भगवान हमारे अहंकार का ही भक्षण करते हैं .....
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भगवान के आदेशानुसार जब हम भोजन करते हैं तब इसी भाव से करते हैं कि हमारी देह में परमात्मा स्वयं वैश्वानर के रूप में इस आहार को ग्रहण कर रहे हैं और इससे समस्त प्राणियों की तृप्ति हो रही है, यानि समस्त सृष्टि का भरण-पोषण हो रहा है|
भोजन भी हम परमात्मा को निवेदित कर के वही करते हैं जो परमात्मा को प्रिय है|
भोजन से पूर्व हम ब्रह्मार्पण वाला मन्त्र भी बोलते हैं|
पर वास्तव में भगवान क्या खाते हैं?
भगवान हमारे अहंकार का ही भक्षण करते हैं| ॐ ॐ ॐ ||
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परमात्मा स्वयं ही हमारे माध्यम से आहार ग्रहण कर रहे हैं, इसी भाव से भोजन करें|
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हम जो भी भोजन करते हैं या जो कुछ भी खाते-पीते हैं, वह हम नहीं खाते-पीते, बल्कि साक्षात परमात्मा को खिलाते-पिलाते हैं जिस से समस्त सृष्टि का भरण-पोषण होता है| परमात्मा स्वयं ही हमारे माध्यम से आहार ग्रहण कर रहे हैं| इसी भाव से सदा भोजन ग्रहण करें|
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उपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए निज विवेक से सदा याद रखें .....
हम क्या खाएं ?
कैसे खाएं ?
कहाँ खाएं ?
क्या संकल्प लेकर खाएं ? आदि आदि |
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सप्रेम धन्यवाद | ॐ ॐ ॐ ||
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भगवान के आदेशानुसार जब हम भोजन करते हैं तब इसी भाव से करते हैं कि हमारी देह में परमात्मा स्वयं वैश्वानर के रूप में इस आहार को ग्रहण कर रहे हैं और इससे समस्त प्राणियों की तृप्ति हो रही है, यानि समस्त सृष्टि का भरण-पोषण हो रहा है|
भोजन भी हम परमात्मा को निवेदित कर के वही करते हैं जो परमात्मा को प्रिय है|
भोजन से पूर्व हम ब्रह्मार्पण वाला मन्त्र भी बोलते हैं|
पर वास्तव में भगवान क्या खाते हैं?
भगवान हमारे अहंकार का ही भक्षण करते हैं| ॐ ॐ ॐ ||
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परमात्मा स्वयं ही हमारे माध्यम से आहार ग्रहण कर रहे हैं, इसी भाव से भोजन करें|
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हम जो भी भोजन करते हैं या जो कुछ भी खाते-पीते हैं, वह हम नहीं खाते-पीते, बल्कि साक्षात परमात्मा को खिलाते-पिलाते हैं जिस से समस्त सृष्टि का भरण-पोषण होता है| परमात्मा स्वयं ही हमारे माध्यम से आहार ग्रहण कर रहे हैं| इसी भाव से सदा भोजन ग्रहण करें|
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उपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए निज विवेक से सदा याद रखें .....
हम क्या खाएं ?
कैसे खाएं ?
कहाँ खाएं ?
क्या संकल्प लेकर खाएं ? आदि आदि |
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सप्रेम धन्यवाद | ॐ ॐ ॐ ||
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