Wednesday, 1 March 2017

हमें अपने राष्ट्र से प्रेम है .....


हमें अपने राष्ट्र से प्रेम है .....
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आध्यात्म में जितना हमें परमात्मा से प्रेम है उतना ही इस भौतिक जगत में अपने राष्ट्र भारतवर्ष की अस्मिता से भी है| राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के लिए शस्त्र भी धारण करना पड़े तो वह भी धारण करेंगे, प्राणोत्सर्ग भी करना पड़े तो वह भी करेंगे| पता नहीं कितनी बार शस्त्रास्त्र धारण किये हैं और प्राण भी दिए हैं| राष्ट्र को अब और खंडित नहीं होने देंगे|
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पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ की राजधानी के मुख्य मार्गों पर तथाकथित विद्यार्थी और तथाकथित शिक्षक, देश को तोड़ने और देश से आज़ादी की माँग सार्वजनिक रूप से बाजे-गाजों के साथ चिल्ला चिल्ला कर करते हैं और उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती| इतना ही नहीं अनेक राजनेता भी उनका समर्थन करते हैं| यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हम ऐसे दृश्य देखने को विवश हैं|
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जो लोग भारत से आज़ादी चाहते हैं उन्हें इस देश से आज़ाद कर दिया जाए और ऐसे देश में भेज दिया जाए जहाँ उनको आज़ादी प्राप्त है| इस देश को उनकी आवश्यकता नहीं है, वे इस देश के सीमित संसाधनों पर भार हैं| कई तो बहुत बड़ी बड़ी आयु के तथाकथित विद्यार्थी है जो कैसे भी जोड़-तोड़ बैठाकर छात्रवृति लेकर वहाँ अपनी कुत्सित विचारधारा फैलाते हैं| राष्ट्र के विकास में इनका कोई योगदान नहीं होता|
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बहुत ऊँचे ऊँचे वेतन लेने वाले इनके शिक्षक भी देश पर भार हैं| अमेरिका में कोई भी शिक्षक चाहे वह कितना भी बड़ा प्रोफ़ेसर हो, कितना भी बड़ा विद्वान हो, हर वर्ष वह जब तक कोई नई शोध नहीं करता या कराता है, उसकी छुट्टी कर दी जाती है| विश्व में सिर्फ भारतवर्ष ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ एक बार प्रोफ़ेसर की नौकरी मिल गयी तो जीवन भर ऐशो-आराम करने की गारंटी है| इसका कहीं भी लेखाजोखा नहीं होता कि वे कितने घंटे पढ़ाते हैं, क्या पढ़ाते हैं, और शोध के नाम पर विद्यार्थियों से रुपये लेकर कितना कूड़ा-कर्कट लिखते और लिखवाते हैं| यह उनकी अतिरिक्त कमाई है| भारत में इसकी भी जांच होनी चाहिए कि जो शोधकार्य होते हैं उनमें से कितनों के शोध विश्व स्तर के होते हैं और कितने रद्दी के भाव के होते हैं| शिक्षा संस्थानों में देशद्रोह की भावना फैलाने वाले ऐसे प्रोफ़ेसर भी देशद्रोही हैं जो विद्यार्थियों का ही नहीं देश का भविष्य भी अन्धकार में डालते हैं|
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ऐसे शिक्षण संस्थानों को यदि बंद भी कर दिया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है|
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प्रश्न : देश के सेकुलर और वामपंथी राजनेता, पत्रकार और इनके नकलची चेले, सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म और हिन्दू परम्पराओं का ही विरोध क्यों करते हैं, अन्यों का क्यों नहीं ?
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उत्तर : ये लोग वास्तव में असुर राक्षस हैं जिनका विरोध आध्यात्म, आत्मज्ञान, श्रुतियों, स्मृतियों, आगम ग्रंथों, अहैतुकी भक्ति आदि सनातन वैदिक परम्पराओं से है| इनका विरोध मनुष्य की आत्मा से है| ये सब नर्कगामी हैं अतः इन का समर्थन करना हमें भी नर्कगामी बना देगा| इनका सदा प्रतिकार करना चाहिए|

ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. वर्त्तमान में हो रहे देशद्रोह के मामलों में वर्त्तमान सरकार इतनी असहाय क्यों है ? यह समझ से परे की बात है | जो संगठन और समाचार मीडिया देशद्रोहियों को बढ़ावा दे रहे हैं, सरकार उनके विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है ???

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