाही बापस अपने देश जाने की जल्दी न करें| इस कारण सती प्रथा का आरम्भ हुआ| जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनियाँ थीं उनके आसपास के क्षेत्रों में ही विधवाएँ आत्मदाह कर लेती थी या उन्हें आत्मदाह के लिए बाध्य कर दिया जाता था| वहीं से सतीप्रथा का आरम्भ हुआ|
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स्त्रियों पर अबसे अधिक अत्याचार यूरोप में ही हुए जहाँ डायन होने के संदेह में करोड़ों महिलाओं की ह्त्या कर दी जाती थी|
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भारत में स्त्रियों की दुर्दशा विदेशी आक्रमणकारियों के कारण ही हुई| पर अब भारत का पुनर्जागरण हो रहा है| पुरुषों के साथ साथ महिलाएँ भी प्रबुद्ध होंगी|
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महिला उत्थान के नाम पर आज जहाँ स्त्री-पुरुष दोनों को एक-दूसरे के विरुद्ध खडा किया जा रहा है उसका मैं विरोध करता हूँ|
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दोनों मिलकर सहयोग और प्रेम से रहें और दोनों मिलकर अपने जीवन के परम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करें|

ॐ ॐ ॐ ||

होली की दारुण रात्री ......

होली की दारुण रात्री ......
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भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद को नमन करते हुए मैं होली के सुअवसर पर पाँच दिन पूर्व ही आप सब को भी सप्रेम सादर नमन करता हूँ| इस माह रविवार 12 मार्च 2017 के दिन होली का त्यौहार है| होली का एक आध्यात्मिक महत्त्व है|
होली की यह दारुण रात्री, देह की चेतना से ऊपर उठने की साधना का एक अवसर है| आत्म-विस्मृति ही सब दुःखों का कारण है| इस दारुण रात्री को गुरु प्रदत्त विधि से अपने आत्म-स्वरुप यानि सर्वव्यापी परमात्मा का ध्यान करें| इस रात्री में सुषुम्ना का प्रवाह प्रबल रहता है अतः निष्ठा और भक्ति से सिद्धि अवश्य मिलेगी|
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अपने गुरु नारद के द्वारा बताए हुए मन्त्रों से प्रह्लाद ने पाँचों तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली थी, इस से उन्हें प्रत्येक पदार्थ में परमात्मा के दर्शन होने लगे| उनका कुछ भी अनिष्ट नहीं हो सका और उनकी रक्षा के लिए भगवान को स्वयं प्रकट होना ही पड़ा| इस रात्रि में पाँचों तत्व विद्यमान रहते हैं|
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आध्यात्मिक साधना और मंत्र सिद्धि के लिए चार रात्रियों का बड़ा महत्त्व है| होली की रात्री दारुण रात्री है जो मन्त्र सिद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ है| इसके अतिरिक्त अन्य रात्रियाँ है .... कालरात्रि ,महारात्रि , और मोहरात्रि|
दारुण रात्री को की गयी मंत्र साधना बहुत महत्वपूर्ण और सिद्धिदायी है| अनिष्ट शक्तियों से रक्षा, रोग निवारण, शत्रु बाधा, ग्रह बाधा आदि समस्त नकारात्मक बाधाओं के निवारण के लिए किसी आध्यात्मिक रक्षा कवच की साधना अवश्य करें| मेरी टाइमलाइन वाल पर श्रद्धेय Swami Rupeshwaranand जी ने एक लेख टैग किया है उसे अवश्य पढ़िए जिस में उन्होंने कवच सिद्धी की विधि लिखी है|
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मैं तो व्यक्तिगत रूप से अपनी गुरु प्रदत्त साधना में रहूँगा और आप ध्यान में मुझे अपने समीप ही पाओगे| होली पर करने के कई तांत्रिक टोटके व साधनाएँ हैं जिन्हें लिखना मैं उचित नहीं समझता हूँ क्योकि मैं स्वयं उनकी साधना नहीं करता|
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इस सुअवसर का सदुपयोग करें और समय इधर उधर नष्ट करने की बजाय आत्मज्ञान ही नहीं बल्कि धर्म और राष्ट्र के अभ्युदय के लिए भी साधना करें| एक विराट आध्यात्मिक शक्ति के जागरण की हमें आवश्यकता है| यह कार्य हमें करना ही पड़ेगा| अन्य कोई विकल्प नहीं है|
पुनश्चः आप सब को नमन और होली की शुभ कामनाएँ|
ॐ ॐ ॐ ||

वास्तविक स्वतन्त्रता परमात्मा में ही है .....

 जिन्होनें कभी जन्म ही न लिया हो, जिनकी कभी मृत्यु भी नहीं हो सकती, उन भगवान परम शिव का ध्यान ही हमें इस देह की चेतना से मुक्त कर सकता है| हर हर महादेव !

 वास्तविक स्वतन्त्रता परमात्मा में ही है| क्या अच्छा है और क्या बुरा है, इसका निर्णय करने में हमारा विवेक भी विफल हो सकता है| परमात्मा को पूर्ण समर्पण ही अभीष्ट है| परमात्मा या प्रकृति ही अपने नियमों के अनुसार जो करे वह ही सही है| मोक्ष क्रिया से नहीं वरन् ज्ञान से होता है, इतना तो अच्छी तरह समझ में आता है| अज्ञान ही बंधन है| परम प्रिय परमात्मा से पृथकता दूर हो|

हम कृष्ण, काली, क्राइस्ट या अल्लाह किसी की भी आराधना करते हों, वास्तव में हम उस परम ज्योति की ही आराधना कर रहे हैं जो सर्वत्र सर्वव्यापी हम स्वयं है| पूरी सृष्टि उसी ज्योति का ही घनीभूत रूप है| समस्त सृष्टि मूल रूप में वह दिव्य ज्योति ही है| वह ज्योति ही अनाहत नाद के रूप में व्यक्त होती है, वही प्रणव यानि ओंकार है| वह दिव्य ज्योति व ओंकार और उससे परे भी जो भी है वह मैं स्वयं हूँ| समस्त सृष्टि मुझमें है और मैं समस्त सृष्टि में व उससे परे भी हूँ|
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शिवोहं शिवोहं अहं ब्रम्हास्मि || ॐ ॐ ॐ ||


सभी को सप्रेम सादर नमन| ॐ ॐ ॐ ||

Sunday, 5 March 2017

आध्यात्मिक रक्षा कवच की आवश्यकता ...

