Friday 2 February 2018

जीवन में स्वयं का उत्साह वर्धन कैसे किया जाए ? ....

जीवन में स्वयं का उत्साह वर्धन कैसे किया जाए ? जब लक्ष्य सामने हो, मार्ग में कोई बाधा न हो, फिर भी उत्साह मंद पड़ जाए तब क्या करना चाहिए? यह मेरी ही नहीं, अनेक साधकों की समस्या है|

पिछले कुछ समय से उत्साह की कमी अनुभूत कर रहा हूँ| बहुत सोच-विचार कर कुछ निर्णय लिए हैं, जिन का कोई समझौता किये बिना बड़ी कठोरता से पालन करना ही पड़ेगा|

(१) जीवन का जो लक्ष्य है उसे निरंतर सामने रखते हुए, समय समय पर नित्य स्वयं को याद दिलाते हुए, भगवान से सहायता प्राप्त करना, जिसकी कोई कमी नहीं है|

(२) उन सब स्त्रोतों को बंद करना जो नकारात्मकता मन में ला सकते हैं| भगवान की परम कृपा से पूरा मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है कि क्या करना चाहिए|

(३) अन्य कामों में कम से कम समय देकर, अधिकाँश समय भगवान के ध्यान में ही व्यतीत करना|
भगवान की तो पूरी ही कृपा है| जो भी कमियाँ हैं वे स्वयं की ही सृष्टि है जिनका विसर्जन भी स्वयं को ही करना होगा| पूरा मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है|

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विचारों में स्पष्टता और हृदय में भगवान की निरंतर उपस्थिति ..... भगवान की परम कृपा का ही फल है| जब ह्रदय में भगवान स्वयं ही प्रत्यक्ष रूप से आकर बिराजमान हैं तो अन्य कोई अपेक्षा या कामना नहीं रहनी चाहिए| सारे कष्टों का कारण ये अपेक्षाएँ और कामनाएँ ही हैं, जिनका पूर्ण विसर्जन भगवान में ही हो जाना चाहिए| जब मनुष्य जीवन की उच्चतम उपलब्धि समक्ष है तब अन्य किसी भी ओर ध्यान जाना ही नहीं चाहिए|


ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२८ जनवरी २०१८

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