Monday, 17 October 2016

सदा ह्रदय की ही सुननी चाहिए, मन की नहीं .....

(1) सदा ह्रदय की ही सुननी चाहिए, मन की नहीं .
(2) ह्रदय कहाँ है ?
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(1) मनुष्य का मन और उसका ह्रदय कभी एक नहीं हो सकते| मन पर पूर्ण नियंत्रण हो जाए तो बात दूसरी है| मन गणना करता है, हित-अहित की सोचता है और झूठ भी बोलता है, जब कि ह्रदय सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म का बोध कराता है और कभी झूठ नहीं बोलता| ह्रदय में सदा परमात्मा का निवास होता है, सारे अच्छे विचार और प्रेरणाएँ वहीं से आती हैं| मन एक झरने सा उच्छशृंखल है, ह्रदय शांत सरोवर है| ह्रदय को अभिलाष है ..... सच्चे प्रेम की, कर्त्तव्य की, धर्म की, सम्मान की, पर मन इच्छुक है हर क्षण शरीर के सुख का| अतः हमें सदा ह्रदय की ही सुननी चाहिए, मन की नहीं| ह्रदय की भाषा मन के शब्दों और भावनाओं के परे है|
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(2) ह्रदय कहाँ है ? .....
जो योग मार्ग के साधक हैं उनके चैतन्य में ह्रदय का केंद्र भौतिक ह्रदय न रहकर, आज्ञाचक्र व सहस्त्रार के मध्य हो जाता है| वे प्रयासपूर्वक अपनी चेतना को आज्ञाचक्र से ऊपर रखते हैं जो कुछ समय पश्चात स्वभाविक हो जाता है| उसी क्षेत्र में उन्हें नाद यानि प्रणव की ध्वनी सुनाई देती है, और ज्योति का प्राकट्य भी वहीँ होता है जो कूटस्थ में प्रतिबिम्बित होती है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||

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