मनुष्य की सोच ही उसके पतन व उत्थान का कारण है .....
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मनुष्य के सोच-विचार और उसकी संगती ही उसके पतन व उत्थान का कारण है, अन्य कोई कारण नहीं हैं| बचपन से अब तक यही सुनते आये हैं कि कामिनी-कांचन की कामना ही मनुष्य की आध्यात्मिक प्रगति में बाधक हैं, पर यह आंशिक सत्य है, पूर्ण सत्य नहीं| जैसे एक पुरुष एक स्त्री के प्रति आकर्षित होता है वैसे ही एक स्त्री भी किसी पुरुष के प्रति होती है, तो क्या स्त्री की प्रगति में पुरुष बाधक हो गया?
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कांचन के बिना यह लोकयात्रा नहीं चलती| मनुष्य को भूख भी लगती है, सर्दी-गर्मी भी लगती है, बीमारी में दवा भी आवश्यक है, और रहने को निवास की भी आवश्यकता होती है| हर क़दम पर पैसा चाहिए| जैसे आध्यात्मिक दरिद्रता एक अभिशाप है वैसे ही भौतिक दरिद्रता भी एक महा अभिशाप है| वनों में साधू-संत भी हिंसक प्राणियों के शिकार हो जाते हैं, उन्हें भी भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और बीमारियाँ लगती है, उनकी भी कई भौतिक आवश्यकताएँ होती हैं, जिनके लिए वे संसार पर निर्भर होते हैं| पर जो वास्तव में भगवान से जुड़ा है, उसकी तो हर आवश्यकता की पूर्ति स्वयं भगवान ही करते हैं|
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एक आदमी एक महात्मा के पास गया और बोला कि मुझे संन्यास चाहिए, मैं यह संसार छोड़ना छाह्ता हूँ| महात्मा ने इसका कारण पूछा तो उस आदमी ने कहा कि मेरा धन मेरे सम्बन्धियों ने छीन लिया, स्त्री-पुत्रों ने लात मारकर मुझे घर से बाहर निकाल दिया, और सब मित्रों ने भी मेरा त्याग कर दिया, अब मैं उन सब का त्याग करना चाहता हूँ| महात्मा ने कहा कि तुम उनका क्या त्याग करोगे, उन्होंने ही तुम्हे त्याग दिया है|
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भौतिक समृद्धि ...... आध्यात्मिक समृद्धि का आधार है| एक व्यक्ति जो दिन-रात रोटी के बारे में ही सोचता है , वह परमात्मा का चिंतन नहीं कर सकता| पहले भारत में बहुत समृद्धि थी| एक छोटा-मोटा गाँव भी हज़ारों साधुओं को भोजन करा सकता था और उन्हें आश्रय भी दे सकता था| पर अब वह परिस्थिति नहीं है|
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सबसे महत्वपूर्ण तो व्यक्ति के विचार और भाव हैं, उन्हें शुद्ध रखना भी एक साधना है| मनुष्य के भाव और उसके सोच-विचार ही उसके पतन का कारण है, कोई अन्य कारण नहीं| अपने विचारों के प्रति सजग रहें| कोई बुरा विचार आता है तो तुरंत उसे अपनी चेतना से बाहर करें| सदा सकारात्मक चिंतन करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०१८
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मनुष्य के सोच-विचार और उसकी संगती ही उसके पतन व उत्थान का कारण है, अन्य कोई कारण नहीं हैं| बचपन से अब तक यही सुनते आये हैं कि कामिनी-कांचन की कामना ही मनुष्य की आध्यात्मिक प्रगति में बाधक हैं, पर यह आंशिक सत्य है, पूर्ण सत्य नहीं| जैसे एक पुरुष एक स्त्री के प्रति आकर्षित होता है वैसे ही एक स्त्री भी किसी पुरुष के प्रति होती है, तो क्या स्त्री की प्रगति में पुरुष बाधक हो गया?
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कांचन के बिना यह लोकयात्रा नहीं चलती| मनुष्य को भूख भी लगती है, सर्दी-गर्मी भी लगती है, बीमारी में दवा भी आवश्यक है, और रहने को निवास की भी आवश्यकता होती है| हर क़दम पर पैसा चाहिए| जैसे आध्यात्मिक दरिद्रता एक अभिशाप है वैसे ही भौतिक दरिद्रता भी एक महा अभिशाप है| वनों में साधू-संत भी हिंसक प्राणियों के शिकार हो जाते हैं, उन्हें भी भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और बीमारियाँ लगती है, उनकी भी कई भौतिक आवश्यकताएँ होती हैं, जिनके लिए वे संसार पर निर्भर होते हैं| पर जो वास्तव में भगवान से जुड़ा है, उसकी तो हर आवश्यकता की पूर्ति स्वयं भगवान ही करते हैं|
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एक आदमी एक महात्मा के पास गया और बोला कि मुझे संन्यास चाहिए, मैं यह संसार छोड़ना छाह्ता हूँ| महात्मा ने इसका कारण पूछा तो उस आदमी ने कहा कि मेरा धन मेरे सम्बन्धियों ने छीन लिया, स्त्री-पुत्रों ने लात मारकर मुझे घर से बाहर निकाल दिया, और सब मित्रों ने भी मेरा त्याग कर दिया, अब मैं उन सब का त्याग करना चाहता हूँ| महात्मा ने कहा कि तुम उनका क्या त्याग करोगे, उन्होंने ही तुम्हे त्याग दिया है|
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भौतिक समृद्धि ...... आध्यात्मिक समृद्धि का आधार है| एक व्यक्ति जो दिन-रात रोटी के बारे में ही सोचता है , वह परमात्मा का चिंतन नहीं कर सकता| पहले भारत में बहुत समृद्धि थी| एक छोटा-मोटा गाँव भी हज़ारों साधुओं को भोजन करा सकता था और उन्हें आश्रय भी दे सकता था| पर अब वह परिस्थिति नहीं है|
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सबसे महत्वपूर्ण तो व्यक्ति के विचार और भाव हैं, उन्हें शुद्ध रखना भी एक साधना है| मनुष्य के भाव और उसके सोच-विचार ही उसके पतन का कारण है, कोई अन्य कारण नहीं| अपने विचारों के प्रति सजग रहें| कोई बुरा विचार आता है तो तुरंत उसे अपनी चेतना से बाहर करें| सदा सकारात्मक चिंतन करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०१८
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