परमात्मा से पृथक हमारी कोई पहिचान नहीं है। जैसे विवाह के बाद स्त्री का वर्ण, गौत्र, और जाति वही हो जाती है, जो उसके पति की होती है; वैसे ही परमात्मा को समर्पण के पश्चात हमारी भी पहिचान वही हो जाती है, जो परमात्मा की है।
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हम यह शरीर नहीं, एक शाश्वत आत्मा हैं। यह शरीर तो एक वाहन है जो हमें इस लोकयात्रा के लिए मिला हुआ है। यह सारी सृष्टि ही परमात्मा का शरीर है। हम सब का धर्म "सनातन" है, जिसे इस सृष्टि की रचना के समय स्वयं परमात्मा ने रचा था। हम परमात्मा के साथ एक, और उनके अमृत पुत्र हैं। यह सत्य एक न एक दिन सभी को समझना ही पड़ेगा॥
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धर्म की जय हो। अधर्म का नाश हो। प्राणियों में सद्भावना हो। जीव का कल्याण हो। भारत माता की जय हो। हर हर महादेव ! महादेव महादेव महादेव !!
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जुलाई २०२४
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