Saturday 4 March 2017

परमात्मा से प्रेम करो .....

मेरे प्रियतम निजात्मगण, आप सब मेरी ही आत्मा और मेरे ही प्राण हो| आप सब को नमन|
मेरे पास इस समय आप को बताने के लिए सिर्फ चार ही बातें हैं| उससे हट कर अन्य कुछ भी नहीं है| इनका आप कुछ भी अर्थ निकालो आप स्वतंत्र हैं .....
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(१) परमात्मा से प्रेम करो|
(२) परमात्मा से और भी अधिक प्रेम करो|
(३) अपने पूर्ण हृदय, मन और शक्ति के साथ परमात्मा से प्रेम करो|
(४) परमात्मा को इतना अधिक अपने पूर्ण हृदय मन और क्षमता से प्रेम करो कि आप स्वयं ही प्रेममय हो जाएँ| आप में और परमात्मा में कोई भेद न रहे| स्वयं की चेतना को पूर्णतः उनमें समर्पित कर दो|
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मेरी बात आप को अच्छी लगी हो तो ठीक है, अन्यथा आप मुझे अवरुद्ध (Block) कर सकते हैं| मेरे पास कहने को और कुछ भी इस समय नहीं है| मेरी किसी से कोई अपेक्षा नहीं है और न मुझे किसी से कुछ चाहिए| आप क्या सोचते हैं यह आपकी समस्या है| आप सब को शुभ कामनाएँ और पुनश्चः नमन|
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ॐ तत्सत् | गुरु ॐ ||

1 comment:

  1. प्रार्थना .....
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    हे प्रियतम परम शिव, अपने से कभी विमुख मत होने दो| आप से सम्मुखता ही जीवन है, और विमुखता ही मृत्यु|
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    हमारा जीवन, हमारे प्राण, हमारा अस्तित्व, हमारे परम प्रिय आप स्वयं ही हैं|
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    जो ज्ञान ब्रह्मा ने अथर्व को, सनत्कुमार ने नारद को, और श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया, वही ज्ञान हमें भी प्रत्यक्ष आप से ही प्राप्त हो| उस से कम कुछ भी नहीं| यदि पात्रता नहीं है तो इस पात्र को तोड़ दो| आप से अन्यत्र कोई पात्रता नहीं चाहिए|
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    यह सम्पूर्ण अस्तित्व आप ही हैं| आप ही जगन्माता और आप ही परम पिता हैं|
    यह "मैं" नहीं, आप ही आप हैं| इस "मैं" का कभी अस्तित्व नहीं हो|

    || ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ||

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