सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण ......
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अपने हर कार्य को पूरा मन लगाकर आत्मगौरव व स्वाभिमान के साथ पूर्णता से करने का पूरा प्रयास ..... सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण है|
यदि हमारे में यह भाव आ जाए कि हम जो भी कार्य कर रहे हैं वह परमात्मा के लिए और परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही कर रहे हैं, तो यह सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण होगा| इस भाव से किये गए कार्य से हमें पूर्ण संतुष्टि मिलेगी|
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एक सामान्य व्यक्ति को हम धर्मशास्त्रों की बड़ी बड़ी बातें नहीं समझा सकते| फिर धर्म की रक्षा और पुनर्स्थापना कैसे कि जाए? जिस व्यक्ति के कार्य में पूर्णता है, वह सबसे बड़ा धार्मिक है| अतः सभी को स्वाभिमान के साथ अपना हर कार्य पूर्णता से करने की प्रेरणा दी जानी चाहिए|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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अपने हर कार्य को पूरा मन लगाकर आत्मगौरव व स्वाभिमान के साथ पूर्णता से करने का पूरा प्रयास ..... सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण है|
यदि हमारे में यह भाव आ जाए कि हम जो भी कार्य कर रहे हैं वह परमात्मा के लिए और परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही कर रहे हैं, तो यह सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण होगा| इस भाव से किये गए कार्य से हमें पूर्ण संतुष्टि मिलेगी|
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एक सामान्य व्यक्ति को हम धर्मशास्त्रों की बड़ी बड़ी बातें नहीं समझा सकते| फिर धर्म की रक्षा और पुनर्स्थापना कैसे कि जाए? जिस व्यक्ति के कार्य में पूर्णता है, वह सबसे बड़ा धार्मिक है| अतः सभी को स्वाभिमान के साथ अपना हर कार्य पूर्णता से करने की प्रेरणा दी जानी चाहिए|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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