Friday, 3 March 2017

शाश्वत धर्म और युगधर्म ........

March 3, 2014 
 
शाश्वत धर्म और युगधर्म ........
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धर्म सदा शाश्वत है, पर देशकाल की आवश्यकतानुसार उसके बाह्य रुप में कुछ न कुछ परिवर्तन होते रहते हैं | जो मान्यताएँ विगत युगों में थीं वे आवश्यक नहीं है कि वर्तमान युग में भी हों | बदली हुई परिस्थितियों में मनुष्य के कर्तव्य और साधना पद्धतियाँ भी बदल जाती हैं |
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जिस से अभ्युदय और नि:श्रेयस की सिद्धि हो वह शाश्वत धर्म है | पर अभ्युदय तभी हो सकता है जब हम परमात्मा के प्रति शरणागत होकर पूर्ण रूपेण समर्पित हों| निःश्रेयस कि सिद्धि भी तभी हो सकती है | अतः शरणागति द्वारा परमात्मा को पूर्ण समर्पण और जीवन में उसकी पूर्ण अभिव्यक्ति ही शाश्वत धर्म है |
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सत् , त्रेता, द्वापर और कलियुग की परिस्थितियों में बहुत अंतर रहा है | कलियुग में भी बौद्धकाल से पूर्व और पश्चात की, विदेशी पराधीनता के काल खंड की और वर्तमान समय की परिस्थितियों में बहुत अधिक अंतर है |
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शाश्वत धर्म तो एक ही है पर युग धर्म निश्चित रूप से परिवर्तित होता है जिसकी परिवर्तित व्यवस्था को स्थापित करने के लिए समय समय पर युग पुरुष अवतृत होते रहते हैं | पराधीनता के कालखंड में भी जब सनातन धर्म पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे थे तब अनेक महान आत्माओं ने भारत में जन्म लेकर धर्म की रक्षा की है |
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इस युग में जिसे हम हिंदुत्व कहते हैं, सनातन धर्म का वह वर्तमान स्वरूप ही भारतवर्ष की अस्मिता है| इसे परिभाषित और व्यवस्थित करना तो धर्माचार्यों का काम है, पर हिंदुत्व ही वह समग्र जीवन दर्शन है जो नर को नारायण बनाता है| हिंदुत्व उतना ही मौलिक है जितना एक मनुष्य के लिए साँस लेना | हिंदुत्व हर मनुष्य की प्राकृतिक आवश्यकता है |
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बर्तमान युग में उपनिषद्, रामचरितमानस और भगवद्गीता आदि ऐसे ग्रन्थ है जो धर्म के मूल तत्व को व्यक्त करते है | उनका अध्ययन, ब्रह्म तत्व की साधना और भारत को एक बार पुनश्चः आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र बनाने का संकल्प ---- वर्तमान का युगधर्म है|
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हो सकता है आप मेरे विचारों से सहमत ना हों पर मैं मेरे अपने विचारों पर दृढ़ और समर्पित हूँ | मैं आपका पूर्ण सम्मान और आपसे प्रेम करता हूँ क्योंकि आप के ह्रदय में परमात्मा का निवास है |

जय सनातन वैदिक संस्कृति, जय जननी जय भारत, जय श्री राम |
कृपाशंकर

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