Friday 2 February 2018

भक्ति एक अवस्था है.....

भक्ति एक अवस्था है जिसे उपलब्धि भी कह सकते हैं, पर यह कोई क्रिया तो बिलकुल नहीं है| भगवान के प्रति परम प्रेम ही भक्ति है| जिसको भगवान से परम प्रेम है, वह ही भक्त है| भगवान् में हेतुरहित, निष्काम एक निष्ठायुक्त, अनवरत प्रेम ही भक्ति है। यही हमारा परम धर्म है| भगवान की भक्ति अनेकानेक जन्मों के अत्यधिक शुभ कर्मों की परिणिति है जो प्रभु कृपा से ही प्राप्त होती है| स्वाध्याय, सत्संग, साधना, सेवा और प्रभु चरणों में समर्पण का फल है --- भक्ति| यह एक अवस्था है जो प्रभु कृपा से ही प्राप्त होती है|
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अवचेतन मन को संस्कारित किये बिना हम भगवान की भक्ति, धारणा, ध्यान, समर्पण आदि कुछ भी नहीं कर सकते|
बार बार हम परमात्मा से अहैतुकी प्रेम का चिंतन करेंगे तो अवचेतन मन में गहराई से बैठकर यह हमारा स्वभाव बन जाएगा| परमात्मा से प्रेम तभी हो सकता है जब यह हमारा स्वभाव बन जाए|
निरंतर सत्संग और प्रार्थना ... ये दोनों ही बल देती हैं|

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सभी प्रभु प्रेमियों को मेरा प्रणाम और चरण वन्दन|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जनवरी २०१८

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