पूर्णता शिव में है, जीव में नहीं .....
---------------------------------
हर व्यक्ति में परमात्मा का अंश तो होता ही है, पर साथ साथ पशुता भी होती है|
अति अल्प मात्रा में ही सही जब तक व्यक्ति में अहंकार है, पशुता का अंश भी उसमें है| व्यक्ति का कभी भी पतन हो सकता है, उसे पता भी नहीं चलता|
हमारी यह बहुत बड़ी भूल है कि हम अपने राष्ट्रनायकों, महात्माओं और धर्मगुरुओं को पूर्ण समझते हैं; उनकी हर बात को आदर्श और परम सत्य मानते है, जो एक भटकाव है| उनके कहे हुए असत्य को भी सत्य मान लेते हैं| पर वे भी भूल कर सकते हैं और उनका भी आंशिक या गहन पतन हो सकता है|
.
पूर्णता और सत्य को परमात्मा में ढूंढें , मनुष्य में नहीं, चाहे उसका व्यक्तित्व कितना भी महान क्यों ना हो| सत्य एक अनुभूति है, जो प्रत्येक को अनुभूत करनी पडती है| एक व्यक्ति का सत्य दुसरे के काम नहीं आ सकता, मात्र प्रेरणा दे सकता है| दुसरे लोग हमें प्रेरणा दे सकते हैं पर सत्य का बोध तो परमात्मा के प्रत्यक्ष साक्षात्कार से ही हो सकता है| और जहाँ तक हमारा प्रश्न है हमें दूसरों के उज्जवल पक्ष से ही प्रेरणा लेनी चाहिए, ना कि उनके अंधकारमय पक्ष से|
.
हमारा निरंतर प्रयास हो कि हम प्रेममय बनें और उतरोत्तर प्रगति करते रहें| किसी गेंद को सीढियों पर गिरा दें तो वह नीचे की ओर ही जायेगी| किसी बर्तन को नियमित न माँजें तो उसकी चमक भी कम होती जायेगी| जीवन में स्थिरता नहीं है| या तो उत्थान है या पतन| निरतर उत्थान का प्रयत्न न करते रहेंगे तो पतन निश्चित है| हमारे भीतर एक देवता भी है और एक असुर भी| हमारा लक्ष्य इन दोनों से ऊपर उठ कर शिवत्व को उपलब्ध होना है| शुभ कामनाएँ|
.
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
---------------------------------
हर व्यक्ति में परमात्मा का अंश तो होता ही है, पर साथ साथ पशुता भी होती है|
अति अल्प मात्रा में ही सही जब तक व्यक्ति में अहंकार है, पशुता का अंश भी उसमें है| व्यक्ति का कभी भी पतन हो सकता है, उसे पता भी नहीं चलता|
हमारी यह बहुत बड़ी भूल है कि हम अपने राष्ट्रनायकों, महात्माओं और धर्मगुरुओं को पूर्ण समझते हैं; उनकी हर बात को आदर्श और परम सत्य मानते है, जो एक भटकाव है| उनके कहे हुए असत्य को भी सत्य मान लेते हैं| पर वे भी भूल कर सकते हैं और उनका भी आंशिक या गहन पतन हो सकता है|
.
पूर्णता और सत्य को परमात्मा में ढूंढें , मनुष्य में नहीं, चाहे उसका व्यक्तित्व कितना भी महान क्यों ना हो| सत्य एक अनुभूति है, जो प्रत्येक को अनुभूत करनी पडती है| एक व्यक्ति का सत्य दुसरे के काम नहीं आ सकता, मात्र प्रेरणा दे सकता है| दुसरे लोग हमें प्रेरणा दे सकते हैं पर सत्य का बोध तो परमात्मा के प्रत्यक्ष साक्षात्कार से ही हो सकता है| और जहाँ तक हमारा प्रश्न है हमें दूसरों के उज्जवल पक्ष से ही प्रेरणा लेनी चाहिए, ना कि उनके अंधकारमय पक्ष से|
.
हमारा निरंतर प्रयास हो कि हम प्रेममय बनें और उतरोत्तर प्रगति करते रहें| किसी गेंद को सीढियों पर गिरा दें तो वह नीचे की ओर ही जायेगी| किसी बर्तन को नियमित न माँजें तो उसकी चमक भी कम होती जायेगी| जीवन में स्थिरता नहीं है| या तो उत्थान है या पतन| निरतर उत्थान का प्रयत्न न करते रहेंगे तो पतन निश्चित है| हमारे भीतर एक देवता भी है और एक असुर भी| हमारा लक्ष्य इन दोनों से ऊपर उठ कर शिवत्व को उपलब्ध होना है| शुभ कामनाएँ|
.
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
No comments:
Post a Comment