Tuesday 23 August 2016

जब भी ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि जल रही होती है ......

जब भी ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि जल रही होती है उसे पाने की तो जो भी समय मिलता है वह उसी के चिंतन मनन में निकल जाता है|
परमात्मा किसी की रक्षा करेंगे या नहीं इसकी चिंता नहीं होनी चाहिए| यह सृष्टि उसी की है| वह अपनी सृष्टि चलाने में सक्षम है| यदि वह चाहता है कि अधर्म का राज्य हो तो अधर्म और दुष्टों का ही राज्य होगा| नुकसान भी तो उसी का ही है, उसी के प्रेमी मित्र, साधू संत सब समाप्त हो जायेंगे|
जहाँ भी उसने अपनी संतानों को रखा है वहीं उसे आना ही पड़ेगा| जो भी उसके द्वारा अपनी संतानों के माध्यम से अनुभूत और व्यक्त हो रहा है वह उसी का है| यदि उसकी संतानें दुखी हैं तो वह स्वयं दुखी है, वे आनंद में हैं तो वह ही आनंद में है|
उसके प्रेमियों को उसकी पूर्णता से कम कुछ भी नहीं चाहिए| यदि उसकी इच्छा है कि वे दुखी होकर मर जाएँ तो वे सहर्ष मर जायेंगे| पर मरते समय भी ध्यान उसी का ही रहना चाहिए| शेष कुछ भी नहीं है| उसी की इच्छा पूरी हो|
वह अपनी सृष्टि को कैसे भी चलाये, अंततः दुखी वही है|

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