धर्म की रक्षा धर्म के पालन से होगी, एक-दूसरे की निंदा व आलोचना से नहीं .....
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आजकल यह एक प्रचलन सा हो गया है कि धर्म की बात आते ही कोई तो धर्माचार्यों को गाली देना शुरू कर देता है, कोई समाज के नेताओं को, कोई प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को| खुद यह नहीं देखते कि उनका स्वयं का योगदान क्या है| वर्तमान परिस्थितियों में हम सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं, यह निश्चय कर के ही कुछ करना चाहिए| धर्म की रक्षा स्वयं के आचरण से ही होगी, अन्य कोई उपाय नहीं है|
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(१) हम जो भी कार्य करें वह अपनी क्षमतानुसार पूरे मनोयोग से और सर्वश्रेष्ठ करें| यह भाव रखें कि हम ईश्वर की प्रसन्नता के लिए, ईश्वर के लिए ही यह कार्य कर रहे है, न कि किसी मनुष्य को प्रसन्न करने के लिए| ईश्वर ने ही हमें कार्य करने का यह अवसर दिया है| धीरे धीरे परमात्मा को कर्ता बनाकर उसके उपकरण मात्र बन जाओ|
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(२) किसी की अनावश्यक आलोचना या निंदा न करें|
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(३) जीवन से ईर्ष्या-द्वेष और अहंकार को मिटाने का प्रयास करते रहें|
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(४) रात्रि को सोने से पूर्व नाम-स्मरण, जप, ध्यान आदि कर के ही सोयें|
प्रातःकाल उठते ही परमात्मा का स्मरण करें| पूरे दिन परमात्मा की स्मृति निरंतर प्रयास करके बनाए रखें|
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(५) पराये धन और पराई स्त्री/पुरुष कि कामना न करें|
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(६) अच्छा साहित्य पढ़ें, अच्छे लोगों के साथ रहें, और कुसंगति से दूर रहे|
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(७) स्वास्थ्यवर्धक अच्छा सात्विक भोजन लें| शराब और जूए से दूर रहें| पर्याप्त मात्रा में विश्राम करें| आयु के अनुसार शारीरिक व्यायाम कर के स्वस्थ रहें|
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उपरोक्त सब बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार कर के और उस पर आचरण कर के ही हम धर्म की रक्षा कर पायेंगे, अन्यथा नहीं| धर्माचरण बहुत आवश्यक है क्योंकि विश्व की ही नहीं, अपने देश की भी कई आसुरी शक्तियाँ अपने राष्ट्र को ही तोड़ना चाहती हैं| धर्माचरण ही हमें बचा पायेगा| भगवान की भक्ति के प्रचार-प्रसार से ही जातिवाद टूटेगा, देशभक्ति जागृत होगी और कभी गृहयुद्ध की सी स्थिति नहीं आएगी| अपने राष्ट्र, अपनी संस्कृति, अपने राष्ट्रधर्म और स्वाभिमान की रक्षा करें|
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जय जननी जय भारत ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०१६
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आजकल यह एक प्रचलन सा हो गया है कि धर्म की बात आते ही कोई तो धर्माचार्यों को गाली देना शुरू कर देता है, कोई समाज के नेताओं को, कोई प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को| खुद यह नहीं देखते कि उनका स्वयं का योगदान क्या है| वर्तमान परिस्थितियों में हम सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं, यह निश्चय कर के ही कुछ करना चाहिए| धर्म की रक्षा स्वयं के आचरण से ही होगी, अन्य कोई उपाय नहीं है|
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(१) हम जो भी कार्य करें वह अपनी क्षमतानुसार पूरे मनोयोग से और सर्वश्रेष्ठ करें| यह भाव रखें कि हम ईश्वर की प्रसन्नता के लिए, ईश्वर के लिए ही यह कार्य कर रहे है, न कि किसी मनुष्य को प्रसन्न करने के लिए| ईश्वर ने ही हमें कार्य करने का यह अवसर दिया है| धीरे धीरे परमात्मा को कर्ता बनाकर उसके उपकरण मात्र बन जाओ|
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(२) किसी की अनावश्यक आलोचना या निंदा न करें|
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(३) जीवन से ईर्ष्या-द्वेष और अहंकार को मिटाने का प्रयास करते रहें|
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(४) रात्रि को सोने से पूर्व नाम-स्मरण, जप, ध्यान आदि कर के ही सोयें|
प्रातःकाल उठते ही परमात्मा का स्मरण करें| पूरे दिन परमात्मा की स्मृति निरंतर प्रयास करके बनाए रखें|
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(५) पराये धन और पराई स्त्री/पुरुष कि कामना न करें|
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(६) अच्छा साहित्य पढ़ें, अच्छे लोगों के साथ रहें, और कुसंगति से दूर रहे|
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(७) स्वास्थ्यवर्धक अच्छा सात्विक भोजन लें| शराब और जूए से दूर रहें| पर्याप्त मात्रा में विश्राम करें| आयु के अनुसार शारीरिक व्यायाम कर के स्वस्थ रहें|
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उपरोक्त सब बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार कर के और उस पर आचरण कर के ही हम धर्म की रक्षा कर पायेंगे, अन्यथा नहीं| धर्माचरण बहुत आवश्यक है क्योंकि विश्व की ही नहीं, अपने देश की भी कई आसुरी शक्तियाँ अपने राष्ट्र को ही तोड़ना चाहती हैं| धर्माचरण ही हमें बचा पायेगा| भगवान की भक्ति के प्रचार-प्रसार से ही जातिवाद टूटेगा, देशभक्ति जागृत होगी और कभी गृहयुद्ध की सी स्थिति नहीं आएगी| अपने राष्ट्र, अपनी संस्कृति, अपने राष्ट्रधर्म और स्वाभिमान की रक्षा करें|
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जय जननी जय भारत ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०१६
आप सब दिव्य महान आत्माओं को मैं नमन करता हूँ जिनके ह्रदय में प्रभु के प्रति कूट कूट कर अहैतुकी परम प्रेम भरा पड़ा है और जिनके ह्रदय में प्रभु को पाने की प्रचंड अग्नि जल रही है|
ReplyDeleteआप सब ज्योतिषांज्योति सर्वव्यापक अनंत मेरी ही निजात्मा हो| मेरा अस्तित्व ही आपकी सेवा के लिए है|
आप सब में हृदयस्थ प्रभु को प्रणाम!
ॐ नमो नारायण ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||