Tuesday, 27 August 2024

प्रश्न) (१): आध्यात्मिक साधना में विघ्न क्यों आते है? (प्रश्न) (२): भगवत्-प्राप्ति के लिए किन किन अवस्थाओं से गुजरना पड़ेगा? (प्रश्न) (३): भगवत्-प्राप्ति के लिए अब इस समय क्या करना चाहिए?

 मैं जो भी कुछ भी लिख रहा हूँ, वह मेरे स्वयं के निजी अनुभवों पर आधारित है। मेरे लिए मेरे निज अनुभव ही प्रमाण हैं।

(उत्तर) (१): एक बार यह प्रश्न मैंने बहुत ही विह्वल होकर भगवान से पूछा कि बार बार मुझे ये विघ्न क्यों आते हैं? क्यों आपकी माया का विक्षेप मुझे विक्षिप्त कर रहा है? चित्त में स्थिरता क्यों नहीं है? कहीं मैं पागलपन की ओर तो नहीं बढ़ रहा हूँ?
चैतन्य में जगन्माता की ओर से तुरंत उत्तर मिला कि यह विक्षेप ही तुम्हारी सबसे बड़ी और एकमात्र बाधा है। इसी के कारण अन्य सारे विघ्न आ रहे हैं, और इसी के कारण तुम्हारा चित्त अस्थिर है। इस विक्षेप का कारण तुम्हारे अवचेतन मन में भरा हुआ तमोगुण है। वह तमोगुण जब तक नष्ट नहीं होगा, तब तक यह विक्षेप तुम्हें दुःखी करता रहेगा। उपासना में सत्यनिष्ठापूर्वक दीर्घता और गहराई से अभ्यास निरंतर करते रहने से ही यह तमोगुण हटेगा।
(उत्तर) (२): जगन्माता ने करुणावश बताया कि -- "तुम स्वयं को ही धोखा दे रहे हो, तुम अपने लोभ और अहंकार से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाये हो। राग-द्वेष और अहंकार से पूरी तरह मुक्त होने पर ही आगे का मार्गदर्शन तुम्हें प्राप्त होगा।"
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इससे आगे किसी मेरे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया। लेकिन भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और सब कुछ समझ में आ गया। संक्षेप में संशयात्मक सब प्रश्नों का एक ही उत्तर है कि --
"अपनी दृष्टि निरंतर अपने लक्ष्य परमात्मा की ओर स्थिर रखो। ऊपर-नीचे, दायें-बाएँ, इधर-उधर, किधर भी मत देखो। दृष्टि अपने लक्ष्य पर स्थिर रहे।"
अब अन्य कोई प्रश्न नहीं बचा है। उन के प्रति सिर्फ समर्पण और परमप्रेम है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अगस्त २०२४

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