वर्तमान समय में अनिष्ट आसुरी शक्तियों से रक्षा के लिए घर में एक आध्यात्मिक सुरक्षा कवच का निर्माण आवश्यक है| प्रातः सायंकाल की आरती से, नियमित ध्यान साधना से, निरंतर हरि स्मरण से, या अमोघ शिव कवच, बजरंग बाण, दुर्गा कवच आदि में से किसी एक के पाठ से, एक रक्षा कवच का निर्माण होता है|

पूजा के समय शंख में जल रखें व उसमे तुलसी पत्र हो| पूजा के उपरांत वह जल घर के दरवाजे से लेकर सभी कमरों में छिडकें| इस कार्य में नियमितता और निरंतरता बनाए रखें|

माथे पर तिलक और शिखा धारण, परमात्मा में दृढ़ आस्था, सादा जीवन उच्च विचार, भारतीय वेषभूषा, घर का सात्विक वातावरण, सात्विक आहार, नियमित दिनचर्या ..... ये सब हमारी आसुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं|
आनेवाले संकटों से बचने और बचाने के लिए आध्यात्मिक शक्ति का आवाहन व संवर्धन आवश्यक हो गया है|

सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

तमोगुण बहुत अधिक शक्तिशाली है .....

तमोगुण बहुत अधिक शक्तिशाली है| मैं गुणातीत होने की साधना करता हूँ, पर ज़रा सा भी असावधान होते ही तमोगुण आकर मेरे विवेक की अग्नि को अपनी राख से ढक देता है|
अतः साधू, सावधान !
हर समय सजग और सतर्क रह, ज़रा सा भी असावधान मत हो|
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यदि मैं सजग हूँ तो मेरे साथ कुछ भी अनिष्ट नहीं हो सकता, कोई मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता जब तक उसमें परमात्मा की स्वीकृति न हो|
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मैं दुखी और सुखी तो अपने पाप और पुण्य के विचारों से अर्जित प्रारब्ध कर्मों से हूँ, न कि दूसरे व्यक्तियों द्वारा| द्वेषी व्यक्ति तो मेरे हितैषी है क्योंकि वे मेरे पूर्व अर्जित पाप के भार को कम करते हैं| सुख-दुःख का कारण तो मेरे पुण्य और पाप के विचारों का फल हैं, इसमें दूसरे का कोई दोष नहीं है| जिस दुःख-सुख को मैनें अपने कर्मों से उत्पन्न किया है वही मैं भोग रहा हूँ| द्वेषी व्यक्ति तो मेंरा हित ही कर रहे हैं|
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अतः साधू, सावधान ! अब तूँ किसी अन्य को किसी भी परिस्थिति में दोष नहीं देगा|

ॐ तत्सत् | गुरु ॐ | ॐ ॐ ॐ ||

Saturday, 4 March 2017

खाटू श्याम जी का मेला .....

खाटू श्याम जी का मेला .....
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मुख्य मेला फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वादसी को भरता है पर आज अष्टमी के दिन से ही मेले का प्रारम्भ हो गया है जो होली तक चलेगा| कुम्भ के मेले के पश्चात सर्वाधिक भीड़ इस मेले में होती है| भगवान की भक्ति की पराकाष्ठा देखनी हो तो इस मेले से अधिक अच्छा संभवतः ही अन्यत्र कहीं देखने को मिले|
हर रास्तों से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ इस समय हाथों में ध्वज लिए पैदल ही भजन-कीर्तन करते हुए खाटू की ओर बढ़ रही है| थोड़ी थोड़ी दूर पर हज़ारों सेवार्थी आगंतुकों की सेवा में खड़े हैं| एकादशी को तो पूरी रात ही भजन-कीर्तन होते हैं|
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यह मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में पड़ता है| सबसे समीप का रेलवे स्टेशन रींगस है| राजस्थान में शेखावाटी की संस्कृति और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति ही देखनी हो तो एक बार यहाँ अवश्य आना चाहिए| प्रशासन के द्वारा और स्वयंसेवकों के द्वारा बहुत अच्छी व्यवस्था रहती है|
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इस स्थान की महिमा और कथा का वर्णन स्कन्द पुराण में है| महाभारत युद्ध के समय की घटना है यह| इसका पूरा वर्णन प्रसिद्ध है अतः यहाँ लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है|
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इस मंदिर का विस्तृत इतिहास राजस्थान पत्रिका के "नगर परिक्रमा" स्तम्भ के अंतर्गत एक बार छपा था| उसके अनुसार दो बार मुग़ल शासकों ने इस मंदिर को तोड़ा था| एक बार तो औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था| उस समय इस मंदिर की रक्षा के लिए अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था| फिर दुबारा मुग़ल बादशाह फर्रूखशियर ने इसको तोड़ा था तब क्षेत्र के राजपूतों के साथ साथ ब्राह्मणों ने भी शस्त्र उठाकर युद्ध किया था| उस समय मंदिर के महंत मंगल दास और उनके भंडारी सुन्दर दास की कथा बहुत प्रसिद्ध हुई थी| उनके सिर कट गए पर धड़ युद्ध करते करते मुग़ल सेना के अन्दर तक चले गए, जिससे डर कर मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई| बादशाह फर्रूखशियर ने उनके पैरों में पड़कर माफी माँगी और स्वयं को गाफिल बताया तब जाकर वे धड़ शांत हुए| तब एक कहावत पड़ी थी ... शीश कटा खाटू लड़े महंत मंगलदास| फिर कभी मुग़ल सेना का कभी इस ओर आने का साहस नहीं हुआ|
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यहाँ श्रद्धालुओं की भक्ति और लगन देखकर कोई भी भाव विह्वल हो जाएगा|
भगवान श्रीकृष्ण और उनके भक्त बर्बरीक की जय, जिनका भव्य मंदिर खाटू ग्राम में खाटू श्याम जी के नाम से प्रसिद्ध है| जय हो |

