Tuesday 27 August 2024

भगवती बाला त्रिपुर सुंदरी को नमन --

 भगवती बाला सुंदरी की साधना भगवती के बाल रूप की मोक्षदायिनी साधना है।

यह तंत्र की दस महाविद्याओं में से एक, अति अति गोपनीय साधना है जिसका ज्ञान दण्डी-सन्यासियों और नाथ संप्रदाय के सिद्ध योगियों से ही प्राप्त हो सकता है। वे भी किसी की पात्रता देखकर सुपात्र को ही यह विद्या प्रदान करते हैं। यह एक दुधारी तलवार है जिससे शत्रु का संहार भी हो सकता है, और स्वयं का सिर भी काटा जा सकता है।
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इसे ही "श्रीविद्या" भी कहते हैं। सृष्टि का कोई भी वैभव, और मोक्ष इनकी साधना से प्राप्त हो सकता है। यदि आप ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते, और सदाचारी नहीं हैं तो इसे भूल जाएँ। यह साधना फिर आपके लिए नहीं है। यह साधना दिखने में ही सौम्य है, लेकिन वास्तव में बहुत ही अधिक उग्र है।
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इनका वर्णन श्रीब्रह्मांडपुराण के उत्तर खंड में भगवान विष्णु के अवतार श्रीहयग्रीव और अगस्त्य ऋषि के मध्य संवाद के रूप में है। भगवती श्रीललिता महात्रिपुरसुंदरी की साधना का क्रम होता है। पहले उनकी साधना बाल रूप में एक नौ वर्ष की कन्या के रूप में होती है, फिर षोड़सी के रूप में, फिर माता के रूप में। जिस तरह एक शिशु अपनी माता की गोद में सोता है, वैसे ही एक साधक इनकी गोद में ही शरणागत होकर सोता है, उठता भी इन्हीं की गोद में है, और सारे कार्य भी इन्हीं की शरणागत होकर करता है। ये हमारी माता हैं। हम इनकी शरणागत हैं।
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"सिन्दूरारुणविग्रहां त्रिनयनां माणिक्यमौलिस्फुरत्
तारानायकशेखरां स्मितमुखीमापीनवक्षोरुहाम्।
पाणिभ्यामलिपूर्णरत्नचषकं रक्तोफळं बिभ्रतीं
सौम्या रत्नघटस्थरक्तचरणां ध्यायेत्पराम्बिकाम्॥"
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॥श्री ललितामहात्रिपुरसुन्दर्यै नमः

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