सब तरह के वासनात्मक विचारों से ऊपर उठकर कूटस्थ में भगवान श्रीराम का ध्यान कीजिये, जिन्होंने आतताइयों के विनाश के लिए हाथ में धनुष धारण कर रखा है। आप चाहें तो शांभवी मुद्रा में ध्यानस्थ, या त्रिभंग मुद्रा में खड़े भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान भी कूटस्थ में कर सकते हैं। यदि आपके लिए स्वभाविक है तो परमशिव का ध्यान कीजिये, या कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान कीजिये। वे सब अपने परम ज्योतिर्मय रूप में हैं।
.
आप यह भौतिक शरीर नहीं, परमात्मा की सर्वव्यापकता हैं। उन्हें स्वयं में अवतरित कीजिये। उनके निरंतर स्मरण, चिंतन, मनन और निदिध्यासन से स्वतः ही ध्यान होने लगेगा। स्वयं में परमात्मा का बोध कीजिये और परमात्मा की चेतना में रहिए। आप यह नश्वर भौतिक देह नहीं, स्वयं साक्षात परमशिव हैं। सदा उनकी चेतना में रहने का अभ्यास करें।
.
सृष्टि के संचालन के लिए तमोगुण यानि अंधकार भी आवश्यक है। उसे नष्ट नहीं किया जा सकता। लेकिन उससे बच कर ही हम सत्य का बोध कर सकते हैं।
"श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥" "श्रीमते रामचंद्राय नमः॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ नमो भगवाते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !!
कृपा शंकर
८ अगस्त २०२४
No comments:
Post a Comment