परमात्मा से प्रेम करो .....

मेरे प्रियतम निजात्मगण, आप सब मेरी ही आत्मा और मेरे ही प्राण हो| आप सब को नमन|
मेरे पास इस समय आप को बताने के लिए सिर्फ चार ही बातें हैं| उससे हट कर अन्य कुछ भी नहीं है| इनका आप कुछ भी अर्थ निकालो आप स्वतंत्र हैं .....
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(१) परमात्मा से प्रेम करो|
(२) परमात्मा से और भी अधिक प्रेम करो|
(३) अपने पूर्ण हृदय, मन और शक्ति के साथ परमात्मा से प्रेम करो|
(४) परमात्मा को इतना अधिक अपने पूर्ण हृदय मन और क्षमता से प्रेम करो कि आप स्वयं ही प्रेममय हो जाएँ| आप में और परमात्मा में कोई भेद न रहे| स्वयं की चेतना को पूर्णतः उनमें समर्पित कर दो|
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मेरी बात आप को अच्छी लगी हो तो ठीक है, अन्यथा आप मुझे अवरुद्ध (Block) कर सकते हैं| मेरे पास कहने को और कुछ भी इस समय नहीं है| मेरी किसी से कोई अपेक्षा नहीं है और न मुझे किसी से कुछ चाहिए| आप क्या सोचते हैं यह आपकी समस्या है| आप सब को शुभ कामनाएँ और पुनश्चः नमन|
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ॐ तत्सत् | गुरु ॐ ||

पूरे विश्व में राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण .....

इस समय पूरे विश्व में राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण हो रहा है| पता नहीं यह एक शुभ लक्षण है या अशुभ, पर भारत के लिए तो मैं इसे शुभ ही मानता हूँ| भारत की सोई हुई चेतना को राष्ट्रवाद ही जगा सकता है|
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राष्ट्रवाद की विचारधारा द्वीतीय विश्व युद्ध के पश्चात भारत में तीब्रता से फ़ैली जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को बाध्य कर दिया था| भारत में राष्ट्रवाद को जगाने में वीर सावरकर, नेताजी सुभाष बोस और डा.हेडगेवार आदि का बहुत बड़ा योगदान था| चीन में माओ ने भी वहाँ के साम्यवाद को चीनी राष्ट्रवाद से जोड़ा| पर भारत में साम्यवाद सदा ही राष्ट्रवाद का विरोधी रहा| रूस में पुतिन ने भी रूसी राष्ट्रवाद को प्रमुखता दी है| अमेरिकी राष्ट्रवाद की परिणिति ट्रम्प का राष्ट्रपति बनना है| राष्ट्रवाद के कारण ही ब्रिटेन योरोपीय संघ से अलग हुआ| अब फ़्रांस और हॉलैंड में भी राष्ट्रवाद उफान पर है| पूर्वी योरोप के देशों में भी राष्ट्रवादी विचारधारा तेजी से जागृत हो रही है| राष्ट्रवाद के कारण ही माननीय श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन पाए|
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भारत में राष्ट्रवाद के साथ साथ भक्ति का भी जागरण हो रहा है, यह एक अच्छा लक्षण है| इसी माह की दस तारीख को एक अमेरिकी लडकी हमारे यहाँ आ रही है हिन्दू रीती से अपना विवाह करवाने के लिए| उसका पूरा परिवार और सारे सम्बन्धी सनातन धर्म का पालन करते हैं| इस विवाह में अमेरिका और आस्ट्रेलिया से लगभग ६० परिवार आ रहे हैं| अब तक विश्व में पिछ्ले कुछ समय से लोग हठयोग की बाते करते थे, अब भक्ति की बातें अधिक हो रही हैं|
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मैं तो इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि आने वाला समय अच्छा ही अच्छा होगा| पिछले पचास वर्षों में लोगों की चेतना और ज्ञान असामान्य रूप से बहुत अधिक बढे हैं| और उत्तरोत्तर चेतना का तीब्र गति से विकास ही हो रहा है|
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पूरे विश्व की चेतना भारत से यह अपेक्षा करती है कि भारत एक आध्यात्मिक देश बने और आध्यात्म की ज्योति के दर्शन पूरे विश्व को कराये| अब यह भारत के लोगों पर निर्भर है कि वे कितने आध्यात्मिक बनते हैं|
सारी दुनिया इस समय एक तनाव, भय और असुरक्षा के भाव से ग्रस्त है| सब लोग सुख, शांति और सुरक्षा को ही ढूँढ रहे हैं जो उन्हें कहीं नहीं मिलती|
वह सुख, शांति और सुरक्षा उन्हें भारत के आध्यात्म में ही मिल सकती है|
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न तो ईसाई देश और न मुस्लिम देश और न कोई नास्तिक देश, कोई भी इस समय सुखी नहीं हैं| सब जगह एक भयावह तनाव, असुरक्षा और भय व्याप्त है| सारे अब्राहमिक मतों ने अपने अनुयाइयों को अनंत सुख और शान्ति की आशा दी जो उन्हें कभी भी नहीं मिली| विश्व एक संक्रांति काल से गुजर रहा है| कुछ न कुछ निश्चित रूप से निकट भविष्य में सकारात्मक रूप से घटित होगा| विश्व की चेतना बापस अन्धकार के युग में नहीं जा सकती|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ ॐ ॐ ||

Friday, 3 March 2017

शाश्वत धर्म और युगधर्म ........

