Monday, 17 October 2016

शाश्वत् मित्र .......

शाश्वत् मित्र .......
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जब इस आत्मा का इस देह रूप में अवतरण हुआ उस से पूर्व एक मित्र परमात्मा ही था जो सदा साथ में था| जन्म के पश्चात माँ बाप के रूप में उस मित्र परमात्मा ने ही पालन पोषण किया| उस मित्र परमात्मा ने ही भाई, बहिनों, काका, काकी, ताऊ, ताई, दादी, भुआ, भाभी और अन्य सभी सम्बन्धियों के रूप में प्रेम किया| सभी मित्रों, सहपाठियों और सहकर्मियों के रूप में भी उस मित्र परमात्मा ने ही साथ दिया|
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शांति में, युद्धों में, देश-विदेशों में और महासागरों में, प्रकृति के सौम्यतम और विकरालतम रूपों में, पृथ्वी के हर भाग में, अपरिचित, अजनबी और अनजान लोगों के मध्य सदा मैंने एक अदृश्य मित्र को साथ पाया जो मेरा साथ देता था व निरंतर मेरी रक्षा करता था|
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अब जब मेरे कई सम्बन्धी, मित्र और अधिकांश सहकर्मी तो पता नहीं कहाँ अज्ञात अनंतता में चले गए हैं, मैं उस अदृश्य मित्र को ही सदा साथ में पाता हूँ जो निरंतर मेरे सुख दुःख का साथी है| वह दिखता नहीं है पर सदा मेरे साथ है| वह ही उपरोक्त सभी रूपों में छलिया बन कर आया था| लगता है उसका काम ही छलने का है| जीवन में आनंद और पीड़ाएँ दोनों उसी ने दीं और साथ साथ भुगती भी|
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वह मित्र ही है जो इस ह्रदय में धड़क रहा है, इन आँखों से देख रहा है, और इस देह की समस्त क्रियाओं का संचालन कर रहा है| एक दिन जब वह इस देह के ह्रदय में धड़कना बंद कर देगा तब मेरे लिए सब कुछ, यहाँ तक कि यह पृथ्वी भी छूट जायेगी और पता नहीं कहाँ अज्ञात में जाना होगा तब वह मित्र ही सदा मेरे साथ में रहेगा|
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मैं सार्थकता इसी में पाता हूँ कि उस परम शिव शाश्वत मित्र से मित्रता और भी प्रगाढ़ हो जाये और उसके साथ कोई भेद ना रहे| मेरा प्रथम, अंतिम और एकमात्र प्रेम अब उसके साथ ही है जो कहीं भी दिखाई नहीं देता पर सब रूपों में वही है|

ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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