Friday, 2 February 2018

क्या हम बीते हुए कल से आज अधिक आनन्दमय और प्रसन्न हैं ? ....

क्या हम बीते हुए कल से आज अधिक आनन्दमय और प्रसन्न हैं ? यदि उत्तर हाँ में है तो हम उन्नति कर रहे हैं, अन्यथा अवनति कर रहे हैं| आध्यात्मिक प्रगति का यही एकमात्र मापदंड है| हमें मिला हुआ एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाए| हमारा हर क्षण अति अति गहन, विराट और रहस्यों का रहस्य है| इसी क्षण हम देशकाल से परे अनन्त असीम परमात्मा के साथ एक हैं| परमात्मा की पूर्णता और उनका प्रेम ही हमारा स्वभाव है| हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं|
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जन्म-जन्मान्तरों में जो कष्ट मैनें भोगे हैं वे संसार में अन्य किसी भी प्राणी को नहीं मिलें| संसार में सभी सुखी रहें, सब निरोग रहें|संसार की सारी पीड़ाएँ और सारे ताप-दाह .... इस देह और मन को हैं, मुझे नहीं| मैं यह मन और देह नहीं हूँ|मेरी निंदा करने वाले सज्जन लोग मेरे कर्मों का भार अपने ऊपर ले कर मेरा उपकार कर रहे हैं| मैं उन सब को साभार धन्यवाद देता हूँ क्योंकि वे मेरे पापों को मुझ से छुटा कर स्वयं ग्रहण कर रहे हैं|
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आध्यात्म में ध्यान साधना द्वारा प्रत्यक्ष अनुभूति और निरंतर प्रगति आवश्यक है| इधर-उधर से कुछ पढने या बुद्धि-विलास से सिर्फ अहंकार बढ़ता है, कोई ज्ञान नहीं प्राप्त होता| सही ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभूतियों द्वारा ईश्वर की कृपा से ही मिलता है| जो निष्ठावान साधक हैं वे नित्य नियमित रूप से ईश्वर के अनंत प्रेम रूप पर ध्यान करें| 
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मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार ये मात्र एक उपकरण की तरह हमारे पास हैं, हम ये नहीं हैं| इनसे ऊपर उठना हमारी प्राथमिक आवश्यकता है| मन को समझा-बुझा कर या भुला कर भगवान में लगाना पड़ता है| अपने आप मन कभी भगवान में नहीं लगता| इसके लिए सत्संग आवश्यक है| भगवान का ध्यान सबसे अच्छा सत्संग है| 
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
२७ जनवरी २०१८ 
ॐ ॐ ॐ !!

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