March 3, 2014 
 
शाश्वत धर्म और युगधर्म ........
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धर्म सदा शाश्वत है, पर देशकाल की आवश्यकतानुसार उसके बाह्य रुप में कुछ न कुछ परिवर्तन होते रहते हैं | जो मान्यताएँ विगत युगों में थीं वे आवश्यक नहीं है कि वर्तमान युग में भी हों | बदली हुई परिस्थितियों में मनुष्य के कर्तव्य और साधना पद्धतियाँ भी बदल जाती हैं |
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जिस से अभ्युदय और नि:श्रेयस की सिद्धि हो वह शाश्वत धर्म है | पर अभ्युदय तभी हो सकता है जब हम परमात्मा के प्रति शरणागत होकर पूर्ण रूपेण समर्पित हों| निःश्रेयस कि सिद्धि भी तभी हो सकती है | अतः शरणागति द्वारा परमात्मा को पूर्ण समर्पण और जीवन में उसकी पूर्ण अभिव्यक्ति ही शाश्वत धर्म है |
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सत् , त्रेता, द्वापर और कलियुग की परिस्थितियों में बहुत अंतर रहा है | कलियुग में भी बौद्धकाल से पूर्व और पश्चात की, विदेशी पराधीनता के काल खंड की और वर्तमान समय की परिस्थितियों में बहुत अधिक अंतर है |
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शाश्वत धर्म तो एक ही है पर युग धर्म निश्चित रूप से परिवर्तित होता है जिसकी परिवर्तित व्यवस्था को स्थापित करने के लिए समय समय पर युग पुरुष अवतृत होते रहते हैं | पराधीनता के कालखंड में भी जब सनातन धर्म पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे थे तब अनेक महान आत्माओं ने भारत में जन्म लेकर धर्म की रक्षा की है |
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इस युग में जिसे हम हिंदुत्व कहते हैं, सनातन धर्म का वह वर्तमान स्वरूप ही भारतवर्ष की अस्मिता है| इसे परिभाषित और व्यवस्थित करना तो धर्माचार्यों का काम है, पर हिंदुत्व ही वह समग्र जीवन दर्शन है जो नर को नारायण बनाता है| हिंदुत्व उतना ही मौलिक है जितना एक मनुष्य के लिए साँस लेना | हिंदुत्व हर मनुष्य की प्राकृतिक आवश्यकता है |
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बर्तमान युग में उपनिषद्, रामचरितमानस और भगवद्गीता आदि ऐसे ग्रन्थ है जो धर्म के मूल तत्व को व्यक्त करते है | उनका अध्ययन, ब्रह्म तत्व की साधना और भारत को एक बार पुनश्चः आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र बनाने का संकल्प ---- वर्तमान का युगधर्म है|
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हो सकता है आप मेरे विचारों से सहमत ना हों पर मैं मेरे अपने विचारों पर दृढ़ और समर्पित हूँ | मैं आपका पूर्ण सम्मान और आपसे प्रेम करता हूँ क्योंकि आप के ह्रदय में परमात्मा का निवास है |

जय सनातन वैदिक संस्कृति, जय जननी जय भारत, जय श्री राम |
कृपाशंकर

भगवान हमारे अहंकार का ही भक्षण करते हैं .....

भगवान हमारे अहंकार का ही भक्षण करते हैं .....
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भगवान के आदेशानुसार जब हम भोजन करते हैं तब इसी भाव से करते हैं कि हमारी देह में परमात्मा स्वयं वैश्वानर के रूप में इस आहार को ग्रहण कर रहे हैं और इससे समस्त प्राणियों की तृप्ति हो रही है, यानि समस्त सृष्टि का भरण-पोषण हो रहा है|
भोजन भी हम परमात्मा को निवेदित कर के वही करते हैं जो परमात्मा को प्रिय है|
भोजन से पूर्व हम ब्रह्मार्पण वाला मन्त्र भी बोलते हैं|
पर वास्तव में भगवान क्या खाते हैं?
भगवान हमारे अहंकार का ही भक्षण करते हैं| ॐ ॐ ॐ ||
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परमात्मा स्वयं ही हमारे माध्यम से आहार ग्रहण कर रहे हैं, इसी भाव से भोजन करें|
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हम जो भी भोजन करते हैं या जो कुछ भी खाते-पीते हैं, वह हम नहीं खाते-पीते, बल्कि साक्षात परमात्मा को खिलाते-पिलाते हैं जिस से समस्त सृष्टि का भरण-पोषण होता है| परमात्मा स्वयं ही हमारे माध्यम से आहार ग्रहण कर रहे हैं| इसी भाव से सदा भोजन ग्रहण करें|
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उपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए निज विवेक से सदा याद रखें .....
हम क्या खाएं ?
कैसे खाएं ?
कहाँ खाएं ?
क्या संकल्प लेकर खाएं ? आदि आदि |
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सप्रेम धन्यवाद | ॐ ॐ ॐ ||

मैं स्वयं ही समस्या हूँ और समाधान भी मैं स्वयं ही हूँ .......

