Friday 2 February 2018

हम जो सुखी और दुःखी होते हैं, यह हमारी ही सृष्टि है .....

हम जो सुखी और दुःखी होते हैं, यह हमारी ही सृष्टि है .....
सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता, परो ददातीति कुबुद्धिरेषा |
अहं करोमीति वृथाभिमानः, स्वकर्मसूत्रे ग्रथितो हि लोकः ||
(आध्यात्म रामायण / २/६/६)
आध्यात्म रामायण में लक्ष्मण जी ने निषादराज गुह को उपरोक्त उपदेश दिया है| सुख-दुःखको देनेवाला दूसरा कोई नहीं है| दूसरा सुख-दुःख देता है ..... यह समझना कुबुद्धि है| मैं करता हूँ ..... यह वृथा अभिमान है| सब लोग अपने अपने कर्मोंकी डोरीसे बँधे हुए हैं|
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में कहा है ....
काहु न कोउ सुख दुख कर दाता | निज कृत करम भोग सबु भ्राता ||
(२/९२/२)
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हम दूसरों पर दोषारोपण करते हैं यह हमारी अज्ञानता है| दुखों से हम न तो कहीं भाग कर अपनी रक्षा कर सकते हैं, और न ही आत्महत्या कर के, क्योंकि आत्महत्या करने वालों का पुनर्जन्म उन्हीं परिस्थितियों में होता है जिन परिस्थितियों में उन्होंने आत्महत्या की है| उनका सामना कर के ही हम उन परिस्थितियों को दूर कर सकते हैं|
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मेरा मानना है कि स्वयं की मुक्ति का प्रयास वेदविरुद्ध है| इस पर कोई मुझसे विवाद न करे| विवाद करने का समय मेरे पास नहीं है| हम क्या समष्टि से पृथक हैं? हम समष्टि के साथ एक हैं, हम शाश्वत आत्मा हैं और नित्यमुक्त हैं| बंधन एक भ्रम है| सब कुछ तो परमात्मा है, फिर मुक्ति किस से? मुक्ति सिर्फ अज्ञान से ही हो सकती है| भागवत में भी यह बात बड़े विस्तार से कई बार बताई गयी है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० जनवरी २०१८

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