Tuesday, 27 August 2024

हमारी सब की सबसे बड़ी पीड़ा ----

सृष्टि के आरंभ से ही भारत में शासन का सबसे बड़ा दायित्व "धर्म की रक्षा" रहा है। त्रेतायुग से सभी क्षत्रिय राजाओं ने "राम-राज्य की स्थापना" को ही अपना आदर्श माना है। धर्म सिर्फ एक ही है, और वह है "सनातन", जो मनु-स्मृति में दिये धर्म के दस लक्षणों को धारण करता है --

"धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।।" (मनुस्मृति ६.९२)
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कणाद ऋषि के वैशेषिक-सूत्रों के अनुसार --
"यतो अभ्युदयः निःश्रेयस सिद्धि सधर्मः" जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस की सिद्धि हो वह धर्म है।
याज्ञवल्क्य ऋषि ने बृहदारण्यक में, व वेदव्यास जी ने भागवत-पुराण, पद्म-पुराण, और महाभारत आदि ग्रन्थों में धर्म-तत्व को बहुत अच्छी तरह से समझाया है।
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भारत में धर्म-शिक्षा के अभाव में धर्म का ह्रास बहुत तीब्रता से हो रहा है। भारत का वर्तमान शासन "धर्म-निरपेक्ष" और पश्चिम की ईसाई व्यवस्थाओं पर आधारित अधर्म-सापेक्ष है। यह व्यवस्था सदा नहीं रह सकती। इस समय तो हम भगवान से प्रार्थना के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कर सकते। भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि भारत का शासन सत्यनिष्ठ, धर्मसापेक्ष और धर्माधारित हो। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२७ जुलाई २०२४
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पुनश्च: -- हमारी आध्यात्मिक साधना का एकमात्र उद्देश्य धर्म की पुनः स्थापना और वैश्वीकरण है। ईश्वर की उपासना से हमारा उद्देश्य अवश्य पूर्ण होगा। अन्य कुछ भी हमें नहीं चाहिए।

हे जगन्माता, हे परमशिव, अपनी माया के आवरण, विक्षेप और सब दुर्बलताओं से मुझे मुक्त करो। मेरे अन्तःकरण में आप स्वयं सदा निवास करो, इसे इधर-उधर कहीं भटकने मत दो। मैं आपकी शरणागत हूँ। मेरा निवास सदा आपके हृदय में हो, और आप सदा मेरे हृदय में रहो। ॐ ॐ ॐ !!
चारों ओर के नकारात्मक परिवेश का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। लेकिन अब भगवान का आश्वासन है, इसलिए निश्चिंत होकर ईश्वर की चेतना में रहते हुए उपासना कर सकता हूँ। किसी भी तरह का कोई रहस्य, अब रहस्य नहीं रहा है। कोई संशय नहीं है। गुरु-कृपा और हरिःकृपा -- पूर्णतः फलीभूत हो रही हैं। जैसे कल का सूर्योदय निश्चित है, वैसे ही इसी जीवनकाल में परमात्म लाभ भी अब सुनिश्चित है। सभी का कल्याण हो।




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