Tuesday 27 August 2024

(१) सुख और दुःख का कारण क्या हैं ? (२) मन में किसी भी तरह की कामना का होना, सब पापों का मूल है​।

(१) ("ॐ खं ब्रह्म॥" (यजुर्वेद ४०/१७)

" ख" -- आकाश तत्व, यानि ब्रह्म, यानि सर्वव्यापी आत्मा का नाम है। "स' का अर्थ होता है "समीप", और "द" का अर्थ होता हो दूर। जो परमात्मा से समीप है, वह सुखी है। जो परमात्मा से दूर है, वह दुःखी है।
परमात्मा से दूरी "नर्क" है, और परमात्मा से समीपता "स्वर्ग" है। हमारा लोभ और अहंकार ही हमें परमात्मा से दूर करते हैं। नर्क के सबसे बड़े और आकर्षक द्वार का नाम "लोभ" है, और उससे अगला द्वार "अहंकार" है।
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(२) मन में किसी भी तरह की कामना का होना, सब पापों का मूल है​ --
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कोई कामना है तो वह स्वयं "श्रीराम" की हो, हमारी नहीं। सारा जीवन राम-मय हो, इधर-उधर कहीं भी, या पीछे मुड़कर देखने का अवकाश न हो। रां रां रां रां रां रां रां -- यह राम नाम की ध्वनि है जो सारे अस्तित्व में गूंज रही है। चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, इस ध्वनि को न भूलें। इसी में अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का विसर्जन कर दें। यह जीवन निहाल हो जाएगा। जीवन में और कुछ भी नहीं चाहिए। "ॐ" और "रां" -- ये दोनों एक हैं, इनमें कोई भेद नहीं है। "कामना" (Desire) और "अभीप्सा" (Aspiration) -- इन दोनों शब्दों में दिन-रात का अंतर है। "अभीप्सा" कहते हैं -- परमात्मा के प्रति तड़प को, और "कामना" कहते है -- भोग्य पदार्थों के प्रति तड़प को। ये दोनों विपरीत बिन्दु हैं।
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राम, कृष्ण, और शिव आदि भगवान के नामों में कोई भेद नहीं है। यदि कहीं कोई भेद है तो वह हमारे मन में ही है, मन से बाहर कोई भेद नहीं है। भ्रू-मध्य में या आज्ञाचक्र में मानसिक रूप से एक दीपक जला दीजिये। उस दीपक के प्रकाश को सारे ब्रह्मांड में फैला दीजिये। कहीं कोई अंधकार नहीं है। उस दीपक के प्रकाश में "राम" नाम का जप कीजिये --- "ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ" या "रां रां रां रां रां"। उस दीपक का प्रकाश और कोई नहीं, हम स्वयं है। हम यह शरीर नहीं, वह सर्वव्यापी प्रकाश हैं। उस प्रकाश को ही ब्रह्मज्योति कहते हैं। वह "ब्रह्मज्योति" हम स्वयं हैं।
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जीवन का हर क्लेश, हर पीड़ा और हर दुःख दूर हो जाएगा। उस ब्रह्मज्योति के प्रकाश में इस मंत्र का निरंतर जप कीजिये ---
"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥"
इस मंत्र के प्रकाश में कोई आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। बड़े से बड़ा ब्रह्मराक्षस, ब्रह्मपिशाच, भूत-प्रेत, शैतान और कोई भी दुष्टात्मा हो, आपका कोई अहित नहीं कर सकता। लेकिन यह मंत्र जपना तो स्वयं आपको ही पड़ेगा, किसी अन्य को नहीं। किसी अन्य से जप करवाने से कोई लाभ नहीं होगा।
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यदि और भी आगे बढ़ना है तो "गोपाल सहस्त्रनाम" में भगवान श्रीकृष्ण का एक मंत्र दिया है -- "ॐ क्लीं"। "गोपाल" रूप में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान कीजिये और ऊपर बताई हुई ब्रह्मज्योति के प्रकाश में इस मंत्र का निरंतर जप कीजिये। यह मंत्र आपको विश्वविजयी बना देगा, लेकिन निष्काम भाव से ध्यान करें "गोपाल" रूप में भगवान श्रीकृष्ण का ही।
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आज श्रावण मास की नवमी है, और सोमवार है। बड़ा पवित्र और शुभ दिन है। और कुछ न कर सको तो प्रणव का जप करते करते भगवान शिव का ध्यान करो। एक बार कर लिया तो नित्य निरंतर करते रहो। भगवान शिव ही गुरु हैं। ॐ इति॥
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! गुरु ॐ !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ जुलाई २०२४

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