भगवान की भक्ति हमारा स्वभाव और आदत बन जाए .....
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भक्ति का अर्थ है परमात्मा के प्रति परम प्रेम| हम स्वयं परमप्रेममय बन जाएँ, परमप्रेम हमारा स्वभाव और आदत बन जाए| हमारे विचार और भाव परमप्रेममय हो जाएँ| यह जीवन की एक उच्चतम उपलब्धि है| आध्यात्म में सर्वोपरी महत्व होने का है, करने का नहीं| नित्य जीवन में ऐसे ही लोगों के साथ मेलजोल रखें जो निरंतर परमात्मा के बारे में सोचते हैं| यथासंभव उन लोगों का साथ छोड़ दें जो परमात्मा से विमुख हैं| कई बार समाज में ऐसे लोगों से भी मिलना पड़ता है जिनके जीवन में परमात्मा का कोई स्थान नहीं है| उनसे मिलना मात्र तो क्या उनकी और आँख उठाकर देखना भी बड़ा दुःखदायी होता है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जनवरी २०१९
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भक्ति का अर्थ है परमात्मा के प्रति परम प्रेम| हम स्वयं परमप्रेममय बन जाएँ, परमप्रेम हमारा स्वभाव और आदत बन जाए| हमारे विचार और भाव परमप्रेममय हो जाएँ| यह जीवन की एक उच्चतम उपलब्धि है| आध्यात्म में सर्वोपरी महत्व होने का है, करने का नहीं| नित्य जीवन में ऐसे ही लोगों के साथ मेलजोल रखें जो निरंतर परमात्मा के बारे में सोचते हैं| यथासंभव उन लोगों का साथ छोड़ दें जो परमात्मा से विमुख हैं| कई बार समाज में ऐसे लोगों से भी मिलना पड़ता है जिनके जीवन में परमात्मा का कोई स्थान नहीं है| उनसे मिलना मात्र तो क्या उनकी और आँख उठाकर देखना भी बड़ा दुःखदायी होता है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जनवरी २०१९
धर्म की रक्षा व उसका विस्तार करने के लिए हमें अहंकार से मुक्त और निमित्तमात्र बनना होगा.
ReplyDeleteतभी हम सफल होंगे.
ॐ ॐ ॐ
अब एक ही संकल्प है कि हम अपने राष्ट्र और धर्म की रक्षा निज विवेक के प्रकाश में कर सकें.
ReplyDeleteजो भी अपने सामर्थ्य में हो वह करें.
ॐ ॐ ॐ
देश, धर्म, समाज, और अपनी संस्कृति की रक्षा करें.
ReplyDeleteवर्तमान अपरिहार्य परिस्थितियों में हम अपना सर्वश्रेष्ठ जो कर सकते हैं,
वह ही करें.