Monday, 17 October 2016

लोगों से मित्रता की कामना ..... निजात्मा की परमात्मा को पाने की तड़फ की ही अभिव्यक्ति है ....

लोगों से मित्रता की कामना ..... निजात्मा की परमात्मा को पाने की तड़फ की ही अभिव्यक्ति है|
सांसारिक लोगों से अत्यधिक घनिष्ठता अंततः वितृष्णा यानि घृणा को जन्म देती है| अत्यधिक घनिष्ठता से अंततः निराशा ही मिलती है| मित्रता वहीं सफल होती है जहां मित्रता का आधार परमात्मा के प्रति प्रेम होता है| अन्य आधार बेचैनी और असंतोष को जन्म देते हैं| वास्तव में हमारा सच्चा और एकमात्र मित्र परमात्मा ही है|
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सुख ..... मन की एक अस्थायी अवस्था मात्र है|
जीवन में सुख पाने की कामना भी वास्तव में निजात्मा की सच्चिदानंद को पाने की तड़फ की ही अभिव्यक्ती मात्र है| यह एक अभीप्सा ही है जो सिर्फ परमात्मा से ही तृप्त हो सकती है| संसार में सुख की खोज में आज तक तो कोई सुखी नहीं हुआ| जिन को हम सुखी समझते हैं, उनसे पूछ कर देख लीजिये, तब पता चल जाएगा कि कौन सुखी है| सुख वास्तव में मन की एक अस्थायी अवस्था मात्र है| वास्तविक सुख तो सच्चिदानंद परमात्मा की भक्ति से प्राप्त आनंद ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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