बिना कोई युद्ध किये, अपनी हार न मानें ....... चित्त सदा शांत हो, पर निरंतर क्रियाशील हो ... निष्क्रियता मृत्यु है .....
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व्यष्टि द्वारा जो समष्टि को दिया जाता है वही दान है और वही क्रिया है| इस बात को समझाना थोड़ा कठिन है पर जो लोग भगवान का ध्यान करते हैं वे इसे अपने अनुभव से समझ सकते हैं|
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व्यष्टि द्वारा जो समष्टि को दिया जाता है वही दान है और वही क्रिया है| इस बात को समझाना थोड़ा कठिन है पर जो लोग भगवान का ध्यान करते हैं वे इसे अपने अनुभव से समझ सकते हैं|
करुणा और प्रेममयी माँ भगवती का विग्रह देखिये, वे असुरों का संहार कर रही हैं, उनका चेहरा शांत है, किसी भी तरह का क्रोध उनके मुखमंडल पर नहीं है, पर वे निरंतर क्रियाशील हैं|
भगवान नटराज एक पैर पर खड़े होकर नृत्य कर रहे हैं, पर उनका मुखमंडल पूरी तरह शांत है, वे निरंतर क्रियाशील हैं|
हमारी कमी यह है कि हम गीता का अध्ययन और मनन नहीं करते| गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी इस सत्य को बहुत अच्छी तरह समझाया है| भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म के उस स्वरूप का निरूपण किया गया है जो बंधन का कारण नहीं होता| भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार योग का अर्थ है "समत्व" की प्राप्ति .... समत्वं योग उच्यते| जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए जाते हैं वे बंधन नहीं उत्पन्न करते|
शांत चित्त से की हुई क्रिया से कोई थकान नहीं होती| सृष्टिकर्ता की चेतना के साथ सामंजस्य स्थापित कर के ही हम सुख शांति और सुरक्षा प्राप्त कर कोई सकारात्मक कार्य कर सकते हैं| निराश न हों| यह बहाना नहीं चलेगा कि कलियुग आ गया है और आसुरी शक्तियाँ बढ़ रही हैं| आसुरी शक्तियाँ बढ़ रही हैं तो हमें भी देवत्व की शक्तियों को बढ़ाना होगा| बिना कोई युद्ध किये, अपनी हार न मानें|
आप सब को सादर नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ जनवरी २०१८
कृपा शंकर
२८ जनवरी २०१८
रागद्वेष रहित, शांतचित्त होकर भगवान का सदा ध्यान, व निज विवेक के प्रकाश में परिस्थिति अनुसार सदा अपना सर्वश्रेष्ठ कर्म करें.
ReplyDeleteॐ ॐ ॐ