जब भी ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि जल रही होती है उसे पाने की तो जो भी समय मिलता है वह उसी के चिंतन मनन में निकल जाता है|
परमात्मा किसी की रक्षा करेंगे या नहीं इसकी चिंता नहीं होनी चाहिए| यह सृष्टि उसी की है| वह अपनी सृष्टि चलाने में सक्षम है| यदि वह चाहता है कि अधर्म का राज्य हो तो अधर्म और दुष्टों का ही राज्य होगा| नुकसान भी तो उसी का ही है, उसी के प्रेमी मित्र, साधू संत सब समाप्त हो जायेंगे|
परमात्मा किसी की रक्षा करेंगे या नहीं इसकी चिंता नहीं होनी चाहिए| यह सृष्टि उसी की है| वह अपनी सृष्टि चलाने में सक्षम है| यदि वह चाहता है कि अधर्म का राज्य हो तो अधर्म और दुष्टों का ही राज्य होगा| नुकसान भी तो उसी का ही है, उसी के प्रेमी मित्र, साधू संत सब समाप्त हो जायेंगे|
जहाँ भी
उसने अपनी संतानों को रखा है वहीं उसे आना ही पड़ेगा| जो भी उसके द्वारा
अपनी संतानों के माध्यम से अनुभूत और व्यक्त हो रहा है वह उसी का है| यदि
उसकी संतानें दुखी हैं तो वह स्वयं दुखी है, वे आनंद में हैं तो वह ही आनंद
में है|
उसके प्रेमियों को उसकी पूर्णता से कम कुछ भी नहीं चाहिए| यदि उसकी इच्छा है कि वे दुखी होकर मर जाएँ तो वे सहर्ष मर जायेंगे| पर मरते समय भी ध्यान उसी का ही रहना चाहिए| शेष कुछ भी नहीं है| उसी की इच्छा पूरी हो|
वह अपनी सृष्टि को कैसे भी चलाये, अंततः दुखी वही है|
उसके प्रेमियों को उसकी पूर्णता से कम कुछ भी नहीं चाहिए| यदि उसकी इच्छा है कि वे दुखी होकर मर जाएँ तो वे सहर्ष मर जायेंगे| पर मरते समय भी ध्यान उसी का ही रहना चाहिए| शेष कुछ भी नहीं है| उसी की इच्छा पूरी हो|
वह अपनी सृष्टि को कैसे भी चलाये, अंततः दुखी वही है|
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