शीतलाष्टमी ....
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"वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।"
शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप है| आज शीतलाष्टमी है| इस दिन का व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने हेतु प्राचीन काल से चला आ रहा है| इस अवसर पर श्रद्धालु दिन भर उपवास रखेंगे और शीतला माता की पूजा-अर्चना कर बासी भोजन का भोग लगाएँगे| ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी का व्रत रखने से छोटी माता का प्रकोप नहीं होता| चैत्र महीने से जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी प्रारंभ हो जाते हैं| शीतलाष्टमी व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने का प्राचीन काल से चला आ रहा व्रत है|
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इस व्रत में शीतल पदार्थों का माँ को भोग लगाया जाता है| कलश स्थापित कर पूजन किया जाता है तथा प्रार्थना की जाती है कि ...... चेचक, गलघोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, तीव्र दाह, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष शीतला माता की आराधना, पूजा से दूर हो जाएँ| माँ शीतला दिगंबर है, गर्दभ पर आरूढ है, शूप, मार्जनी और नीम पत्तों से अलंकृत है|
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शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बासौड़ा तैयार कर लिया जाता है| अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है| इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बासौड़ा के नाम से विख्यात है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३१ मार्च २०१६
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"वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।"
शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप है| आज शीतलाष्टमी है| इस दिन का व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने हेतु प्राचीन काल से चला आ रहा है| इस अवसर पर श्रद्धालु दिन भर उपवास रखेंगे और शीतला माता की पूजा-अर्चना कर बासी भोजन का भोग लगाएँगे| ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी का व्रत रखने से छोटी माता का प्रकोप नहीं होता| चैत्र महीने से जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी प्रारंभ हो जाते हैं| शीतलाष्टमी व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने का प्राचीन काल से चला आ रहा व्रत है|
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इस व्रत में शीतल पदार्थों का माँ को भोग लगाया जाता है| कलश स्थापित कर पूजन किया जाता है तथा प्रार्थना की जाती है कि ...... चेचक, गलघोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, तीव्र दाह, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष शीतला माता की आराधना, पूजा से दूर हो जाएँ| माँ शीतला दिगंबर है, गर्दभ पर आरूढ है, शूप, मार्जनी और नीम पत्तों से अलंकृत है|
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शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बासौड़ा तैयार कर लिया जाता है| अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है| इस कारण से ही संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बासौड़ा के नाम से विख्यात है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
३१ मार्च २०१६
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