Monday, 17 October 2016

स्वयंभु ब्रह्मणे नमः .....

स्वयंभु ब्रह्मणे नमः .....
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क्या महासागर की एक लहर महासागर को देख सकती है ?
क्या एक मिट्टी का एक घड़ा मिट्टी को देख सकता है ?
हमारा वास्तविक स्वरुप परमात्मा है, उससे परे अन्य कुछ है ही नहीं|
हमारा वास्तविक रूप ही आनंदमय है और हम आनंद को ढूंढ रहे हैं|
अज्ञान तो ज्ञान से ही दूर हो सकता है|
अपनी आनन्दरूपता को न जानने के कारण ही हम सुख के पीछे भटक रहे हैं|
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अजपा-जप और प्रणव पर ध्यान के द्वारा परमात्मा पर चित्त स्थिर करना चाहिये|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!

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