मैं स्वयं ही समस्या हूँ और समाधान भी मैं स्वयं ही हूँ .......
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एक बार देहरादून में अपने पूर्व परिचित, हिमालय के एक परम सिद्ध योगी महात्मा से बातचीत हो रही थी| अब तो वे भौतिक देह में नहीं हैं| मैंने उनसे अपनी एक बहुत बड़ी व्यक्तिगत समस्या की चर्चा करनी चाही तो उन्होंने मुझे चुप करते हुए एक बड़ी अच्छी बात कही जिसका सार यह था कि मेरी कोई समस्या नहीं है, मैं स्वयं ही समस्या हूँ|
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उनके सत्संग से एक बात बहुत अच्छी तरह समझ में आ गयी कि आध्यात्मिक दृष्टी से मनुष्य की प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या परमात्मा को उपलब्ध होना यानि समर्पित होना ही है| इसके अतिरिक्त अन्य कोई समस्या है ही नहीं| अन्य सब समस्याएँ परमात्मा की हैं|
परमात्मा की प्राप्ति के अतिरिक्त मनुष्य की अन्य कोई समस्या है ही नहीं| सब समस्याओं का समाधान भी परमात्मा को प्राप्त करना ही है, जिसका एकमात्र मार्ग है परम प्रेम और मुमुक्षुत्व यानि 'उसको' पाने कि एक गहन अभीप्सा|
अपनी चेतना को भ्रूमध्य से ऊपर रखो और निरंतर परमात्मा का चिंतन करो| फिर आपकी चिंता स्वयँ परमात्मा करेंगे|
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जीवन में खूब धक्के खाकर यानि खूब खट्टे-मीठे हर तरह के अनेक अनुभवों से निकल कर मैं भी इसी परिणाम पर पहुँचा हूँ| जीवन में मैं कैसे कैसे और कौन कौन से अनुभवों से मैं निकला हूँ इसका कोई महत्व नहीं है| महत्व सिर्फ इसी बात का है कि मैं उनसे क्या बना हूँ|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन |
ॐ . गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ ||

मैं शिव हूँ, यह समस्त अनंत अस्तित्व शिवरूप में मैं ही हूँ ....

धारणा व ध्यान .....
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मैं शिव हूँ, यह समस्त अनंत अस्तित्व शिवरूप में मैं ही हूँ|
किससे राग और किससे द्वेष करूँ?
मैं यह देह या अन्तःकरण की वृत्ति नहीं हूँ|
मैं सर्वव्यापक शिव हूँ|
मैं सर्वव्यापक शिव हूँ, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ|
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|
शिव शिव शिव|
ॐ ॐ ॐ ||

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शिवभाव में स्थित होकर ही हम इस परिवर्तनशील और निरंतर आंदोलित सृष्टि में अविचलित रह सकते हैं, उससे पूर्व नहीं| भगवान परमशिव इस सृष्टि में भी हैं और इससे परे भी हैं| गीता में भगवान श्रीकृष्ण एक स्थिति या उपलब्धि के विषय में कहते हैं ..."यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः| यस्मिन् स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते||"
मेरी सीमित व अल्प समझ से भगवान श्रीकृष्ण ने यहाँ शिवभाव में स्थिति को ही उपलब्धि बताया है| यदि मैं गलत हूँ तो विद्वजन मुझे क्षमा करें|
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दुर्जन लोग अपने पापकर्मों के द्वारा मुझे कष्ट पहुंचाकर मेरी परीक्षा ही ले रहे हैं और मुझे सुधरने का अवसर ही दे रहे है अतः वह क्षमा के योग्य है| विपरीत परिस्थिति में शान्ति के लिए प्रयत्न करने का प्रयास करूंगा| अब तक तो असफल ही रहा हूँ| दुर्जनों के द्वारा जो मेरा अपमानादि होता है उसके द्वारा मेरा अधिक लाभ ही होता है| 

ॐ शिव !
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मेरा आदर्श वह दिगम्बर महात्मा है जो हिमालय पर निर्वस्त्र रहता है, दशों दिशाएँ जिसके वस्त्र हैं| उसको किसी चीज की आवश्यकता नहीं है|
ॐ परात्पर गुरवे नमः || ॐ परमेष्ठी गुरवे नमः || ॐ ॐ ॐ ||

जीवन एक शाश्वत जिज्ञासा है सत्य को जानने की ......

जीवन एक शाश्वत जिज्ञासा है सत्य को जानने की .....
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जीवन एक शाश्वत जिज्ञासा है सत्य को जानने की| वर्तमान में तो चारों और असत्य ही असत्य दिखाई दे रहा है, पर यह अन्धकार अधिक समय तक नहीं रहेगा| असत्य, अंधकार और अज्ञान की शक्तियों का निश्चित पराभव होगा| मनुष्य जीवन की सार्थकता भेड़ बकरी की तरह अंधानुकरण करने में नहीं है, अपितु सत्य का अनुसंधान करने और उसके साथ डटे रहने में है| मुझे गर्व है मेरे धर्म और संस्कृति पर, मुझे गर्व है भारत के ऋषियों पर जिन्होंने सत्य को जानने के प्रयास में परमात्मा के साथ साक्षात्कार किया और ज्ञान का एक अथाह भण्डार छोड़ गए|
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आदिकाल से अब तक भारत की अस्मिता एक विशेष उद्देश्य के लिए बची हुई है| भारत की अस्मिता पर जितने प्रहार हुए हैं उसका दस लाखवाँ भाग भी यदि किसी अन्य संस्कृति पर होता तो वह संस्कृति पूर्ण रूप से नष्ट हो गयी होती| मध्य एशिया, अरब और यूरोप से आई आसुरी शक्तियों ने भारत को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोडी| भारत में बड़े भयानक नरसंहार और क्रूर अत्याचारों द्वारा मतांतरण करने वाली संस्कृतियाँ अब स्वयं विनाश के कगार पर हैं|
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भारत अब तक बचा हुआ है तो बस एक ही उद्देश्य के लिए है ....... और वह है .... अंततोगत्वा परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति पुनश्चः इस धरा पर करने के लिए| इस समय पूरे विश्व में जो आसुरी शक्तियाँ छाई हुई हैं उनका विनाश निश्चित है|
भारत निश्चित रूप से उठेगा और अपना उद्देश्य पूर्ण करेगा|
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ॐ नमः शिवाय| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ ॐ ॐ ||

