Friday, 2 February 2018

"प्रत्यभिज्ञा" ......

"प्रत्यभिज्ञा" ...... कश्मीर के अद्वैत शैव दर्शन में प्रयुक्त यह शब्द बहुत प्यारा है| इसका अर्थ है किसी ज्ञात विषय को दुबारा ठीक से समझना| कश्मीर का अद्वैत शैव दर्शन वहाँ की एक महानतम परम्परा रही है| वही वास्तविक कश्मीरियत है जो दुर्भाग्य से लुप्त हो गयी है| कश्मीरी शैव दर्शन अब पुस्तकों में ही सीमित होकर रह गया है| उसके जानकार कुछ गिने चुने लोग ही हैं, जिनके बाद यह ज्ञान सिर्फ ग्रंथों में ही मिलेगा| आज कश्मीर को एक "प्रत्यभिज्ञा" की आवश्यकता है| कश्मीर के अद्वैत शैव दर्शन के तीन मुख्य भाग हैं ...... (१) प्रत्यभिज्ञा दर्शन. (२) स्पंदशास्त्र. और (३) त्रिक प्रत्यभिज्ञा |
उपरोक्त पंक्तियों को लिखने की आवश्यकता इसलिए पड़ गयी क्योंकि आज एक विजातीय विचारधारा को कश्मीरियत बताया जा रहा है| कश्मीर की राजधानी श्रीनगर को सम्राट अशोक ने बसाया था| चीनी यात्री ह्वैन्सांग ने उसके आसपास २५०० से अधिक प्राचीन मठों के अवशेष देखे थे| पूरा कश्मीर ही कभी वेदविद्या का केंद्र था|
इस धरा पर अनेक बार असुरों का अधिकार हुआ है,पर अंततः विजय देवत्व की ही हुई है| भारत निश्चित रूप से परम वैभव को प्राप्त करेगा, और भारत का ही भाग कश्मीर भी अपने गौरवशाली अतीत को पुनश्चः देखेगा| होगा वही जो परमात्मा का संकल्प होगा|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ जनवरी २०१८

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