ह्रदय की अभीप्सा कैसे शांत हो ? .......
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अभीप्सा ..... ह्रदय की एक प्यास होती है जो निरंतर बढती रहती है, कभी शांत नहीं होती| जब वह अभीप्सा जागृत होती है तब ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती है, और ह्रदय तड़प उठता है| अभीप्सा में कोई माँग नहीं होती, सिर्फ समर्पण होता है|
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बढ़ते बढ़ते वह प्यास सारे भौतिक, प्राणिक और मानसिक स्तरों का अतिक्रमण कर जाती है| यानि किसी भी भौतिक, प्राणिक और मानसिक उपायों या उपलब्धियों से शांत नहीं होती| संसार की कोई भी वस्तु उसे शांत नहीं कर सकती|
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उस अभीप्सा को शांत करने के लिए कई बार मनुष्य भटकता है| उसकी प्रबल जिज्ञासा भटकाते भटकाते उसे अनेक प्रकार का बौद्धिक अध्ययन करवाती है पर वह प्यास बौद्धिकता से शांत नहीं होती| अनेक ठग गुरुओं के चक्कर में वह ठगा भी जाता है जो चेले मूँडने को सदैव उपलब्ध रहते हैं| अनचाहे हर प्रकार के सलाहकार भी मिल जाते हैं| पर वह प्यास फिर भी अतृप्त रहती है|
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अंततः वह मनुष्य परमात्मा से प्रार्थना करता है तब भगवान स्वयं ही कृपा कर के उसका किसी न किसी माध्यम से मार्गदर्शन कर देते हैं| पर यह तो उसकी होने वाली एक लम्बी यात्रा का आरम्भ मात्र है| अनेक भटकाव फिर भी आते हैं पर करुणा कर के कृपासिंधु भगवान उसे बार बार सन्मार्ग पर ले आते हैं| हिमालय जैसी बड़ी बड़ी भूलें भी क्षमा कर दी जाती हैं|
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यह अभीप्सा सिर्फ और सिर्फ परमात्मा के अहैतुकी परम प्रेम यानि परा भक्ति से ही शांत होती है|
जहाँ तक मेरा अनुभव है ऐसी ही अत्यधिक बेचैन कर देने वाली प्रचंड अग्नि की दाहकता वाली यह अभीप्सा कोई छोटे मोटे उपायों से नहीं बल्कि कई कई घंटों की गहन ध्यान साधना के बाद ही शांत होती है|
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हम सब के हृदयों में ऐसी ही पराभक्ति जागृत हो, हम सब के हृदयों में वह अभीप्सा जागृत हो, इसी शुभ कामना के साथ सब को सादर नमन !
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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अभीप्सा ..... ह्रदय की एक प्यास होती है जो निरंतर बढती रहती है, कभी शांत नहीं होती| जब वह अभीप्सा जागृत होती है तब ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती है, और ह्रदय तड़प उठता है| अभीप्सा में कोई माँग नहीं होती, सिर्फ समर्पण होता है|
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बढ़ते बढ़ते वह प्यास सारे भौतिक, प्राणिक और मानसिक स्तरों का अतिक्रमण कर जाती है| यानि किसी भी भौतिक, प्राणिक और मानसिक उपायों या उपलब्धियों से शांत नहीं होती| संसार की कोई भी वस्तु उसे शांत नहीं कर सकती|
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उस अभीप्सा को शांत करने के लिए कई बार मनुष्य भटकता है| उसकी प्रबल जिज्ञासा भटकाते भटकाते उसे अनेक प्रकार का बौद्धिक अध्ययन करवाती है पर वह प्यास बौद्धिकता से शांत नहीं होती| अनेक ठग गुरुओं के चक्कर में वह ठगा भी जाता है जो चेले मूँडने को सदैव उपलब्ध रहते हैं| अनचाहे हर प्रकार के सलाहकार भी मिल जाते हैं| पर वह प्यास फिर भी अतृप्त रहती है|
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अंततः वह मनुष्य परमात्मा से प्रार्थना करता है तब भगवान स्वयं ही कृपा कर के उसका किसी न किसी माध्यम से मार्गदर्शन कर देते हैं| पर यह तो उसकी होने वाली एक लम्बी यात्रा का आरम्भ मात्र है| अनेक भटकाव फिर भी आते हैं पर करुणा कर के कृपासिंधु भगवान उसे बार बार सन्मार्ग पर ले आते हैं| हिमालय जैसी बड़ी बड़ी भूलें भी क्षमा कर दी जाती हैं|
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यह अभीप्सा सिर्फ और सिर्फ परमात्मा के अहैतुकी परम प्रेम यानि परा भक्ति से ही शांत होती है|
जहाँ तक मेरा अनुभव है ऐसी ही अत्यधिक बेचैन कर देने वाली प्रचंड अग्नि की दाहकता वाली यह अभीप्सा कोई छोटे मोटे उपायों से नहीं बल्कि कई कई घंटों की गहन ध्यान साधना के बाद ही शांत होती है|
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हम सब के हृदयों में ऐसी ही पराभक्ति जागृत हो, हम सब के हृदयों में वह अभीप्सा जागृत हो, इसी शुभ कामना के साथ सब को सादर नमन !
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