अनिष्ट शक्तियों का कष्ट और उन से निवृति .....

अनिष्ट शक्तियों का कष्ट और उन से निवृति .....
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सूक्ष्म जगत में अनेक शुभ देवात्माएँ हैं और अशुभ आसुरी आत्माएँ भी| देवात्माएँ हमारी निरंतर सहायता करती हैं पर असुरात्माएँ हमारा निरंतर अनिष्ट करती रहती हैं| अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से आज संपूर्ण मानव जाति पीड़ित है| इनके कारण आजकल ..... अवसाद, आत्महत्या के विचार, अत्यधिक क्रोध, उन्मादग्रस्तता, अत्यधिक वासनात्मक विचार, अनिद्रा, अतिनिद्रा, शारीरिक कष्ट, अशांत मन, जीवन में विफलता, गृह क्लेश, गर्भपात, आर्थिक हानि, वंशानुगत रोग, व्यसन, दुर्घटना, बलात्कार, यौन रोग, समलैंगिकता आदि आदि लगातार बढ़ रहे हैं|
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अत्यधिक भोगविलास में रत मनुष्य अति शीघ्र आसुरी शक्तियों के प्रभाव में आकर उनके उपकरण बन जाते हैं| वे सदा दूसरों को कष्ट देते हैं और परपीड़ा में आनंदित होते हैं| दुष्ट और क्रूर प्रकृति के लोग निश्चित रूप से आसुरी जगत के शिकार हैं| अंततः इनका जीवन बड़ा कष्टमय होता है|
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जो आध्यात्मिक साधक हैं उन्हें तो ये आसुरी आत्माएँ अत्यधिक कष्ट देती हैं| ये नहीं चाहतीं कि कोई आध्यात्मिक उन्नति करे| ये ही विक्षेप उत्पन्न कर साधकों को साधना मार्ग से विमुख करने का प्रयास करती रहती हैं| घर परिवार के किसी सदस्य को अपना शिकार बना कर ये उसके माध्यम से साधकों को परेशान करती हैं|
साधू-संतों को भी ये परेशान करने के प्रयास में रहती हैं| पर साधू-संतों की दृढ़ता के समक्ष उनका ये कुछ बिगाड़ नहीं पातीं| फिर भी अनेक साधुओं को ये भ्रष्ट कर देती हैं|
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अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव से बचने के लिए हमें निम्न उपाय करने चाहियें .....

(१) कुसंग त्याग कर सिर्फ सकारात्मक लोगों के साथ सत्संग करें| नियमित साधना दृढ़ता से करें| हर समय परमात्मा का चिंतन करें| सब से बड़ी बात है परमात्मा में दृढ़ आस्था| अपनी रक्षा हेतु परमात्मा से सदा प्रार्थना करें|
(२) सादा जीवन, उच्च विचार| वेषभूषा भारतीय संस्कृति के अनुकूल हो| घर का वातावरण पूर्णतः सात्विक रखें|
(३) हर तरह के नशे का पूर्णतः त्याग|
(४) सात्विक भोजन करें| जो भगवान को प्रिय है वो ही भोजन, भगवान को निवेदित कर के ही ग्रहण करें|
(५) नियमित दिनचर्या हो|
(६) घर को साफ़-सुथरा रखें| अनेक लोग घरों में आँगन को देशी गाय के गोबर से लीपते हैं, उन घरों में अनिष्ट आत्माएँ प्रवेश नहीं कर पातीं| जहाँ ऐसा करना संभव न हो वहाँ पानी में देशी गाय का थोड़ा सा मुत्र मिलाकर नित्य पोचा लगाएँ|
घर में तुलसी के पौधें खूब लगाएँ| संभव हो तो घर में एक देशी गाय रखें और उसकी खूब सेवा करें|
(७) भगवान ने हमें विवेक दिया है| निज विवेक के प्रकाश में सारे कार्य परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही करें| परमात्मा हमारी बुद्धि को तदानुसार प्रेरित करेंगे| तब जो भी होगा वह हमारे भले के लिए ही होगा|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

Wednesday, 1 March 2017

किसी भी परिस्थिति में अपनी नियमित आध्यात्मिक आराधना न छोड़ें .....

