परमशिव को परिभाषित नहीं किया जा सकता। यह अनुभूति गहन ध्यान में होती है। ध्यान करते करते जब सहस्त्रारचक्र का ऊपरी भाग हट जाये तब अनंतता की अनुभूति होती है। इस अनंतता से भी परे जाने का अभ्यास करें। अपनी चेतना में लाखों करोड़ किलोमीटर ऊपर उठ जाएँ। और ऊपर उठें, और ऊपर उठें, जितना ऊपर उठ सकते हैं, उतना ऊपर उठते जाएँ। मार्ग में कोई प्रकाश पुंज मिले तो उससे भी ऊपर उठते रहें। अंततः एक विराट श्वेत ज्योति पुंज, और पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र के दर्शन होंगे। उसी में स्थित होकर ध्यान कीजिये। वहीं रहिये। कहीं कोई अंधकार नहीं है। जब आप इतनी ऊंचाई पर पहुँच जाएँगे तब आपको परमशिव की अनुभूति होगी। वहीं हमारा घर है। वहीं हमारा निवास है। किसी भी तरह की लौकिक आकांक्षा नहीं होनी चाहिए। समर्पित होकर उसी में स्वयं को स्थित कीजिये। उसी चेतना में रहते हुए सारे सांसारिक कर्तव्यों को निभाएँ। आप यह मनुष्य देह नहीं, स्वयं परमशिव हैं।
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