Tuesday, 27 August 2024

हम इतने डरपोक और कायर क्यों हैं? कायरता और दब्बूपन को दूर कैसे करें?

 इसमें गलती हमारी नहीं, हमारे बड़े-बूढ़ों, और हमारे समाज की है जिसने बचपन से ही डरा-धमका कर हमारा पालन-पोषण किया और डरा-धमका कर ही हमें बड़ा किया। इस के पीछे उनका स्वार्थ था कि बच्चा हमारी बात मानेगा और हमसे डर कर रहेगा। इस का परिणाम यह हुआ है कि कुछ अपवादों को छोड़कर पूरी हिन्दू कौम ही डरपोक, दब्बू और स्वार्थी हो गई है।

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अन्यथा हम इतने भयभीत क्यों हैं? किसी अज्ञात भय से हर समय हम भयग्रस्त क्यों रहते हैं? आसुरी और पैशाचिक शक्तियों से हमारी रक्षा सिर्फ क्षत्रिय वर्ग ने ही की है। आतताइयों के विरुद्ध समाज के अन्य वर्गों ने शस्त्र क्यों नहीं उठाये? अभी भी हम क्यों भूल जाते हैं कि हम देश की जनसंख्या का ८०% हैं, हम ८० करोड़ हैं। जरा जरा सी बात पर हम डर जाते हैं और भयभीत होकर रहते हैं। एक अज्ञात भय से भयग्रस्त रहना ही हमारा स्वभाव बन गया है।
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एक बालक हो या बालिका, उनमें इतना साहस विकसित करना चाहिए कि वे बिना किसी भय के निडर और निर्भीक होकर पूरे साहस के साथ अपनी बात अपने माता-पिता को कह सकें। माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपनी संतानों की समस्या को समझें और उनकी पूरी बात को सुनें।
जो लोग बात बात पर अपने बच्चों को मार मार कर उन्हें कायर व दब्बू बनाते हैं वे सब नर्क में जायेंगे, चाहे वे कितने भी पूज्य और वंदनीय क्यों न हों। वे पूरे राष्ट्र को ही कायर बनाने का अपराध कर रहे हैं।
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कायरता और दब्बूपन को दूर कैसे करें? ---
इसके लिए भगवान श्रीराम की आराधना करनी होगी। इस विषय पर पर मैं पहले भी बहुत लिख चुका हूँ, अब और नहीं लिखा जा रहा। जिसने जन्म लिया है वह मरेगा भी। बार बार मरने से तो अच्छा है कि हम एक बार ही मर जायें।
मन में सदा राम जी को, और उनके सेवक हनुमान जी को रखें, कोई भय हमारे समीप नहीं आयेगा।
"नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारूचापं, नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥"
"श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥" "श्रीमते रामचंद्राय नमः॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
८ अगस्त २०२४

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