किसी भी परिस्थिति में अपनी नियमित आध्यात्मिक आराधना न छोड़ें .....
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किसी भी परिस्थिति में अपनी नियमित आध्यात्मिक आराधना न छोड़ें| बड़ी कठिनाई से हमें भगवान की भक्ति का यह अवसर मिला है| कहीं ऐसा न हो कि हमारी ही उपेक्षा से भगवान को पाने की हमारी अभीप्सा ही समाप्त हो जाए|
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जीवन में अंधकारमय प्रतिकूल झंझावात आते ही रहते हैं जिनसे हमें विचलित नहीं होना चाहिए| इनसे तो हमारी प्रखर चेतना ही जागृत होती है व अंतर का सौंदर्य और भी अधिक निखर कर बाहर आता है|
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समस्त सृष्टि चैतन्य का एक खेल मात्र है| जो कुछ भी देश-काल में घटित हो रहा है वह एक विराट चुम्बकीय क्षेत्र के दो विपरीत ध्रुवों के बीच का तनाव या घर्षण मात्र है| इसे ईश्वर के मन का एक विचार भी कह सकते हैं| प्रकृति, माया और जीव उसी परम चैतन्य की अभिव्यक्तियाँ हैं| सृष्टि के इस रहस्य को समझ कर उस परम चैतन्य से अंततः जुड़ना ही मनुष्य जीवन का ध्येय है|
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कभी भी विचलित न हों| हम सब सच्चिदानंद परमात्मा की ही अभिव्यक्तियाँ हैं|
हारिये ना हिम्मत, बिसारिये न हरि नाम| सब को शुभ कामनाएँ और नमन|

ॐ तत्सत् |ॐ ॐ ॐ ||

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति आर्थिक हितों से चलती है, भावनाओं से नहीं ..

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति आर्थिक हितों से चलती है, भावनाओं से नहीं ....
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राजनीति में चाहे वह एक व्यक्ति हो या चाहे कोई एक देश, अपनी नीतियाँ अपने राष्ट्र के आर्थिक हितों से बनाता है, भावनाओं से नहीं|
ये जितने भी... साम्यवाद, पूँजीवाद, समाजवाद आदि वाद हैं वे सब जनता को सिर्फ मूर्ख बनाने के लिए हैं| इनसे असली लाभ राजनेताओं को ही है|
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कोंग्रेस के राज में नीतियाँ बनती थीं गाँधी परिवार, राजनेताओं व बड़े अधिकारियों के आर्थिक हित के लिए| देशहित तो सिर्फ दिखावा था|
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भाजपा ने भी कांग्रेस के शासन के समय किये हुए बड़े-बड़े घोटालों पर कोई कानूनी कार्यवाई न करके एक भी कांग्रेसी नेता को अभी तक जेल नहीं भेजा है, क्योंकि उन नेताओं के साथ साथ कई बड़े-बड़े पूँजीपति भी जेल चले जायेंगे जो ऐसा होने पर भाजपा की सरकार को गिरा देने की सामर्थ्य रखते हैं| 2G आदि घोटालों में सिर्फ राजनेताओं का ही नहीं सारी टेलिकॉम कम्पनियों के मालिकों का भी हाथ था जो अब भाजपा के साथ हैं|
इसीलिए भाजपा ने वित्त मंत्रालय सुब्रमण्यम स्वामी जैसे महान अर्थशास्त्री को न देकर अरुण जेटली जैसे विख्यात वकील को दे रखा है क्योंकि भ्रष्टाचार के मामले में सुब्रमण्यम स्वामी किसी की नहीं सुनते|
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पूँजी का धर्म .... कोई दल, देश, जाती व नस्ल नहीं होती| पूँजी का एकमात्र धर्म है ..... मुनाफ़ा|
जिधर अधिक मुनाफ़ा हो पूँजी उधर ही भागती है| यह एक कटु सत्य है|
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चीन और अमेरिका दिखाने के लिए चाहे कितने भी बड़े शत्रु हों, पर दोनों के इतने गहरे आर्थिक हित हैं कि दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते| चीन में मज़दूरी बहुत अधिक सस्ती है, क्योंकि वहाँ के मजदूर कानूनन हड़ताल नहीं कर सकते और काम के लिए मना भी नहीं कर सकते| अतः अमेरिका ने वहाँ अपना अधिकाँश धन लगा कर कारखाने बना रखे हैं जहाँ से माल बनकर अमेरिका जाता है| शुरू में दोनों देश इससे बहुत खुश थे| पर अब एक नया संकट खड़ा हो रहा है| चीन से अमेरिकी व अन्य विदेशी कम्पनियां अपना सारा मुनाफ़ा कमाकर बापस अपने देशों में भेज रही है, जिससे चीन को कुछ भी लाभ अब नहीं हो रहा है| जितना पैसा चीन में आता है उससे अधिक तो बाहर चला जाता है|
अमेरिका में भी उद्योग-धंधे बाहर चले जाने से बेरोजगारी बढ़ गयी है| इसी परिस्थिति का लाभ उठाकर लोगों की भावनाओं को भड़का कर ट्रम्प राष्ट्रपति बन गए हैं| अब अमेरिका भी पछता रहा है क्योंकि अपने उद्योग-धंधे तो चीन से बापस ला ही नहीं सकता जो कारखानों के रूप में वहाँ हैं| चीन जब चाहे तब उस संपत्ति को जब्त कर सकता है| बस यही एकमात्र कारण है दोनों देशों में व्याप्त तनाव का| इसका परिणाम युद्ध भी हो सकता है|
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विश्व के जितने भी जिहादी आतंकी संगठन हैं वे सब अमेरिका ने ही खड़े किये हैं जिनके माध्यम से अमेरिका अरब देशों का तेल लूट रहा है| जिस दिन उनका तेल समाप्त हो जाएगा उसी दिन अमेरिका, अन्य योरोपीय देशों व इजराइल के साथ मिलकर अरबों को बुरी तरह लूट कर बापस पाषाण युग में ला कर खडा कर देगा जहाँ वे फिर से गधों पर ही सवारी करेंगे| जब तक आतंकी संगठन अपने आका अमेरिका की बात मानते हैं तब तक तो ठीक है, पर जिस दिन अमेरिका के कहने में नहीं चलते अमेरिका उन्हें ठोक-पीट कर ठंडा कर देता है|
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भारत को अपने नियंत्रण में रखने के लिए ही अमेरिका पकिस्तान को हथियार देता है ताकि भारत अमेरिका से हथियार खरीदता रहे और डर कर रहे| अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि भारत में सुख-शांति रहे| चीन भी भारत को बर्बाद करना चाहता है पर कर नहीं पा रहा क्योंकि भारत उसके लिए एक बहुत बड़ा बाजार है| भारतीय लोग यदि अपना लालच छोड़कर चीनी सामान खरीदना बंद कर दें तो चीन में हाहाकार मच जाएगा| चीन का साम्यवाद एक ढकोसला है जिसका मार्क्स से कोई लेना देना नहीं है| चीन की मुख्य नीति ही है अपना भौगोलिक विस्तार|
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वर्त्तमान में नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति, सैन्य नीति और आर्थिक नीतियाँ सही हैं| हमें सैन्य रूप से और आर्थिक रूप से अति शक्तिशाली बनना होगा| विदेशी मामलों में कूटनीति भी हमारी बहुत प्रभावशाली होनी चाहिए|
अमेरिका ने दादागिरी से डॉलर को विश्वमुद्रा बना रखा है| जिस दिन डॉलर को अन्य देश अस्वीकार कर देंगे अमेरिका की दादागिरी समाप्त हो जायेगी| ऐसा वातावरण अब बनने लगा है| भारत अब एक महाशक्ति बनने के कगार पर ही है|
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वन्दे मातरम् | भारत माता की जय | जय जननी जय भारत | ॐ ॐ ॐ ||

