धारणा व ध्यान .....
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मैं शिव हूँ, यह समस्त अनंत अस्तित्व शिवरूप में मैं ही हूँ|
किससे राग और किससे द्वेष करूँ?
मैं यह देह या अन्तःकरण की वृत्ति नहीं हूँ|
मैं सर्वव्यापक शिव हूँ|
मैं सर्वव्यापक शिव हूँ, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ|
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|
शिव शिव शिव|
ॐ ॐ ॐ ||
.
शिवभाव में स्थित होकर ही हम इस परिवर्तनशील और निरंतर आंदोलित सृष्टि में अविचलित रह सकते हैं, उससे पूर्व नहीं| भगवान परमशिव इस सृष्टि में भी हैं और इससे परे भी हैं| गीता में भगवान श्रीकृष्ण एक स्थिति या उपलब्धि के विषय में कहते हैं ..."यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः| यस्मिन् स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते||"
मेरी सीमित व अल्प समझ से भगवान श्रीकृष्ण ने यहाँ शिवभाव में स्थिति को ही उपलब्धि बताया है| यदि मैं गलत हूँ तो विद्वजन मुझे क्षमा करें|
.
दुर्जन लोग अपने पापकर्मों के द्वारा मुझे कष्ट पहुंचाकर मेरी परीक्षा ही ले रहे हैं और मुझे सुधरने का अवसर ही दे रहे है अतः वह क्षमा के योग्य है| विपरीत परिस्थिति में शान्ति के लिए प्रयत्न करने का प्रयास करूंगा| अब तक तो असफल ही रहा हूँ| दुर्जनों के द्वारा जो मेरा अपमानादि होता है उसके द्वारा मेरा अधिक लाभ ही होता है|
ॐ शिव !
.
मेरा आदर्श वह दिगम्बर महात्मा है जो हिमालय पर निर्वस्त्र रहता है, दशों दिशाएँ जिसके वस्त्र हैं| उसको किसी चीज की आवश्यकता नहीं है|
ॐ परात्पर गुरवे नमः || ॐ परमेष्ठी गुरवे नमः || ॐ ॐ ॐ ||
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मैं शिव हूँ, यह समस्त अनंत अस्तित्व शिवरूप में मैं ही हूँ|
किससे राग और किससे द्वेष करूँ?
मैं यह देह या अन्तःकरण की वृत्ति नहीं हूँ|
मैं सर्वव्यापक शिव हूँ|
मैं सर्वव्यापक शिव हूँ, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ|
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|
शिव शिव शिव|
ॐ ॐ ॐ ||
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शिवभाव में स्थित होकर ही हम इस परिवर्तनशील और निरंतर आंदोलित सृष्टि में अविचलित रह सकते हैं, उससे पूर्व नहीं| भगवान परमशिव इस सृष्टि में भी हैं और इससे परे भी हैं| गीता में भगवान श्रीकृष्ण एक स्थिति या उपलब्धि के विषय में कहते हैं ..."यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः| यस्मिन् स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते||"
मेरी सीमित व अल्प समझ से भगवान श्रीकृष्ण ने यहाँ शिवभाव में स्थिति को ही उपलब्धि बताया है| यदि मैं गलत हूँ तो विद्वजन मुझे क्षमा करें|
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दुर्जन लोग अपने पापकर्मों के द्वारा मुझे कष्ट पहुंचाकर मेरी परीक्षा ही ले रहे हैं और मुझे सुधरने का अवसर ही दे रहे है अतः वह क्षमा के योग्य है| विपरीत परिस्थिति में शान्ति के लिए प्रयत्न करने का प्रयास करूंगा| अब तक तो असफल ही रहा हूँ| दुर्जनों के द्वारा जो मेरा अपमानादि होता है उसके द्वारा मेरा अधिक लाभ ही होता है|
ॐ शिव !
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मेरा आदर्श वह दिगम्बर महात्मा है जो हिमालय पर निर्वस्त्र रहता है, दशों दिशाएँ जिसके वस्त्र हैं| उसको किसी चीज की आवश्यकता नहीं है|
ॐ परात्पर गुरवे नमः || ॐ परमेष्ठी गुरवे नमः || ॐ ॐ ॐ ||
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