Thursday 24 January 2019

हमारा एकमात्र शत्रु .....

हमारा एकमात्र शत्रु .....
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मनुष्य जाति की एकमात्र शत्रु स्वयं की अधोगामी निम्न प्रकृति ही है, अन्य कोई हमारा शत्रु नहीं है| यह अधोगामी प्रकृति ही हमारी सभी बुराइयों की जड़ है| यही हमारे अहंकार को प्रबल कर दूसरों को भयभीत करती है| इस से ऊपर उठने का उपाय उपनिषद् और गीता हमें बताती हैं| हमारे में दो प्रबल शक्तियाँ कार्यरत हैं, एक तो हमें परमात्मा की ओर खींचती है, और दूसरी हमें परमात्मा से दूर ले जाती है| इन्हीं के बीच का द्वंद्व हमारा जीवन है| इस अधोगामी शक्ति यानी निम्न प्रकृति को ही इब्राहिमी मतों ने शैतान का नाम दिया है| यह शैतान कहीं बाहर नहीं हमारी स्वयं की ही निम्न प्रकृति है, जिस पर विजय प्राप्त करना ही गीता का सन्देश है|
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क्या स्वयं से पृथक कोई अन्य है? वास्तव में स्वयं से पृथक अन्य कोई नहीं है| हम स्वयं को यह शरीर मानते हैं और इसी के सुख व तृप्ति के लिए दिन-रात लगे रहते हैं, यही हमारा पतन है|
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हम ब्रह्म यानि परमात्मा के साथ सदा अभेद का चिंतन करें| इस से आसक्ति और स्पृहा से मुक्त होकर हमें नैष्कर्म्य सिद्धि होगी जिसके बारे में भगवान् श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं .....
"असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः| नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति||१८:४९||
इससे पूर्व भगवान यह भी कह चुके हैं .....
"यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः| हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः||१२:१५||
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सब के हृदय में परमात्मा के प्रति परमप्रेम जागृत हो, इसी शुभ कामना के साथ परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन !
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||११:३९||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||११:४०||
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जनवरी २०१९

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