Tuesday, 27 August 2024

भगवत्-प्राप्ति हमारा सत्य-सनातन-धर्म है ---

भारत एक तपोभूमि है, आने वाला समय धर्म की पुनः स्थापना का है। आने वाला युग "धर्मयुग" होगा। भारत की रक्षा होगी। भारत ही धर्म है, और धर्म ही भारत है। धर्म की रक्षा होगी, अधर्म का नाश होगा। यह भगवान का शाश्वत वचन है। भगवत्-प्राप्ति हमारा सत्य-सनातन-धर्म है। इस धर्म की रक्षा के लिए ही हम आध्यात्मिक साधना करते हैं। धर्म क्या है? इस विषय पर अनेक बार लिख चुके हैं। हमारी आध्यात्मिक साधना का उद्देश्य "धर्म की रक्षा" है, व्यक्तिगत मोक्ष नहीं। धर्म की रक्षा भगवान करते हैं, लेकिन उसका निमित्त तो हमें बनना ही होगा। अब इस विकट समय में जब हमारे धर्म पर मर्मांतक प्रहार हो रहे हैं, धर्मरक्षा हेतु ही हमारी आध्यात्मिक साधना होगी। जितना समय इन मंचों पर लेख लिखने में व्यय होता है, उसका उपयोग परमात्मा की उपासना में करेंगे। यही प्रेरणा हमें परमात्मा से मिल रही है। जब भी परमात्मा की इच्छा होगी हम पुनश्च: आध्यात्मिक विषयों पर लिखेंगे। वर्तमान समय में कुछ समय तक के लिए तो भगवान को नमन!!
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"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥"
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥"
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"यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा
शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम् ||”
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नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारूचापं, नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥
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"वसुदॆव सुतं दॆवं कंस चाणूर मर्दनम्।
दॆवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम्॥"
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"वंशीविभूषित करान्नवनीरदाभात्, पीताम्बरादरूण बिम्बफला धरोष्ठात्।
पूर्णेंदु सुन्दर मुखादरविंदनेत्रात्, कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने॥"
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"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥"
"नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्। यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥"
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"कस्तूरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु: करे कंकणम्।
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावली,
गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते, गोपाल चूड़ामणि:॥"
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"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥"
"वायुर्यमोग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च
नमो नमस्तेस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोपि नमो नमस्ते॥"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥"
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !! श्रीमते रामचंद्राय नमः !!
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
६ अगस्त २०२४

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