Tuesday 27 August 2024

आवरण और विक्षेप :---

 ​(यह लेख प्रतीकात्मक है लेकिन सत्य है। समझने वाले समझ जायेंगे, और जो न समझेंगे वे अभी अनाड़ी हैं।)

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परमात्मा के राजमार्ग में "आवरण" और "विक्षेप" नाम की दो बड़ी मायावी और अति शक्तिशाली राक्षसियाँ बैठी हैं, जो अपना रूप बदलने में अति निपुण हैं। वे किसी को आगे बढ़ने ही नहीं देतीं। कैसे भी उनको चकमा देकर आगे बढ़ना ही है। हरिः कृपा से ही उनको चकमा दिया जा सकता है, अन्यथा वे दोनों राक्षसियाँ बड़ी मायावी हैं, और उनसे पार पाना बड़ा दुस्तर है।
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उनको चकमा देकर आगे बढ़ भी गए तो राजमार्ग के बगल में "लोभ" और "अहंकार" नाम के दो बड़े आकर्षक नर्क के द्वार हैं, जिनके सामने से जाना पड़ता है। उन दरवाजों में जो प्रवेश कर जाता है, उसका एक बार तो बाजे-गाजे के साथ में बड़ा जबर्दस्त स्वागत किया जाता है, फूलमालाएँ पहिनाई जाती हैं, और मिठाई भी खिलाई जाती है। लेकिन अंदर प्रवेश करते ही वह पाता है कि वह तो किसी गलत स्थान में आ गया है। पीछे मुड़कर देखता है तो पाता है कि वहाँ कोई दरवाजा नहीं है, पर्दों के पीछे छिपे हुए यमदूत आते हैं और उसे घसीट कर मारते-पीटते ले जाते हैं और नर्ककुंड में डाल देते हैं।
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यदि वह लोभ और अहंकार के दरवाजों से बच भी गया तो आगे जाकर "काम", और "मोह" नाम के दो नर्कद्वार और भी आते हैं, जहाँ बड़ी सुंदर और आकर्षक युवतियाँ और युवक अपनी मनमोहिनी मुस्कान लिए खड़े मिलते हैं। मोह नामक द्वार में आपको अपने पुराने मित्र और सगे-संबंधी भी दिखाई दे सकते हैं। वहाँ भी अंदर प्रवेश करने वाले की बड़ी दुर्गति होती है और अंततः वह स्वयं को नर्ककुंड में पाता है।
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"क्रोध" और "मत्सर्य" नाम के अंतिम दरवाजे हैं। क्रोध नाम के दरवाजे के बाहर आप पायेंगे कि बड़े क्रोधी स्त्री और पुरुष वहाँ एक दूसरे से लड़ रहे है, और एक-दूसरे को गालियां दे रहे हैं। आपको उनकी गालियां और लड़ाई-झगड़ा अच्छा लगा तो वे आपको भी अपने में मिला लेंगे, और अंततः आप भी स्वयं को नर्ककुंड में पायेंगे। ऐसे ही मत्सर्य नाम के द्वार पर बड़ी सुंदर और आकर्षक युवतियाँ और युवक एक-दूसरे की चुगली करते मिलेंगे। आप भी उनके साथ मजा लेने लग गए तो वे आपको भी अपने साथ पटाकर ले जाएँगे और पकड़कर नर्ककुंड में डाल देंगे।
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किस नर्ककुंड में आपको कितने समय तक रहना है, और क्या कष्ट सहना है, इसका निर्णय अपने अपने कर्मानुसार यमराज के हाथ में हैं। यमराज के भैंसे के गले में जो घंटी बंधी होती है, उसकी आवाज बड़ी कर्कश होती है। उसे सुनते ही व्यक्ति अपनी सारी होशियारी भूल जाता है। पूरे जीवन के सारे दृश्य उस के सामने आ जाते हैं। इतने में उसके प्राण हर लिए जाते हैं। यमराज सिर्फ पुण्यात्माओं के ही प्राण हरते हैं, बाकी का काम तो उन के दूत ही करते हैं। जो भूत-प्रेत और जिन्नों की साधना करते हैं, उनको लेने तो यमदूत भी नहीं आते। उन्हें भूत-प्रेत और जिन्न ही अपने साथ ले जाते हैं।
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कोई दूसरा व्यक्ति किसी के काम नहीं आता। कुछ दिनों पूर्व मैंने एक लेख लिखा था जिसका सार था कि -- "Other person is the hell", यानि दूसरा व्यक्ति नर्क है। कोई किसी के काम नहीं आता। अपनी यात्रा अकेले ही पूरी करनी पड़ती है। भगवान भी केवल अनन्य-अव्यभिचारिणी भक्ति की बात करते हैं।
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जो मेरे मन के भाव थे, वे मैंने इस लेख में व्यक्त कर दिये। मेरे पास परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है। वे ही मेरे एकमात्र धन और संपत्ति हैं। वे ही अब तक की मेरी एकमात्र उपलब्धि हैं। और मेरे पास कुछ भी नहीं है। उनके बिना मैं अकिंचन और निर्धन हूँ।
जो मेरे इस लेख को समझ जाएँगे उन्हें मैं बुद्धिमान समझूँगा, बाकी के लोग अनाड़ी हैं। उनको कुछ और समय लगेगा समझने में।
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अंतिम बात पश्चिमी जगत की महानतम महिला संत श्रीश्री ज्ञानमाता के शब्दों में --
1. See nothing, look at nothing but your goal, ever shining before you.
2. The things that happen to us do not matter; what we become through them does.
3. Each day, accept everything as coming to you from God.
4. At night, give everything back into His hands.
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और क्या लिखूँ? मेरी चेतना में इस समय परमात्मा ही परमात्मा हैं। और कुछ भी नहीं है। आज एकादशी का पावन दिन है। सामने भगवान श्रीकृष्ण अपनी शांभवी मुद्रा में बैठे है। उनके ध्यान के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मेरी समझ में नहीं आ रहा है।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ नमः शिवाय। ॐ तत्सत्। ॐ स्वस्ति।
कृपा शंकर
३१ जुलाई २०२४

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