हमें अपने राष्ट्र से प्रेम है .....


हमें अपने राष्ट्र से प्रेम है .....
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आध्यात्म में जितना हमें परमात्मा से प्रेम है उतना ही इस भौतिक जगत में अपने राष्ट्र भारतवर्ष की अस्मिता से भी है| राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के लिए शस्त्र भी धारण करना पड़े तो वह भी धारण करेंगे, प्राणोत्सर्ग भी करना पड़े तो वह भी करेंगे| पता नहीं कितनी बार शस्त्रास्त्र धारण किये हैं और प्राण भी दिए हैं| राष्ट्र को अब और खंडित नहीं होने देंगे|
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पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ की राजधानी के मुख्य मार्गों पर तथाकथित विद्यार्थी और तथाकथित शिक्षक, देश को तोड़ने और देश से आज़ादी की माँग सार्वजनिक रूप से बाजे-गाजों के साथ चिल्ला चिल्ला कर करते हैं और उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती| इतना ही नहीं अनेक राजनेता भी उनका समर्थन करते हैं| यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हम ऐसे दृश्य देखने को विवश हैं|
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जो लोग भारत से आज़ादी चाहते हैं उन्हें इस देश से आज़ाद कर दिया जाए और ऐसे देश में भेज दिया जाए जहाँ उनको आज़ादी प्राप्त है| इस देश को उनकी आवश्यकता नहीं है, वे इस देश के सीमित संसाधनों पर भार हैं| कई तो बहुत बड़ी बड़ी आयु के तथाकथित विद्यार्थी है जो कैसे भी जोड़-तोड़ बैठाकर छात्रवृति लेकर वहाँ अपनी कुत्सित विचारधारा फैलाते हैं| राष्ट्र के विकास में इनका कोई योगदान नहीं होता|
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बहुत ऊँचे ऊँचे वेतन लेने वाले इनके शिक्षक भी देश पर भार हैं| अमेरिका में कोई भी शिक्षक चाहे वह कितना भी बड़ा प्रोफ़ेसर हो, कितना भी बड़ा विद्वान हो, हर वर्ष वह जब तक कोई नई शोध नहीं करता या कराता है, उसकी छुट्टी कर दी जाती है| विश्व में सिर्फ भारतवर्ष ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ एक बार प्रोफ़ेसर की नौकरी मिल गयी तो जीवन भर ऐशो-आराम करने की गारंटी है| इसका कहीं भी लेखाजोखा नहीं होता कि वे कितने घंटे पढ़ाते हैं, क्या पढ़ाते हैं, और शोध के नाम पर विद्यार्थियों से रुपये लेकर कितना कूड़ा-कर्कट लिखते और लिखवाते हैं| यह उनकी अतिरिक्त कमाई है| भारत में इसकी भी जांच होनी चाहिए कि जो शोधकार्य होते हैं उनमें से कितनों के शोध विश्व स्तर के होते हैं और कितने रद्दी के भाव के होते हैं| शिक्षा संस्थानों में देशद्रोह की भावना फैलाने वाले ऐसे प्रोफ़ेसर भी देशद्रोही हैं जो विद्यार्थियों का ही नहीं देश का भविष्य भी अन्धकार में डालते हैं|
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ऐसे शिक्षण संस्थानों को यदि बंद भी कर दिया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है|
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प्रश्न : देश के सेकुलर और वामपंथी राजनेता, पत्रकार और इनके नकलची चेले, सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म और हिन्दू परम्पराओं का ही विरोध क्यों करते हैं, अन्यों का क्यों नहीं ?
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उत्तर : ये लोग वास्तव में असुर राक्षस हैं जिनका विरोध आध्यात्म, आत्मज्ञान, श्रुतियों, स्मृतियों, आगम ग्रंथों, अहैतुकी भक्ति आदि सनातन वैदिक परम्पराओं से है| इनका विरोध मनुष्य की आत्मा से है| ये सब नर्कगामी हैं अतः इन का समर्थन करना हमें भी नर्कगामी बना देगा| इनका सदा प्रतिकार करना चाहिए|

ॐ ॐ ॐ ||