भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन लोक देवता बाबा रामदेव जी के मेले का समापन होता है| जैसलमेर जिले में उनका स्थान एक जागृत स्थान है जिसकी प्रत्यक्ष अनुभूति मैंने स्वयं वहाँ की है|
१५वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत में विदेशी आक्रांताओं द्वारा लूट-खसोट के कारण स्थिति बड़ी खराब थी| समाज में दुर्भाग्य से छुआछूत भी फैल गई थी| ऐसे विकट समय में पश्चिमी मारवाड़ में जैसलमेर के समीप पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर भाद्रपद शुक्ल द्वितीया वि.स. १४०९ के दिन बाबा रामदेव जी अवतरित हुए, जिन्होने अत्याचार और छुआछूत का सफलतापूर्वक विरोध किया| बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तेंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था| राजस्थान के जनमानस में पाँच वीरों की प्रतिष्ठा है, जिन में बाबा रामदेव जिन्हें "रामसा पीर" भी कहते हैं, का विशेष स्थान है ...
"पाबू हडबू रामदेव माँगळिया मेहा |
पांचू वीर पधारजौ ए गोगाजी जेहा ||"
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बाबा रामदेव ने डाली बाई नामक एक दलित कन्या को अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण किया था| बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे| लेकिन उन्होंने राजा बनकर नहीं, अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों की सेवा की| उन्होने भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स.१४४२ को जीवित समाधी ले ली| बाबा रामदेव के भक्त दूर- दूर से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और आराधना करने आते हैं| वे अपने भक्तों के दु:ख दूर करते हैं, और उन की मनोकामना पूर्ण करते हैं। हर वर्ष लगने वाले मेले में तो लाखों की संख्या में एकत्र होने वाले भक्तों की भीड़ से उनकी महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय की श्रद्धा का आंकलन आसानी से किया जा सकता है|
२८ अगस्त २०२०
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