Tuesday 23 August 2016

हे हरि सुन्दर .....

हे हरि सुन्दर, हे हरि सुन्दर, तेरे चरणों पर शीश नमन करता हूँ |
हे हरि, उन सब का हरण कर लो, जिन्होनें तुम से मेरा हरण कर लिया है |
सब कुछ तो तुम ही हो, समस्त अस्तित्व और उससे भी परे जो कुछ भी है, वह तुम ही हो | तुम्हारे से पृथक कुछ भी नहीं है | फिर भी यह अतृप्त प्यास, तड़प और वेदना क्यों है ?
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सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म |
प्रज्ञानं ब्रह्म |
अयमात्मा ब्रह्म |
अहं ब्रह्मास्मि |
तत्वमसि |
सर्व खल्विदं ब्रह्म |
सच्चिदानंद ब्रह्म |
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समस्त अस्तित्व ब्रह्म है | जिस प्रकार एक जन्मांध किसी रंग को नहीं पहिचान सकता, उसी तरह तर्क-वितर्क और बुद्धि से उसे समझना असंभव है|
वह सिर्फ अहैतुकी परम प्रेम, समर्पण उसकी महती अनुकम्पा यानि परम कृपा के द्वारा ही समझा जा सकता है|

जब तुम ही सर्वस्व हो फिर यह विक्षेप और आवरण क्यों है ?
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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